फुटकर बाजारों की व्यवस्था न कर पाना सरकार की विफलता

Police Brutality

पुलिस हेड-कांस्टेबल के दबंग व्यवहार के चलते कानपुर रेलवे स्टेशन पर एक किशोर के पैर कट गए, हादसा तब हुआ जब पुलिस कांस्टेबल द्वारा रेलवे परिसर में सब्जी बेच रहे किशोर का तराजू व अन्य सामान फेंक दिया गया, किशोर यूं ही अपना ये सामान उठाने के लिए पटरी पर उतारा तो ट्रेन की चपेट में आ गया। आए दिए पुलिस प्रशासन व रेहड़ी-फड़ी लगाने वाले विक्रेताओं की झड़पें होती रहती हैं। कमोबेश यह हर कस्बे व शहर की कहानी है। जहां पुलिस प्रशासन गुस्से से आपा खो बैठता है और उससे किसी न किसी को गंभीर जान-माल की क्षति पहुंच जाती है। इतना ही नहीं उस पर स्थानीय स्तर के नेता व यूनियन वाले धरना मारकर बैठ जाते हैं, प्रशासन से हाथ जुड़वाते हैं, माफी मंगवाते हैं, सत्ता में बैठे नेताओं का दबाव बनवाते हैं और किसी न किसी को बर्खास्त करवाकर ही शांत होते हैं। उक्त समस्याओं की जड़ तक बहुत कम जनप्रतिनिधि जाते हैं और समस्या के गंभीर व स्थायी हल की ओर बढ़ते हैं।

यहां पुलिस प्रशासन में फैला भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है जो विक्रेता आसपास के पुलिस वालों को हफ्ता या बन्धी देता है उसे कोई नहीं रोकता भले ही वह पूरा रास्ता, पूरा फुटपाथ घेरकर बैठ जाए, जिसके पास देने को कुछ नहीं होता उसे दूर कोने में भी नहीं बैठने दिया जाता और बार-बार डंडा फटकार कर उसे दूर-दूर तक दौड़ाया जाता है। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, बाजारों में यह पल-पल का घटनाक्रम है जो दिनरात चलता ही रहता है। इस सबके पीछे सरकार, स्थानीय प्रशासन की भी नाकामी है जो बढ़ रही आबादी व घट रहे रोजगार को व्यवस्थित करने के लिए वक्त से पहले विक्रेताओं के लिए सुरक्षित स्थान नहीं बना पाता। पुलिस प्रशासन इस तरह के झगड़े फसाद में बहुत बार सही होते हुए भी पिस जाता है।

कानपुर रेलवे स्टेशन की अगर बात की जाए तब वहां पुलिस हेड-कांस्टेबल अपनी ड्यूटी पर था, पीड़ित किशोर को रेलवे परिसर में सब्जी बेचने का कोई वैध अधिकार नहीं था। फिर भी नुक्सान दोनों को उठाना पड़ा, एक की नौकरी पर बन आयी दूसरे के पांव चले गए। पुलिस कर्मी का कसूर इतना है कि उससे बल का अतिरेक हो गया, किशोर का कसूर इतना था कि वह कोई न कोई काम करके अपना व परिवार का पेट भरना चाह रहा था और गलत जगह का चुनाव कर बैठा। देश भर में सड़क किनारे, बाजारों की सार्वजनिक जगहों पर, रेलवे परिसरों के आसपास बैठे लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा स्थानों की व्यवस्था हो, पुलिस प्रशासन को भी हफ्ता वसूली या बन्धी का लालच छोड़ कानून व व्यवस्था पर ही पूरा ध्यान रखना चाहिए ताकि जनता भी परेशान न हो और प्रशासन भी रोज-रोज के झगड़ों से बचे।

आमजन को भी समझना चाहिए कि पुलिस की ड्यूटी है हर स्थान को सुरक्षित रखना, अगर सार्वजनिक स्थानों पर नियम विरुद्ध जमावड़ा या भीड़भाड़ रहती है तो इससे सबकी सुरक्षा भी दांव पर लगी रहती है, यहां स्थानीय जनप्रतिनिधियों व सरकार की अंतिम जिम्मेवारी है कि वह अपने लोगों के जीवन निर्वाह, शांति, सुरक्षा, कुशल प्रशासन को कैसे बनाए रखती है। अन्यथा बढ़ रही आबादी व घट रहे रोजगार एवं जगह के चलते कानपुर जैसे हादसे घटने की बजाए बढ़ते रहेंगे और नित नए कांस्टेबल व किशोर पिसते रहेंगे।

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