फारुख आसमान की तरफ मुंह कर न थूकें

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नेताओं के लिए शायद सत्ता ही सब कुछ है, राष्ट्र एवं राष्ट्रवासी उनके लिए महज सत्ता पाने व भोगने के साधन मात्र हैं। तभी तो फारूख अब्बदुला जैसे नेता कभी पत्थरबाज युवाओं को आजादी के लड़ाके बोलते हैं कभी कश्मीर के हल में तीसरे पक्ष की बात करते हैं। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है, जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान ने व दूसरा हिस्सा चीन ने अवैध तौर पर अपने कब्जे में ले रखा है। अपना ही जमीन को वापिस पाने के लिए भारत को किसी तीसरे की सलाह क्यों चाहिए? फिर फारूख अब्बदुला से सलाह मांगी किसने है कि वह कश्मीर का हल करें? फारूख अब्दुल्ला को कश्मीर ने सब कुछ दिया। मान-सम्मान, ताज तक दिया वह क्यों नहीं पाकिस्तान व चीन को ललकारते की उसकी सरजमीं को खाली कर दें।

फारूख अब्दुल्ला जिन अलगाववादियों या आतंकियों की सहानुभूति या समर्थन चाहने के स्वार्थ में कश्मीर के साथ दोगला व्यवहार कर रहे हैं, वह लोग तो महज चंद सिक्कों में बिक जाने वाले प्यादे हैं, जिन्हें पाकिस्तान ने हर माह पगार पर रख छोड़ा है, वह जननेता नहीं हैं। कश्मीरी ऐसे पाक परस्त नेताओं के बारे में जानते हैं कि उनके हाथों में पत्थर देने के सिवा कुछ नहीं है, नहीं तो क्या कश्मीरी उन्हें सत्ता नहीं सौंप दें? अभी अब्दुल्ला यदि सत्ता से बाहर हैं तब उन्हें चाहिए कि वह कश्मीर के उन युवाओं को समय दें, जो कश्मीर व भारत सरकार से नाराज हैं। फारूख अब्बदुला उन्हें समझा सकते हैं कि किसी की नाराजगी सरकार से हो सकती है, कश्मीर व राष्ट्र ने उनका क्या बिगाड़ा है।

युवा कच्ची मिट्टी जैसे होते हैं, जो बहकते भी बहुत जल्द हैं और समझते भी बहुत जल्द हैं। फारुख कश्मीरी युवाओं को खेती, बागवानी, पर्यटन, इंजीनियरिंग, प्रशासनिक सेवाओं में जाने की शिक्षा दे सकते हैं। नेशनल कांफ्रैंस विपक्ष में बैठी है तो क्या? पार्टी मर थोड़े ही गई है। चीन पाकिस्तान दोनों मिलकर भी नेश्नल कांफ्रैंस का भला नहीं कर सकते जितना भला कि कश्मीर के लिए नेश्नल कांफ्रैंस को चुनने वाले कर सकते हैं। अत: फारूख अब्बदुला को राष्ट्र व कश्मीरियों के साथ खड़ा होना चाहिए न कि चीन या पाकिस्तान के साथ। कश्मीर भारत का हिस्सा है इस तथ्य को फारूख अब्बदुला मिटा नहीं सकते। अत: वह आसमान की तरफ मुंह करके थूकने की जहमत न उठाएं, भारत की समस्या को भारत स्वयं सुलझा लेगा। बस समय का फेर है।

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