लक्खी बंजारा द्वारा बनवाई गई बावड़ी दे रही इतिहास की गवाही
इस बावड़ी का बहुत प्राचीन इतिहास है और ग्रंथों व प्रचलित किवदंतियों के अनुसार यह बावड़ी करीब 500 साल पुरानी है। इस बावड़ी को लक्खी वंजारा की बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि व्यापार के लिए दूर दराज के क्षेत्रों में जाते समय लक्खी वंजारा सरस्वती नदी के इस क्षेत्र में रुका करता था।
सच कहूँ, देवीलाल बारना
कुरुक्षेत्र। भारत में अनेकों ऐसी धरोहर हैं जोकि सैंकड़ों सालों के इतिहास को अपने में समेटे हुए हैं। ऐसे ही हरियाणा व पंजाब में अनेकों ऐसी बावडी हैं जोकि लगभग 500 साल पुराने इतिहास की गवाही दे रही हैं व पानी बचाने का संदेश भी दे रही हैं। बताया जाता है कि लगभग 500 साल पहले लक्खी बंजारा एक बड़े व्यापारी हुआ करते थे और उन्होंने ही ये बावड़ियां बनवाई थीं। इसी प्रकार राष्ट्रीय राजमार्ग से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर कुरुक्षेत्र जिले के गांव ईशरगढ में पुरातन बावड़ी है। इस बावड़ी का बहुत प्राचीन इतिहास है और ग्रंथों व प्रचलित किवदंतियों के अनुसार यह बावड़ी करीब 500 साल पुरानी है।
इस बावड़ी को लक्खी वंजारा की बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि व्यापार के लिए दूर दराज के क्षेत्रों में जाते समय लक्खी वंजारा सरस्वती नदी के इस क्षेत्र में रुका करता था। इस दौरान ही लक्खी वंजारा द्वारा ही बावड़ी का निर्माण किया गया था। बताया जाता है कि प्राचीन काल में सरस्वती नदी का बहाव क्षेत्र बहुत विशाल था, इसलिए लक्खी वंजारा द्वारा सरस्वती नदी के तट पर इस बावड़ी का निर्माण किया गया। इस बावड़ी की प्राचीन इंटों और बनावट को देखकर भी इसके काफी पुरानी बावड़ी होने के प्रमाण मिलते है।
आकर्षक है बावड़ी की बनावट
लक्खी वंजारा द्वारा जो बावड़ी यहां बनवाई गई है, यह आकर्षक है। इसे देखने के लिए काफी लोग यहां पहुंचते हैं। इस बावड़ी में प्रवेश के लिए सीढीयां बनाई गई हैं। अंदर एक छोटा कुआं बनाया गया है जिसमें सीढीयां लगाई गई हैं। छोटे कुएं के आगे बडा कुआं बनवाया गया है जहां से एक छोटे कुएं तक पानी की निकासी के लिए रास्त भी रखा गया है। वहीं कुएं के उपर काफी आकर्षक बनावट की छत भी बनाई गई है ताकि गंदा पानी या कचरा कुएं में न जाए।
पानी बचाने का संदेश देती है बावड़ी
आज जिस प्रकार से पानी का दुरुपयोग लगातार बढ रहा है। आधुनिक मशीनरी का प्रयोग होने से धरती से पानी का लगातार दोहन हो रहा है। पुराने समय में धरती से पानी निकालने की कोई मशीन न होने के कारण पानी को सुरक्षित करने के लिए बावड़ियों का निर्माण करवाया जाता था और बरसात का पानी इसमें एकत्रित हो जाता और राहगिर इन बावड़ियों से पानी पीते थे लेकिन आज पानी का दुरुपयोग जिस प्रकार से बढ रहा है। ऐसा नजर आता है कि जल्द ही धरती का पानी भी समाप्त हो जाएगा। ऐसे में पुरातन बावड़ी पानी बचाने का संदेश भी दे रही हैं।
4 गांवों की सरहद पर है बावड़ी
बता दें कि गांव ईशरगढ़ में बनी पुरातन बावड़ी चार गांवों की सरहद पर बनाई गई है। इसके एक साईड में गांव खानपुर कोलियां लगता है व अन्य साईड में गांव रामगढ़, इशरगढ़ व गांव सावंला लगते हैं। कहा जाता है कि कोई भी बावड़ी तीन गांवों की सरहद पर बनाई जाती थी लेकिन इशगढ़ में जो बावड़ी बनाई गई है, इस पर चार गांवों की सीमा लगती हैं।
सांग करवाकर किया था चंदा इकट्ठा
गांव ईशरगढ के निवासी कासव अली कहते हैं कि बावड़ी लगभग 500-600 वर्ष पूर्व लक्खी बंजारा द्वारा बनवाई गई थी। पुरानी होने के कारण बावड़ी काफी दयनीय स्थिति में पहुंच चुकी थी। ऐसे में उन्होने पूर्व एसडीओ चुडू राम, तेजपाल व निर्मल सिंह के साथ मिलकर सांग के आयोजन करवाए। सांग में इशरगढ के अलावा अन्य गांवों के सैंकडों लोग पहुंचते थे। सांग के माध्यम से जो चंदा एकत्रित हुआ उस पैसे से बावड़ी का जीर्णोद्धार करवाया गया। जो बावड़ी क्षतिग्रस्त हो चुकी थी वह आज दर्शनिक बन गई है।
निशानदेही करवाकर करवाएंग जीर्णोद्धार : धुम्मन सिंह
हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच ने कहा कि गांव ईशरगढ़ में स्थित पुरातन बावड़ी को एक धरोहर के रुप में विकसित करने का काम किया जाएगा। जल्द ही इसकी निशानदेही करवाई जाएगी व जीर्णोद्धार कार्य करवाया जाएगा। इस बावड़ी को पर्यटन की दृÞष्टि से विकसित करने के लिए इसका जीर्णोद्घार करने का काम भी किया जाएगा। सरस्वती नदी के क्षेत्र में स्थित इस बावड़ी का अपना एक अलग ही इतिहास है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का निरतंर प्रयास है कि सभी ऐतिहासिक और प्राचीन तीर्थों और स्थानों को एक धरोहर के रुप में विकसित किया जाए और सरकार अपने इसी विजन को लेकर कार्य भी कर रही है।
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