कीटनाशक सबसे पहले किसानों के लिए खतरा

Pesticide
फसलों और सब्जियों पर पेस्टीसाइड्स का अत्यधिक इस्तेमाल करता युवक

पंजाब-हरियाणा में कीटनाशक (Pesticide) के अंधाधुंध प्रयोग करने पर एक नई चुनौती उत्पन्न हो गई है। डॉ. इकबाल सिंह, जिन्हें भारत सरकार एक्सीलेंस अवॉर्ड से सम्मानित कर चुकी है, उन्होंने अपनी रिसर्च में यह दावा किया है कि फसलों पर कीटनाशक के प्रयोग करने से किसान फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हो रहे हैं। उनका कहने का स्पष्ट अर्थ है कि जो किसान ज्यादा तेज कीटनाशकों का प्रयोग करने के उपरांत खेत में ही समय व्यतीत करते हैं, उनके फेफड़ों पर कीटनाशक का प्रभाव होने लगता है।

उन्होंने यह भी कहना है कि ऐसा प्रभाव अभी तक जैविक खेती करने वाले किसानों पर नहीं दिखा है। इसी सिलसिले में उन्होंने सुझाव दिया है कि कीटनाशक (Pesticide) प्रयोग वाले खेत में एक बोर्ड लगाया जाना चाहिए, जिस पर लिखा जाए कि लोग उक्त खेतों की तरफ न जाएं। स्प्रे वाली फसल के नजदीक से गुजरने वाला व्यक्ति भी प्रभावित होता है, जोकि बेहद चिंता का विषय है। अब इस समस्या से निपटने के लिए किसानों को खुद ही चेतना होगा। मानवीय जीवन का महत्व समझना और अधिक उपज की विचारधारा को त्यागना होगा।

यदि किसी को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई तो पैसा किस काम का। राज्य सरकारों को समय-समय पर किसानों के रक्त की जांच करवानी चाहिए ताकि किसी गंभीर स्थित से निपटने के लिए पहले से ही रणनीति बनाई जा सके। भले ही ताजा रिसर्च में बड़े खुलासे हुए, लेकिन यह तथ्य दो दशकों पहले भी सामने आ चुके हैं कि पंजाब कैंसर का घर बनता जा रहा है। बीकानेर को जाने वाली रेलगाड़ी को कैंसर एक्सप्रेस के नाम से चर्चा में रही है। पंजाब के बड़े शहरों में अस्पतालों की भरमार व अस्पतालों में मरीजों की भीड़ वास्तविक्ता बयान करती है। Pesticide

पंजाब के गांव-गांव में कैंसर के मरीज हैं। बीमारी की समस्या का समाधान केवल सस्ता उपचार या अस्पताल का निर्माण नहीं बल्कि बीमारी के कारणों का पता लगाकर मुक्ति दिलवाना है। आज भी किसान तेज कीटनाशक दवाईयां खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं। कभी निराई-गुड़ाई ही खरपतवार को खत्म करने के लिए काफी होती थी। इसी तरह खाल/नालों की सफाई कस्सियों से की जाती थी, लेकिन अब किनारों से घास की सफाई की बजाए उस पर कीटनाशक डालकर जला दिया जाता है, जिससे भूमि व वायु भी जहरीली बनती जा रहे हैं। Pesticide

वास्तव में पारंपरिक खेती को किसी न किसी रूप में अपानकर कृषि को जहरमुक्त बनाना अति आवश्यक है। ताजा रिसर्च के अनुसार सब्जी-फल खाने से ही लोग बीमार नहीं पड़ रहे बल्कि खुद किसान ही सबसे पहले कैंसर की चपेट में आ रहा है। पता नहीं अब तक ऐसी कितनी रिपोर्ट व खुलासे हो चुके हैं, लेकिन अब वक्त है सतर्क होने का। रिपोर्टों को अलमारियों में रखने की बजाए उन पर गहराई से विचार कर उन्हें धरातल पर लागू किया जाए। सरकारों को ऐसी रिपोर्र्ट्स पर गंभीर होना चाहिए। ज्ञान व रिसर्च का उद्देश्य पूरा होना आवश्यक है और यह सरकारों की जिम्मेवारी व नैतिक कर्तव्य भी है।