जलवायु परिवर्तन से पीड़ित नई पीढ़ी

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जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में सोलह वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता स्वीडिश किशोरी ग्रेटा थुनबर्ग ने सवाल उठाने के साथ गुस्सा भी जताया है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को संबोधित करते हुए ग्रेटा ने अपने 15 युवा साथियों के साथ विश्वभर के नेताओं के सामने बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर अपनी चिंता व शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में कहा है कि खासतौर से पांच देशों ने ग्लोबल वार्मिंग की शर्तों का उल्लंघन करते हुए इस पर नियंत्रण की कोई पहल नहीं की। जर्मनी, फ्रांस, ब्राजील, अर्जेंटीना एवं तुर्की बाल अधिकार सम्मेलन के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। ग्रेटा ने राष्ट्र प्रमुखों पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं लाने के लिए युवा पीढ़ी से विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा, आपने अपनी खोखली बातों से मेरे सपने और बचपन को छीन लिया है। लोग त्रस्त हैं, लोग मर रहे हैं और पृथ्वी का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो रहा है। हम सामूहिक विलुप्ती की कगार पर हैं और आप हैं कि धन कमाने और आर्थिक विकास की काल्पनिक कथाओं का ढ़िढोरा पीट रहे हैं।ह्य ग्रेटा का यह भाषण दुनियाभर में चर्चित हो रहा है।

याद रहे अमेरिका को छोड़ संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने बाल स्वास्थ्य एवं अधिकार रक्षा से जुड़ी संधि को मंजूरी दी थी। यह शिकायत 2014 में अस्तित्व में आए ह्यवैकल्पिक प्रोटोकॉल के अंतर्गत की गई है। इसमें नियम है कि यदि बच्चों को लगता है कि उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है, तो वे संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। शिकायत मिलने पर समिति बिंदुवार आरोपों की जांच करती है और फिर संबंधित देशों से इनके निपटारे की सिफारिश करती है। 44 देशों ने किशोरों के इस वैकल्पिक प्रोटोकॉल को अपना समर्थन दिया है। दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देशों में अमेरिका, चीन और भारत हैं। लेकिन इन्होंने इस प्रोटोकॉल को मंजूरी नहीं दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो इस आवाज को बेहद हल्के लहजे में लेते हुए एक ट्विट करके इसकी हंसी उड़ाते हुए लिखा है, वह बेहद खुशहाल लड़की (हैप्पी यंग गर्ल) नजर आ रही है, जो उज्जवल और अद्भुत भविष्य की तलाश में है। यह देखकर अच्छा लगा। हैप्पी यंग गर्ल कह जाने पर सोशल मीडिया पर ट्रंप के विरुद्ध गुस्सा भड़का हुआ है।

अमेरिका ने जी-20 शिखर सम्मेलन में जलवायु समझौते पर भी असहमति जताई है। इस तरह अमेरिका इस बैठक में अलग-थलग पड़ गया है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मरकेल ने कहा था कि जी-20 देश जलवायु संकट के समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, जिस पर अर्जेंटीना में हुई पिछली बैठक में सहमति बनी थी। हालांकि अमेरिका ने इसी समय पेरिस समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर दी थी। यह सम्मेलन जापान के ओसाका शहर में संपन्न हुआ है। समूची दुनिया में जहां धरती को बचाने की चिंता की जा रही है, वहीं अमेरिका ने इस जलवायु संकट को व्यापार का सुनहरा अवसर मान लिया है। अमेरिका के इस कुतर्क से दुनिया के पर्यावरणविद् हैरान हैं। क्योंकि आर्कटिक में पिघलती बर्फ का सीधा संबंध सूखे, बाढ़ और लू के साथ माना जा रहा है। समुद्री व हिमालयी बर्फ के पिघलने से जलस्तर बढ़ रहा है। जिसके नतीजे दिखने लगे हैं। इंडोनेशिया ने अपनी राजधानी जकार्ता बदलने का प्रस्ताव संसद से पारित करा लिया है। जकार्ता दुनिया में तेजी से डूबने वाले शहरों में से एक है। समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण जकार्ता का बड़ा हिस्सा 2050 तक डूब सकता है। भारत में भी समुद्र के जल स्तर में वृद्धि की वजह से समुद्र तटीय इलाकों में तूफान, सुनामी, तटीय बाढ़, ऊंची लहरों और निचले इलाकों में मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार पूर्व औद्योगिक काल से आज तक दुनिया का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। 1850-1900 में तापमान के स्तर में 2018 के पहले 10 महीनों के दौरान औसत वैश्विक तापक्रम करीब 0.98 डिग्री सेल्सियस अधिक है। पिछले 22 साल में 20 सबसे गर्म साल रहे हैं। इनमें 2015 से 2018 के चार साल शीर्ष पर हैं। यदि यही प्रकृति बनी रही तो 2100 तक वैश्विक तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान है। ताजा विश्व ऊर्जा संख्यिकी की समीक्षा के अनुसार चीन दुनिया में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन 27 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन करता है। यह दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में शीर्ष 10 देशों की 60 प्रतिशत भागीदारी है। अमेरिका 15, रूस 10 और भारत महज 7.1 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन में भागीदार है। जापान 2.9, ब्राजील 2.4, ईरान 1.8, इंडोनेशिया 1.8, कनाडा 1.6 और मैक्सिको 1.5 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन में भागीदार हैैं। धरती के गर्म होने का यही परिणाम रहा तो बर्फीला महाद्वीप आर्कटिक तेजी से सिकुड़ता चला जाएगा। यहां मौजूद बर्फ के पिघलने की गति तेज हो गई है। 1980 में यहां 77 लाख वर्ग किमी में बर्फ फैली थी, जो 2018 में घटकर 46 लाख वर्ग किमी रह गई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि बर्फ पिघलने की यही रफ्तार रही तो 2050 तक आर्कटिक बर्फ विहीन हो जाएगा। अफ्रीका और एशिया के कमोबेश सभी शहर मौसम की अतिवृष्टि और अनावृष्टि के खतरों की चपेट में है।

