G20 Summit: जी-20 का नेतृत्व एवं भारत के समक्ष चुनौतियां

G20 Summit
जी-20 का नेतृत्व एवं भारत के समक्ष चुनौतियां

G20 Summit: जी-20 वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा तय करने वाला दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक मामलों को समझने और परस्पर सहयोग करने में बड़ी भूमिका निभाता है। दुनिया के राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करना इसके एजेंडे का अहम बिन्दू है। यह विश्व की दो-तिहाई से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। विश्व के कुल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 80 फीसदी भागीदारी अकेले जी-20 देशों की रहती है। विश्व की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले इस संगठन की इस साल भारत अध्यक्षता कर रहा है। G20 Summit

जी-20 का इतिहास | G20 Summit 

जी-20 की स्थापना का विचार 90 के दशक में उस वक्त अस्तित्व में आया जब दुनिया के अलग-अलग कोनों में स्थित विकसित और विकासशील देश आर्थिक एवं वित्तीय रूप से विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे थे। पूंजीवादी प्रभाव से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के सामूहिक निराकरण की राह तलाशने के उदेश्य को लेकर जी-20 अस्तित्व में आया। समूह की स्थापना की परिकल्पना वर्ष 1999 के वैश्विक मंदी से निबटने के उपायों के लिए जी-7 देशों कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेट किंग्डम और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की गई थी।

1998 में इस समूह में रूस भी जुड़ गया था और समूह का नाम जी- 7 से जी-8 हो गया। वर्ष 1999 में जर्मनी के कोलोन में जी-8 देशों की बैठक हुई इसमें एशिया के आर्थिक संकट पर चर्चा हुई इसके बाद दुनिया के बीस शक्तिशाली अर्थव्यवस्था वाले देशों को एक मंच पर लाने का फैसला किया गया। अत: 25 सिंतबर, 1999 को औपचारिक रूप से अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में जी-20 की स्थापना की गई। आगे चलकर जी-8 को राजनीतिक और जी-20 को आर्थिक मंच के रूप में स्वीकार किया गया। G20 Summit

प्रांरभ में जी-20 केवल सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों के वार्षिक सम्मेलनों तक सीमित था। लेकिन जब 2008 की वैश्विक मंदी ने यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में लिया तो सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्क्ष्ज्ञ स्वयं इस संगठन के वार्षिक सम्मेलनों में उपस्थित होकर आर्थिक मुददों पर चर्चा करने लगे। राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्षों की उपस्थिति के कारण 2008 के बाद जी-20 और अधिक प्रासंगिक हो गया। वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लेने के कारण रूस को इस समूह से बाहर कर दिया गया। क्रीमिया पर कब्जे की घटना के बाद जी-20 की राजनीतिक इकाई अर्थात जी-8 पुन: जी-7 में बदल गया।

आरंभ में जी-20 का एक मात्र उदेश्य केवल मध्यम आय वाले देशों की वित्तीय स्थिति को सुरक्षित करना था। लेकिन बाद में इसके एजेंडे में जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, भ्रष्टाचार विरोध और अन्य वैश्विक चुनौतियां के समाधान को भी शामिल कर लिया गया। हालांकि, अभी तक इसका कोई स्थायी मुख्यालय नहीं है। ऐसे में प्रतिवर्ष जिस देश द्वारा जी-20 शिखर बैठक की अध्यक्षता की जाती है, वही देश अनौपचारिक रूप से इसके मुख्यालय का काम करता है। जहां तक समूह की अध्यक्षता का सवाल है, तो अध्यक्षता का निर्धारण प्रत्येक वर्ष सदस्य देश रोटेशन पद्धति के आधार पर करते हैं।

कौन-कौन से देश शामिल है: आॅस्ट्रेलिया, चीन, ब्राजिल, कोरिया गणराज्य, फ्रांस, जर्मनी, सउदी अरब, रूस, टर्की, यूनाइटेड किंगडम, अर्जेंटीना, कनाडा, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली, भारत, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका व यूरोपीय संघ शामिल हैं। अब भारत के प्रस्ताव से इस संगठन में अफ्रीकन यूनियन भी स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हो गया है।

