तोशाम (सच कहूँ/विरेंद्र सिंह)। Tosham News: कहते हैं, अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी बाधा मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। इस कहावत को सच कर दिखाया है गांव डाडम की बेटी पूजा इन्सां ने दृष्टिबाधिता जैसी चुनौती के बावजूद पूजा ने हार नहीं मानी और आज वह भारतीय दृष्टिबाधित महिला फुटबॉल टीम की कप्तान बनकर देश, प्रदेश और अपने गांव का नाम रोशन कर रही हैं। पूजा इन्सां बचपन से ही दृष्टिबाधित हैं, लेकिन उन्होंने अपनी इस कमजोरी को कभी अपनी राह में रुकावट नहीं बनने दिया। Tosham News
पूजा बताती हैं कि 2024 से पहले वह क्रिकेट खेला करती थी, लेकिन कुछ परिस्थितियों में कोच के साथ अनबन होने के बाद उन्होंने और उनकी एनजीओ की अन्य आठ सहेलियों ने क्रिकेट छोड़कर फुटबॉल खेलना शुरू किया। शुरूआत में यह फैसला कठिन था, क्योंकि फुटबॉल एक नया खेल था और दृष्टिबाधित खिलाड़ियों के लिए इसे सीखना आसान नहीं था। परंतु पूजा ने इसे चुनौती के रूप में लिया और दिन-रात मेहनत करके जल्द ही इस खेल में अपना स्थान बना लिया। उन्होंने बताया कि दृष्टिबाधिता के कारण उन्हें स्कूल से लेकर समाज तक कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
कई बार स्टाफ सदस्य या सहपाठी उनके साथ अलग व्यवहार करते थे, लेकिन उन्होंने इन नकारात्मक परिस्थितियों को अपनी प्रेरणा बना लिया। पूजा का कहना है कि मैं चाहती हूं कि समाज दृष्टिबाधित लोगों को दया की दृष्टि से नहीं बल्कि उनकी क्षमता के आधार पर देखे। उन्होंने 16 से 20 अक्टूबर 2024 को पुणे के नुवा में आयोजित राष्ट्रीय दृष्टिबाधित फुटबॉल चैंपियनशिप में अपनी कप्तानी में टीम को विजेता बनाया। इस टूर्नामेंट में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें प्लेयर आॅफ द टूर्नामेंट का खिताब भी मिला। इसके अलावा पूजा ने केरल के कोच्चि में आयोजित आईबीएसए महिला दृष्टिबाधित विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जहां भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पांचवां स्थान प्राप्त किया। अब वह एक से 3 नवंबर तक जमशेदपुर (झारखंड) में होने वाली आईबीएफएफ नॉर्थ सेंट्रल जोनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेंगी। Tosham News
दृष्टिबाधिता को नहीं माना कमजोरी: पूजा
पूजा इन्सां का अगला लक्ष्य और भी बड़ा है। वे पैरा ओलंपिक खेलना चाहती हैं। वह कहती हैं कि उनकी मेहनत और लगन का मकसद केवल अपनी सफलता नहीं, बल्कि अन्य दृष्टिबाधित युवाओं को प्रेरित करना है ताकि वे भी अपने सपनों को हकीकत में बदल सकें। उनके पिता इकबाल इन्सां अपनी बेटी की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करते हैं। वे कहते हैं, पूजा बचपन से ही बहुत मेहनती रही है। उसने कभी अपनी दृष्टिबाधिता को कमजोरी नहीं माना। आज जब वह भारत की कप्तानी कर रही है, तो पूरे परिवार को गर्व है।
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