मध्यप्रदेश और राजस्थान की मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं के नाम होने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने हाल ही में चुनाव आयोग को एक नोटिस जारी किया है। जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने केन्द्रीय चुनाव आयोग के साथ-साथ इन दोनों राज्यों के निर्वाचन आयोग को भी नोटिस भेजा है। इस महीने की 31 तारीख तक उन्हें अदालत में अपना जवाब दाखिल करना होगा। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और राजस्थान कांगे्रसाध्यक्ष सचिन पायलट ने दाखिल की है। याचिका में अदालत से गुहार लगाई गई है कि पार्टी ने जब अपने खर्चे से इन राज्यों में एक सर्वे कराया, तो मध्यप्रदेश में मतदाता सूची में 60 लाख से ज्यादा नाम दो बार पाए गए, तो कमोबेश यही हालात राजस्थान का भी निकला। अकेले जयपुर शहर के आठ विधानसभा क्षेत्रों में करीब 2 लाख 45 हजार फर्जी मतदाता पाए गए हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों में एक वोटर का नाम, दो से लेकर चार जगह तक दर्ज है। लिहाजा अदालत, चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह मध्यप्रदेश और राजस्थान में बोगस वोटरों को सूची से तत्काल हटाए। कांग्रेस पार्टी ने अपनी इस याचिका में अदालत से यह भी मांग की है कि इन राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव निष्पक्ष कराने के लिए वीवीपीएटी मशीनों का औचक परीक्षण और मतदाता सूची से मिलान किया जाए। वीवीपीएटी से निकलने वाली पर्ची दिखाने का वक्त सात सेकंड से बढ़ाया जाए। जाहिर है कि याचिका में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं, वे बेहद गंभीर हैं और इन्हें नजरअंदाज करना, लोकतंत्र को कमजोर करना होगा। यही वजह है कि इस संवेदनशील याचिका को न सिर्फ अदालत ने स्वीकार किया बल्कि केन्द्रीय निर्वाचन आयोग और प्रदेश निर्वाचन आयोग दोनों को नोटिस देकर इस संबंध में जवाब तलब किया है।
मतदाता सूची में फर्जी वोटरों का यह मामला कोई पहली बार नहीं उठा है, कांग्रेस पार्टी ने इससे पहले इसी साल जून महीने में चुनाव आयोग को मध्यप्रदेश के 101 विधानसभा क्षेत्रों की प्रमाण सहित शिकायत की थी कि इन क्षेत्रों में 60 लाख बोगस वोटर हैं। मतदाता सूचियों में कई मतदाताओं के नाम एक से अधिक बार हैं। कुछ के नाम अलग लेकिन फोटो एक समान हैं, कई के नाम एक से अधिक विधानसभाओं और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के कई मतदाता, मध्यप्रदेश की मतदाता सूची में दर्ज हैं। मतदाता सूची में बोगस मतदाता होने का इल्जाम अकेले कांग्रेस पार्टी ने ही नहीं लगाया था, बल्कि प्रदेश की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने खुद एक इंटरव्यू में यह बात स्वीकारी थी कि राज्य की मतदाता सूची में हजारों बोेगस वोटर हैं। बहरहाल आयोग ने इस शिकायत पर तत्परता दिखाते हुए जांच के लिए तत्काल आदेश तो दे दिए, लेकिन एक ही हफ्ते में अपनी जांच पूरी करते हुए, चुनाव आयोग ने इस शिकायत को यह कहकर खारिज कर दिया कि शिकायत झूठी है। एक तरफ निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की शिकायत खारिज कर दी, तो दूसरी ओर इस शिकायत के बाद से उसने अब तक प्रदेश की मतदाता सूची से करीब 24 लाख फर्जी मतदाताओं के नाम हटाए हैं। यानी चुनाव आयोग की जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत थी। उसने उस वक्त जांच सही तरह से करी ही नहीं थी। वरना 60 लाख बोगस वोटरों का मिलान एक हफ्ते से कम समय में हो ही नहीं सकता। सच बात तो यह है कि चुनाव आयोग ने 101 विधानसभा क्षेत्रों में से महज 5 विधानसभा क्षेत्रों की जांच के बाद अपना फैसला सुनाया था। अब जबकि सभी विधानसभा क्षेत्रों की मतदाता सूचियों की घर-घर जाकर दोबारा जांच हो रही है, तो फर्जी मतदाता बड़े पैमाने पर मिल रहे हैं।
फर्जी वोटर्स के मामले में राजस्थान में भी कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में केन्द्रीय चुनाव आयोग से लेकर जिला निर्वाचन अधिकारियों तक अपनी शिकायत दर्ज की है। कांग्रेस ने इस संबंध में बकायदा दोहरे मतदाताओं की सूची प्रस्तुत कर, इन्हें हटाने की मांग की है। जाहिर है कि विधानसभा क्षेत्र में एक वोटर का नाम दो जगह होना, पूरी तरह से गैर कानूनी है। जिस पर फौरन कार्यवाही करने की दरकार है। फर्जी वोटरकार्ड बनवाने का मकसद, कहीं न कहीं चुनाव को प्रभावित करना है। इस तरह की मतदाता सूची यदि दुरुस्त नहीं हुईं, तो निष्पक्ष चुनाव कैसे संपन्न होगा ? लोकतंत्र एक मजाक बनकर रह जाएगा। जब इस तरह की शिकायतें आती हैं, तो निश्चित तौर पर इन शिकायतों का निदान करना चुनाव आयोग की प्राथमिक जिम्मेदारी है। लेकिन जब वह अपना काम ईमानदारी से नहीं करेगा, तो इंसाफ के लिए अदालत का दरवाजा ही खटखटना पड़ेगा। यही वजह है कि अब यह मामला अदालत में है।
मध्यप्रदेश में मतदाता सूची में लाखों बोगस वोटरों की शिकायतों और ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों में खराबी को जिस तरह से चुनाव आयोग ने खारिज किया है, उससे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और विश्वसनीयता दोनों ही कठघरे में हैं। चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हों वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए। चुनाव से पहले मतदाता सूचियों की अच्छी तरह से जांच-परख हो। बोगस या फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से अलग किये जाएं। जो फायनल मतदाता सूची बने, वह त्रुटिरहित हो। ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों की अच्छी तरह से जांच की जाए, फिर उनका इस्तेमाल हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि चुनाव से पहले या उसके बाद में किसी भी उपाय से ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों के साथ छेड़छाड़ मुमकिन न हो। चुनाव आचार संहिता का पालन भेदभाव रहित किया जाए। यदि किसी क्षेत्र में कोई शिकायत सामने आए, तो उसकी तत्परता से जांच हो। जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराई जाए। ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर कोई सवाल न खड़ा करे। अकेले चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह देश में निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से संसदीय और विधानसभा चुनाव कराए। निर्वाचन प्रणाली पर जनता का यकीन कायम रहना, लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद जरूरी है। यदि चुनाव प्रणाली से ही उसका यकीन उठ जाएगा, तो वह क्यों चुनाव में हिस्सा लेगा ?
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