Moong Ki Kheti : बेहतर उत्पादन के लिए कतारों में करें बिजाई

Moong Crop

– Moong Ki Kheti –

दालों की बढ़ती मांग व आयात खर्च को देखते हुए दलहनी फसलों की खेती को महत्व तथा उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। मूंग की खेती ग्रीष्म व खरीफ दोनों मौसम में होती है। हरियाणा प्रदेश में धान गेहूं के क्षेत्रों में अधिकांशतया ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती (Moong Ki Kheti) होती है, जबकि दक्षिण पश्चिम क्षेत्रों में अधिकांशतया वर्षाकालीन मूंग की खेती होती है। कम समय में पकने व भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में सहायक होने के कारण मूंग की खेती की संसाधन संरक्षण में अहम भूमिका होगी। गौरतलब है कि भारत में दलहनी फसलों की खेती 236.3 लाख हैक्टेयर में होती है, जबकि हरियाणा में इन फसलों की खेती 1.75 लाख हैक्टेयर में होती है।

कतारों में इतना रखें फासला

बीज की मात्रा व बिजाई का तरीका वर्षाकालीन मूंग की एक एकड़ में बिजाई के लिये 6 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। बिजाई कतारों में करें। कतारों का फासला 30-45 सें.मी. (1-1.5 फुट) तथा पौधों में 10 सें.मी. रखें। जीवाणु खादों से बीज उपचार के साथ-साथ बिजाई के समय 8 कि.ग्रा. नाईट्रोजन (17.5 कि.ग्रा. यूरिया) व 16 कि.ग्रा. फास्फोरस (35 कि.ग्रा. डी एपी) प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

निराई गोड़ाई और सिंचाई

वर्षाकालीन मूंग की फसल में वैशाखी मूंग की तुलना में अधिक खरपतवार उगते हैं। खरपतवारों की रोकथाम के लिये दो बार निराई गोड़ाई करनी चाहिये। पहली निराई 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 30-35 दिन बाद करनी चाहिये। वर्षाकालीन मूंग में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु लम्बे समय तक वर्षा ना होने की स्थिति में फसल की सिंचाई करें।

उपचारित बीज का करें प्रयोग, इस समय में बोएं

हालांकि धान रोपाई से पहले खेत में जो किसान मूंग की फसल लेना चाहते हैं, उनको गेहूं कटाई के तुरंत बाद ही मूंग की बिजाई कर देनी चाहिए। जबकि वर्षाकालीन मंूग के लिए जुलाई के पहले सप्ताह में बिजाई का उपयुक्त समय रहता है। जीवाणु खादों से बीज का उपचार मूंग की पैदावार बढ़ाने के लिये बीज का राइजोटीका व फास्फोटीका से उपचार करना चाहिए। एक एकड़ के लिये 50-50 मि.ली. राइजोटीका तथा फास्फोटीका की आवश्यकता होती है। टीकों के प्रयोग के लिये एक कप पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर बीज पर मिलाएं तथा इसके पश्चात टीका का घोल बीज पर लगाएं। बीजों को हाथ से अच्छी तरह मिला लें तथा बिजाई से पहले छाया में सुखा लें।

हानिकारक कीड़ों की रोकथाम

मूंग की फसल में बालों वाली सूण्डी, पत्ती छेदक, हरा तेला और सफेद मक्खी हानि पहुंचाते हैं। बीमारियां व रोकथाम पत्तों के धब्बों का रोग, पत्तों का जीवाणु रोग, जड़ गलन रोग तथा पीला मोजैक मूंग फसल की प्रमुख बीमारियां हैं। पत्तों के धब्बों व जीवाणु रोग की रोकथाम के लिये कॉपर आॅक्सीक्लाराईड 600-800 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। जड़ गलन की रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीज का 4 ग्राम थाइरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से सूखा बीज उपचार करें। पीला मोजैक की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्में उगाएं। सफेद मक्खी इस रोग को फैलाती है। रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।

मूंग की उन्नत किस्में

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वर्षाकालीन मूंग की किस्में 60-70 दिन में पक जाती हैं तथा अच्छी पैदावार देने में सक्षम हैं। प्रमुख उन्नत किस्मों में मुस्कान (एम एच 96-1), सत्या, एम एच 421, एम एच 318 शामिल हैं।

-रमेश कुमार, अशोक ढिल्लों एवं जयलाल यादव कृषि विज्ञान केन्द्र, महेन्द्रगढ़ (एचऐयू)।

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