जी-20 की कार्यप्रणाली और उद्धेश्य: जी-20 की कार्यप्रणाली को दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम, वित्त ट्रैक और द्वितीय शेरपा ट्रैक। वित्त ट्रैक में सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों और केद्रीय बैंक के गवर्नरों द्वारा वित्तीय मामलों को लेकर विचार-विमर्श और संवाद किया जाता है, जबकि शेरपा ट्रैक के अंतर्गत नेताओं के निजी दूत राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत करते हैं।

जहां तक जी-20 के उद्धेश्यों की बात है जी-20 समूह से जुड़े देश वित्तीय नियमों को बढावा देने और भविष्य के वित्तीय संकटों को रोकने की दिशा में भी प्रयासरत रहते हैं। समूह आर्थिक ढांचे के विकास हेतू तो कार्य करता ही है, साथ ही ग्लोबल परिस्थितियों में आने वाले बदलावों पर भी नजर रखता है। इसके अंतर्गत कृषि, रोेजगार, ऊर्जा, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, वैश्विक खाद्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुददों पर विश्व समुदाय को साथ लेकर काम करता है।

जी-20 की अध्यक्षता और भारत  | G20 Summit

भारत की विदेश नीति हालिया दौर में वैश्विक मंच पर नेतृतव के तौर पर विकसित हुई है। इसी कड़ी में 1 दिसंबर, 2022 से भारत जी-20 का नेतृत्व ( अध्यक्षता) कर रहा है। भारत द्वारा तैयार किया गया जी-20 लॉगो भी समूह के प्रति भारत की सोच को प्रदर्शित करता है। भारत द्वारा डिजायन किया गया जी-20 लॉगो भारत के राष्ट्रीय घ्वज के रंगों केसरिया, सफेद, हरे समेत नीले रंग से भी प्रेरित है। यह लॉगो भारत के राष्ट्रीय फूल कमल के साथ पृथ्वी ग्रह की तुलना करता है। जो प्रतिकुल परिस्थितियों में भी विकास का प्रतिनिधित्व करता है। अध्यक्षता के दौरान भारत के छोटे-बड़े शहरों में 200 से अधिक बैठकों का आयोजन किया गया था।

भारत के समक्ष चुनौतियां

यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद दुनिया दो भागों में बंट गई है। रूस को जी-20 से बहार करने की मांग भी पश्चिमी देशों द्वारा की जा रही है। अहम बात यह है कि भारत के पश्चिमी देशों और रूस दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध है। जहां एक और वह पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल का आयात जारी रखे हुए है, वहीं दूसरी और भारत लगातार रूस से शांतिपूर्ण समाधान की बात कर रहा है। ऐसे में भारत को न केवल जी-20 को बचाना होगा बल्कि समूह के बहुआयामी एजेंडे की विविध क्षेत्रों में बहुपक्षीय सहयोग भी कायम करना होगा।

इसके अलावा विभाजित दुनिया में 20 बड़े नेताओं को सामूहिक घोषणा पत्र के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी करना भी सरल कार्य नहीं रहने वाला है। बाली शिखर बैठक के दौरान ऐसा हो चुका है। जहां राष्ट्रपति जोको विडोडी ने संयुक्त घोषणा पत्र पर सहमति के लिए अपने देश की राजनीतिक पूंजी को दाव पर लगा दिया था। ऐसे में भारत को सभी मतभेदों के समाधान तलाशने होंगे और वैश्विक शांति के लिए विभिन्न विचारधाराओं के बीच सेतुओं का निर्माण करना होगा।

क्या रहेगा भारत का विजन: जहां तक भारत के विजन का सवाल है तो भारत को इस अठारवें शिखर सम्मेलन में अपने आधार वाक्य एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य पर धैर्य और गंभीरता से के साथ आगे बढ़ना होगा। भारत को जी-20 की अध्यक्षता के दौरान उन देशों के विचारों को भी सामने लाना होगा जिनका समूह में प्रतिनिधित्व नहीं है। इसके अलावा जी-20 के अध्यक्ष और विकासशील देशों की तिकड़ी के हिस्से के रूप में भारत से उन मुद्दों को आगे बढ़ाने की उम्मीद भी की जा रही है, जो गरीब देशों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगे। भारत की जी-20 की अध्यक्षता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत कितनी कुशलता से देशों के बीच दूरियां पाटने, विवादों को खत्म करने, शांति स्थापित करने, संघर्ष को शांत करने और टूट चुकी आपूर्ति श्रृखलाओं को फिर से बहाल करने के लिए रास्ते और साधन खोज पाता है।

डॉ. एन.के. सोमानी, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)