कोयला संकट

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बढ़ती गर्मी के बीच देश के कई हिस्सों में बिजली संकट गहराने की खबरें चिंता का कारण हैं। बिजली संकट का एक कारण कोयले की कमी बताया जा रहा है, लेकिन केंद्रीय कोयला मंत्री की मानें तो देश में पर्याप्त कोयला मौजूद है। यदि वास्तव में ऐसा है तो फिर कुछ राज्यों में बिजली कटौती की शिकायतें क्यों आ रही हैं? प्रश्न यह भी है कि यदि कोयले से संचालित बिजलीघर उसकी कमी का सामना नहीं कर रहे हैं तो फिर रेलवे को कोयले की ढुलाई के लिए विशेष व्यवस्था क्यों करनी पड़ रही है? दिल्ली में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि विभिन्न अस्पतालों और मेट्रो तक पर असर पड़ने की आशंका जताई जाने लगी है। कई राज्यों में इंडस्ट्री से बाकायदा बिजली की खपत कम करने को कहा गया है। कोरोना और यूक्रेन युद्ध के झटकों के बावजूद खड़ी हो रही इकॉनमी के सामने यह एक और बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है।

आज भी देश में करीब 70 फीसदी बिजली उत्पादन कोयले की मदद से ही होता है और देश के पावर प्लांटों में कोयले की उपलब्धता का यह हाल है कि इस महीने की शुरूआत के मुकाबले भी इसमें 17 फीसदी की कमी आ गई है। यह आवश्यक स्तर का बमुश्किल एक तिहाई है। लेकिन यह तो संकट का सिर्फ एक पहलू है। सप्लाई में कमी के साथ ही जो चीज इस संकट को ज्यादा गंभीर बना रही है वह है मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी। गर्मी ने इस बार न केवल समय से पहले दस्तक दे दी बल्कि इसकी तीव्रता भी काफी बढ़ी हुई है। इस साल मार्च में देश का औसत तापमान 33 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो 1901 में जब से रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया तब से लेकर अब तक का अधिकतम तापमान है। अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंचा हुआ है। यानी आम तौर पर गर्मी की जो स्थिति मई में बनती है, वह अप्रैल में बनी हुई है।

पूरे देश में बिजली की बढ़ी हुई मांग को समझने के लिए यह एक मिसाल ही काफी है। भारत में भीषण गरमी के चलते छह साल से अधिक समय में सबसे विकट बिजली की कमी देखी जा रही है। चूंकि भारत में विद्युत उत्पादन ज्यादातर कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों में होता है, इसलिए कोयले की मांग बहुत बढ़ गई है। कोयले का भंडार कम से कम नौ वर्षों में सबसे कम पूर्व-ग्रीष्मकालीन स्तर पर है। समस्या के बढ़ने से पहले ही समाधान सुनिश्चित कर लेना चाहिए। गौर करने की बात है कि कोयले की आपूर्ति अबाध करने के लिए अनेक ट्रेनों के संचालन को रोका गया है। इसका मतलब केंद्र सरकार गंभीर है। इसमें कोई शक नहीं, कोयले के अभाव की वजह से संकट खड़ा हुआ, तो केंद्र सरकार को ही आलोचना झेलनी पड़ेगी। बिजली क्षेत्र की जरूरतों को युद्ध स्तर पर पूरा करना चाहिए और लोगों की भी जिम्मेवारी बनती है कि वो बिजली खपत घटाएं। बिजली सबको चाहिए, तो इसके लिए सबको सोचना भी पड़ेगा।

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