बारिश के सामने बौने साबित हुए प्रबंध

विकास की असल तस्वीर आज-कल बारिश के साथ सामने आ रही है। उत्तरी भारत का कोई ही शहर ऐसा होगा, जहां बारिश के बाद पानी की निकासी की समस्या न हो। भारी बारिश के बाद शहरों की सड़कें नदियों का रूप धारण कर लेती हैं। कई स्थानों पर किश्तियां चलाकर प्रदर्शन किया जाता है। सड़कों पर पानी भरने से वाहन भी खराब हो जाते हैं। पानी भरने से इमारतों का नुक्सान अलग से होता है। एक तरफ बारिश जहां कृषि सैक्टर के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, वहीं शहरी व ग्रामीण लोगों के परेशानियों का सबब बनी हुई है। बारिश से लोगों के कामकाज प्रभावित होते हैं।

खासकर स्कूल जाने वाले बच्चों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हैरानी तो इस बात की है कि सीवरेज सिस्टम पर अरबों रूपये खर्च किए जाते हैं लेकिन फिर भी निकासी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। कई शहरों में तो पूरा-पूरा दिन भी पानी नहीं निकलता। दरअसल निकासी के लिए योजना की ज्यादा कमी है। बढ़ रही आबादी के मुताबिक सीवरेज सिस्टम का निर्माण नहीं किया जा रहा। इसके साथ ही लापरवाही के कारण भी निकासी में परेशानी आती है।

कई जगहों पर सीवरेज से अलग सड़कों के साथ नालियों का निर्माण किया गया है। निकासी के लिए बोर किए गए हैं, लेकिन सफाई न होने के कारण पानी बोर वाली जगहों पर पहुंचता ही नहीं है। बारिश के दिनों में भी सफाई की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता। नालियों में कूड़ा-कर्कट भर जाता है, जिस कारण पानी की निकासी नहीं होती।

इस मामले में सरकार व प्रशासन द्वारा चुप्पी ही साधी जाती है और वह राजनेता कहीं नजर नहीं आते जो लोगों की भीड़ इक्ट्ठी कर बड़े-बड़े दावे करते नजर आते थे। दरअसल सरकारी स्तर पर काम करने की शैली में बदलाव लाने की जरूरत है। समस्या दो दिन की हो या तीन दिनों की, जो समस्या हर साल सामने आती है, उस संबंधी गंभीरता व जिम्मेवारी के साथ काम करने की आवश्यकता है।

लोगों के दुख-दर्द को अपने दुख-दर्द समझ कर राजनेता अपना कार्य करें तभी समस्या का स्थाई हल हो सकता है। दूसरे देशों में हर कर्मचारी, अधिकारी पूरी लग्न व जिम्मेवारी के साथ काम करता है। वह केवल सख्ती के डर से काम नहीं करते बल्कि अपनी जिम्मेवारी पूरे लग्न व मेहनत से निभाते हैं। इस भावना की हमारे देश में बहुुत आवश्यकता है।

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