अनियमित जीवनशैली और गलत खान-पान से बढ़ा लिवर रोग – डॉ. अरविन्दर

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Sri Ganganagar: अनियमित जीवनशैली और गलत खान-पान से बढ़ा लिवर रोग - डॉ. अरविन्दर

मेदांता गुरूग्राम में प्रतिदिन हो रहा है एक लिवर ट्रांसप्लांट

श्रीगंगानगर (सच कहूँ न्यूज़)। Sri Ganganagar: अनियमित जीवनशैली और गलत खान-पान के चलते रोजाना लिवर के मरीज बढ़ रहे है। इनमें से कुछ बीमारियां ऐसी होती है, जिनका मात्र दवाई से इलाज संभव होता है, परंतु बहुत सारे ऐसे मरीज भी होते है, जिनमें लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प होता है। यह कहना है मेदांता हॉस्पिटल गुरूग्राम के लिवर ट्रांसप्लांट चीफ पद्मश्री डॉ. अरविन्दर सिंह सोइन का। उन्होंने बताया कि मेदांता गुरूग्राम के अत्याधुनिक लिवर ट्रांसप्लांट विभाग में प्रतिदिन एक लिवर ट्रांसप्लांट हो रहा है। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए पहुंचने वाले मरीजों की संख्या प्रति माह 25 के करीब होती है। Sri Ganganagar

लिवर कैंसर के बारे में भी विस्तृत रूप से जानकारी साझा करते हुए कहा कि लिवर कैंसर के मामलों के लिवर का वो वाला हिस्सा निकाल दिया जाता है, जो कैंसर सैल से प्रभावित है, और बाकी हिस्से को दवाईयों के माध्यम से दोबारा पहले जैसा कार्य करने के लिए तैयार किया जाता है। इस अवसर पर मेदांता गुरूग्राम के लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अंकुर ए गुप्ता एवं आईएमए श्रीगंगानगर अध्यक्ष डॉ. हरीश रहेजा ने भी लिवर की बिमारियों के संबंध में जानकारियां साझा की।

1. संतुलित आहार और नियमित व्यायाम सिंह स्वस्थ रहता है लिवर

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम स्वस्थ लिवर के लिए बेहद आवश्यक है। वर्तमान समय में फास्ट फूड, शराब और अनियमित जीवन शैली के कारण लिवर की बीमारियों के मरीज बढ़ रहे है। उन्होंने कहा कि लिवर ट्रांसप्लांट वर्तमान समय में बहुत तेजी से बढ़ रहे है।

2. लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर 95 प्रतिशत | Sri Ganganagar

5000 से ज्यादा लिवर ट्रांसप्लांट करने का अनुभव रखने वाले डॉ. सोइन ने कहा कि वर्तमान समय में लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर 95 प्रतिशत है, जो बहुत बेहतरीन है।

3. राजस्थान में हजारों रोगियों का मिलना चिंताजनक

डॉ. सोइन ने राजस्थान में फैटी लिवर डिजीज, अल्कोहल-सम्बंधित सिरॉसिस और वायरल हेपेटाइटिस जैसी समस्याओं की गंभीरता पर भी चिंता जताई और कहा कि हर साल राजस्थान के हजारों नागरिक लिवर की लास्ट स्टेज (एंड-स्टेज लिवर डिजीज) का शिकार होते हैं, लेकिन केवल कुछ ही समय रहते ट्रांसप्लांट के लिए पहुँच पाते हैं। स्थानीय भागीदारी और शिक्षा के माध्यम से हम इस आँकड़े़ को बदल सकते हैं।

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