Nato: नाटो का विस्तार और यूरोप की शांति

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उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) Nato की शिखर बैठक बिना किसी बड़ी उपलब्धि के समाप्त हो गई। बैठक में यूक्रेन की सदस्यता का मामला एक बार फिर अधरझूल में अटक गया। मंगलवार को यूरोपीय देश लिथुआनिया की राजधानी विनियस में जब दुनिया के इस सबसे बड़े सैन्य संगठन के नेता एकत्रित हुए तब उनके सामने सबसे अहम सवाल यूक्रेन को नाटो में शामिल किए जाने का था। इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध और उससे उत्पन्न परिस्थितियों से निबटने का सवाल भी उनके सामने था। लेकिन दोनों ही सवालों पर वैश्विक नेता किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाए।

पिछले साल मैड्रिड शिखर बैठक में नाटो नेताओं ने रूस को अपने-अपने देशों की सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरा बताते हुए अगले दशक के लिए ब्लू प्रिंट जारी किया था। अनुमान था कि लिथुआनिया में रूस की आक्रामकता के खिलाफ नाटो नेता कुछ ठोस कदम उठा पाएंगे। बैठक में नाटो के 31 सदस्य देशों के अलावा आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के नेता भी उपस्थित थे। Nato

बैठक में स्वीडन और यूक्रेन की सदस्यता का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा। स्वीडन की सदस्यता के कट्टर विरोधी तुर्किये द्वारा अपनी आपत्तियां वापिस लिये जाने के बाद स्वीडन की सदस्यता का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन सदस्य देशों के बीच यूक्रेन की सदस्यता को लेकर आम-सहमति नहीं बन पाई। ब्रिटेन ने जरूर यूक्रेन की सदस्यता का समर्थन किया। र्ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने नाटो सदस्यता की शर्तों को पूरा किए बिना ही कीव को फास्ट ट्रैक सदस्यता प्राप्त करने के लिए दबाव डाला।

शर्तें पूरी होंगी तो यूक्रेन को समूह में शामिल किया जा सकेगा | Nato

दूसरी ओर अधिकतर नाटो देश यह कहते हुए दिखाई दिए कि युद्ध समाप्त होने तक यूक्रेन इसमें शामिल नहीं हो सकता है। नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि नाटो नेताओं के बीच इस बात को लेकर समहति बनी है कि जब सहयोगी देशों में रजामंदी होगी और शर्तें पूरी होंगी तो यूक्रेन को समूह में शामिल किया जा सकेगा। नाटो के निर्णय से असतुष्ट यूक्रेनी राष्टÑपति जेलेंस्की ने इसे ‘बेतुका’ निर्णय बताया। सच तो यह है कि नाटो का मानना है कि जेलेंस्की पहले रूस के खिलाफ युद्ध को जीते, क्योंकि जब यूक्रेन अस्तित्व में रहेगा तभी सदस्यता को लेकर बात आगे बढ़ाई जा सकती है। Nato

2004 में लिथुआनिया के गठबंधन में शामिल होने के बाद यह पहला अवसर था, जब लिथुआनिया में इस तरह की हाई-प्रोफाइल अतंरराष्ट्रीय बैठक हुई। बैठक के मद्देनजर लिथुआनिया में सुरक्षा के तकड़े प्रबंध किए गए थे। अमेरिका निर्मित अब्राम्स टैंक, जर्मन तेंदुए और मार्डर्स तथा पैट्रियट मिसाइल डिफीस के अलावा अन्य सुरक्षा उपकरणों का सहारा लिया गया । पूरी राजधानी को अभेद्य किले में बदल दिया गया था। सड़कों पर बख्तरबंद वाहन गस्त करते दिखाई दिए। नाटो के जेट आकाश से लिथुआनिया पर नजर बनाए हुए थे। लिथुआनिया ने अपने इतिहास सुरक्षा के इतने कड़े इतजाम कभी नहीं किए होंगे जितने इस नाटो बैठक के लिए किए थे।