अमेरिका में कोयले से कुल खपत की 37 फीसदी बिजली पैदा की जाती है। इस बिजली उत्पादन में अमेरिका विश्व में दूसरे स्थान पर है। कोयले से बिजली उत्पादन करने से सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। इस दिशा में भारत ने बड़ी पहल करते हुए 50 करोड़ एलईडी बल्बों से प्रकाश व्यवस्था लागू कर दी है। इस प्रक्रिया से कॉर्बन डाइआॅक्साइड में 11 करोड़ टन की कमी लाने में सफलता मिली है। इसकी अगली कड़ी में सघन औद्योगिक ईकाइयों की ऊर्जा खपत को तीन वर्षीय योजना के तहत घटाया जा रहा है। पेरिस समझौते के अंतर्गत भारत ने कार्बन उत्सर्जन में 30-35 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य 2005 की तुलना में रखा है। किंतु अमेरिका ने कोयले की चुनौती से निपटने के अब तक कोई उपाय नहीं किए ? जबकि अमेरिका ने जलवायु समझौते के तहत 32 प्रतिशत जहरीली गैसों का उत्सर्जन 2030 तक कम करने का वायदा किया था। अमेरिका के 600 कोयला बिजली घरों से ये गैसें दिन रात निकलकर वायुमंडल को दूषित कर रही हैं। अमेरिका की सड़कों पर इस समय 25 करोड़ 30 लाख कारें दौड़ रही हैं। यदि इनमें से 16 करोड़ 60 लाख कारें हटा ली जाती हैं तो कार्बन डाई आॅक्साइड का उत्पादन 87 करोड़ टन कम हो जाएगा।

ऐसे में ग्रेटा की आवाज में आवाज मिलाने की जरूरत है। गे्रटा ने एकाएक यह चिंता नहीं जताई है, इसके पहले भी वे अगस्त 2018 से प्रति शुक्रवार को अपना विद्यालय छोड़कर जलवायु परिवर्तन के लिए आवाज बुलंद करती रही हैं। महात्मा गांधी से प्रभावित ग्रेटा स्वीडिश संसद के सामने भी धरने पर बैठ चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र के अलावा ग्रेटा ब्रिटेन, इटली और यूरोपीयन संसद में भी अपनी चिंता जता चुकी हैं। उनके इस आंदोलन से प्रभावित होकर इसी साल 20 सितंबर 2019 को 150 देशों में आंदोलन हुए हैं। ग्रेटा की कथनी और करनी में अंतर नहीं है। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन के चलते हवाई यात्रा छोड़ दी है। सड़क और जलमार्ग से यात्राएं करती हैं। ट्रंप जैसे लोग ग्रेटा के आंदोलन का मजाक उड़़ाते हुए, इसे उसका बचपना बता रहे हैं। लेकिन ग्रेटा जिस तरह से सक्रिय दिखाई दे रही हैं, उससे लगता है कि दुनिया के राष्ट्र प्रमुखों को पर्यावरण के प्रति सचेत होना पड़ेगा। अन्यथा ग्रेटा की आवाज में पूरी दुनिया के युवा आवाज मिलाने को मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का बढ़ता संकट इन्हीं युवा पीढ़ियों के भविष्य के लिए खतरा बनकर उभर रहा है।
-प्रमोद भार्गव

 

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