जिम्मेवारी से काम करे मीडिया

Media should work responsibly
केंद्रीय कैबिनेट के सचिव राजीव गौबा ने इस बात पर हैरानी प्रकट की है कि कुछ मीडिया संस्थान लॉकडाउन का समय बढ़ाने की बेबुनियाद खबरें चला रहे हैं। आखिर केंद्रीय सचिव को स्पष्ट करना पड़ा कि फिलहाल सरकार का लॉकडाउन की सीमा बढ़ाने का कोई प्लान नहीं। नि:संदेह कोरोना से लड़ने के लिए मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। वायरस से बचाव के लिए जागरूकता व पल-पल सरकारी कार्यक्रमों की जानकारी देने में मीडिया की अहम भूमिका रही है। लॉकडाउन के दौरान लोगों की समस्याओं को भी मीडिया ने सरकार तक पहुंचाया। जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने कार्रवाई भी की है।
इसी तरह अधिकारियों द्वारा दिन-रात लोगों की भलाई के लिए प्रयास करना व सामाजिक संस्थाओं के कार्यों की कवरेज से अधिकारियों व समाजसेवी संस्थाओं का हौसला भी बढ़ा है लेकिन मीडिया की जरा सी लापरवाही देश को बड़े स्तर पर नुक्सान पहुंचा सकती है। सबसे पहले प्रकाशित व प्रसारित करने की इच्छा किसी संकट में डाल सकती है। मीडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि लॉकडाउन विश्व के दूसरे नंबर पर जनसंख्या वाले देश में चल रहा है। इतने बड़े जनसंख्या वाले देश में अफवाह भी कई बार सच लगने लगती है। सरकारी प्रबंधों के बावजूद लॉकडाउन से करोड़ों लोगों का कारोबार प्रभावित हुआ है। अफवाह लोगों में दहशत व भगदड़ फैलाती है, जिससे कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकती है। मीडिया को एक जिम्मेवारी से काम करते हुए अफवाहों पर विराम लगाना चाहिए, ऐसे समय में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करना चाहिए। बिना पुष्टि की खबरों को पेश करने से परहेज करना चाहिए। इसी तरह पंजाब में गत दिवस कुछ गांवों को सील करने की खबरें मसालेदार तरीके से पेश किया गया। पुलिस की कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों को परिवारों सहित उठाने की खबरें भी दिखाई गई, जिसका प्रशासन व संंबंधित परिवारों ने खंडन किया।
विशेष तौर पर इस माहौल में मीडिया की भाषा भी इतनी बिगड़ गई कि मृतकों व उनके परिवारों को समाज के दुश्मन बताकर नफरत का माहौल पैदा किया जा रहा है। कई बार ऐसे शब्द प्रयोग किए गए, जब मृतक व्यक्ति को कई अन्य व्यक्तियों के पीड़ित होने के लिए दोषी ठहराया गया। ऐसी शब्दावली मृतकों के परिवारों का अपमान व उनके दिलों को ठेस पहुंचाना है। दरअसल बीमार व्यक्ति निर्दोष होता है, जिसके बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी लक्ष्ण नहीं दिखाई देते। डॉक्टरों के अनुसार कोरोना पीड़ित व्यक्ति में लक्ष्ण 14 दिनों के बाद आते हैं। बीमारों का इलाज करना, सावधानी बरतना व उनके स्वस्थ होने की कामना करना ही हमारा कर्तव्य है। मृतकों के परिवारों से हमदर्दी प्रकट करना ही इंसानियत है इसीलिए मृतकों के परिवारों पर और अत्याचार करने से गुरेज करना चाहिए। कलम का काम भाईचारे को बढ़ावना देना है, न कि नफरत को।

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