रूस के अहम सहयोगी बेलारूस की सीमा से कुछ ही दूरी पर होने वाली नाटो नेताओं की इस बैठक पर रूस, चीन और उत्तर कोरिया सहित दुनिया भर के देशों की निगाहें लगी थी। ऐसे में सबसे अहम सवाल यह था कि इस हाई प्रोफाइल बैठक में यूरोप को परमाणु युद्ध की विभीषका से बचाने के लिए कोई बुद्विमतापूर्ण पहल होगी या हर बार की तरह यह बैठक भी भाषणों और घोषणा-पत्रों तक ही सिमट कर रह जाएगी। लिथुआनिया, जहां नाटो की बैठक हुई कभी सोवियत यूनियन का हिस्सा था। अब नाटो का सदस्य है।

एस्टोनिया और लातविया भी 2004 से नाटो और यूरोपीय यूनियन के सदस्य हैं। रूस इनके खिलाफ रहा है। अब जिस तरह से लिथुआनिया ने बैठक की मेजबानी कर रूस के खिलाफ ताल ठोकी है। क्या उस पर पुतिन चुप रहेंगे। महज 28 लाख की आबादी वाला लिथुआनिया बाल्टिक देशों में सबसे छोटा होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय के आधार पर यूक्रेन को सैन्य सहायता देने वालों में शीर्ष पर है। वह यूक्रेन को नाटो में शामिल करने का कट्टर समर्थक रहा है। लिथुआनिया के इस दुस्साहस पर पुतिन किस तरह का रिएक्ट करेंगे। यह देखना भी काफी दिलचस्प होगा।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के विस्तार के कथित खतरे के जवाब में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कुछ पश्चिमी यूरोपीय देशों ने 1949 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ( नाटो ) का गठन किया था। स्थापना के समय इसमें 12 सदस्य थे। पिछली शिखर बैठक तक इसके सदस्य देशों की संख्या 30 थी। हाल ही में फिनलैंड के शामिल हो जाने के बाद इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है। Nato

नाटो सदस्य के रूप में यह फिनलैंड का पहला शिखर सम्मेलन था। नाटो चार्टर का अनुच्छेद 5 इस सैन्य गठबंधन का मुख्य आधार है जो सामूहिक रक्षा की गांरटी देता है। यह नाटो के सदस्य देशों को एक-दूसरे की रक्षा करने और गठबंधन के भीतर एकजुटता की भावना स्थापित करने के लिए बाध्य करता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अगर नाटो के सदस्य देश पर गैर सदस्य देश द्वारा हमला किया जाता है, तो सभी सदस्य इसे अपने पर किया गया हमला मानेंगे और सामूहिक रूप से जवाब देंगे। अनुच्छेद 5 यूक्रेन जैसे गैर-सदस्य देश पर लागू नहीं होता है। Nato

हालांकि, 1992 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय दोस्तों द्वारा निर्मित इस सैन्य गठबंधन का महत्व कम होने लगा था। सामरिक मामलों के जानकार यहां तक कहने लगे थे कि अगर आने वाले वक्त में नाटो यूरोप में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाता है, तो इसकी अहमियत समाप्त हो जाएगी। लेकिन साल 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा किए जाने के बाद हालात बदल गए। अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जिस तरह से यूक्रेन पर हमला कर अमेरिका और यूरोप को चुनौती दी है, उसके बाद नाटो पुन: 1992 से पहले वाली स्थिति में आ गया है।

पिछली बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूरोप में अमेरिका की सैन्य उपस्थिति में भारी वृद्धि की घोषणा की जिसमें पोलैंड में एक स्थायी अमेरिकी बेस, स्पेन में दो नौसेना विध्वंसक बेस और दो एफ-35 स्क्वाड्रन शामिल है। नि:संदेह, बाइडेन के निर्णय और अब स्वीडन के आने से यूरोप में नाटो की शक्ति में विस्तार होगा। लेकिन शक्ति विस्तार की लिप्सा में यूरोप की शांति का क्या होगा। इस यक्ष प्रश्न पर नाटो नेताओं को विचार करना चाहिए।

डॉ. एन.के सोमानी, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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