पाक की मजबूरी और दुविधा

Pakistan

पाकिस्तान की इमरान सरकार ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति जारी की है। इस नीति में आर्थिक सुरक्षा को महत्व देने की बात कही गई है। पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापारिक संबंध सुधारने की बात भी कही है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह स्वीकार किया है कि इससे पहले सेना पर ही पूरा फोक्स किया गया, जबकि जोर आर्थिकता पर देना चाहिए था। स्पष्ट है कि इमरान सरकार ने यह मान लिया है कि देश आर्थिक तौर पर बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है। पाकिस्तान पर इस वक्त बहुत ज्यादा कर्ज है। वास्तव में पाकिस्तान की विदेश नीति में आतंकवाद का दबदबा रहा है। पाकिस्तान को भी आतंकवाद की भारी कीमत चुकानी पड़ी। पाक में महंगाई इस कद्र बढ़ गई है कि आम जरूरतों की वस्तुओं के रेट भारत की अपेक्षा दस गुणा अधिक हैं। सरकार के पास न प्रोजैक्ट हैं और न ही निवेश है, यही नहीं एफएटीएफ ने भी पाकिस्तान को ग्रे-सूची में डाल दिया है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को मदद देनी बंद नहीं करता, तब तक विदेशी निवेश नहीं आएगा।

चीन जैसे देशों ने अपनी नीतियों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान को कर्ज में धकेल दिया। दरअसल, पाकिस्तान तब तक आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो सकता जब तक आतंकवाद को अपनी विदेशी नीति से नहीं निकालता। इसके अलावा पाकिस्तन को भारत जैसे पड़ोसी देश से अपने संबंध मधुर बनाने होंगे। पाक सेना भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देती आ रही है। अब वक्त है पाकिस्तान सरकार को सेना के दबाव से बाहर निकलना होगा। भले ही राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाने की बात महत्वपूर्ण है लेकिन कश्मीर का राग पहले की तरह फिर अलाप दिया। दरअसल पाकिस्तान सरकार आर्थिक बर्बादी के कारण बदलाव तो चाहती है लेकिन कहीं न कहीं अब भी सेना के दबाव में है। ऐसा लगता है कि सरकार सेना का इज्जत भी बचाए रखना चाहती है और नया रास्ता भी निकालना चाहती है। दरअसल अमन-शांति के लिए पहल करने के बिना बात बनती नजर नहीं आती। भारत का एक ही स्टैंड रहा है कि सीमा पर अमन के बिना बातचीत का रास्ता नहीं खुल सकता।

पाकिस्तान को यदि अपनी आर्थिकता की चिंता है तो इसका समाधान यही है कि व्यवहारिक व निष्पक्ष दृष्टि से काम करना होगा। आर्थिकता को उभारने के लिए अंतरराष्ट्रीय या पड़ोसी देश के साथ व्यापार बढ़ाने के बिना गुजारा नहीं। पाकिस्तान का विकास उसकी विदेश नीति से अलग नहीं हो सकता। कश्मीर मामले में दोहरा मापदंड अपनाने की बजाय पाकिस्तान को अमन व भाईचारे को पहल देनी चाहिए। इसीलिए बहादुर बनने की आवश्यकता है। सेना के नियंत्रण से बाहर निकलना पाकिस्तानी शासकों के लिए अग्नि परीक्षा है। फिर भी इस दिशा की तरफ आज नहीं तो कल चलना ही होगा, इसमें ही पाकिस्तान का अस्तित्व है।

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