Vladimir Putin: बढ़ सकती हैं खाद्य पदार्थों की कीमतें व खाद्य संकट

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Vladimir Putin: रूस ने यूक्रेनी अनाज को काला सागर के जरिये दुनिया के बाजारों में सुरक्षित पहुंच को मंजूरी देने वाले ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव (बीएसजीआई) अर्थात काला सागर अनाज समझौते से खुद को अलग कर लिया है। रूस के इस फैसले के बाद दुनिया भर के बाजारों में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने व खाद्य संकट उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। हालांकि, समझौते में बड़ी भूमिका निभाने वाले तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैयब आर्दोआन का विश्वास है कि रूस को समझौते में वापस लौटने के लिए राजी किया जा सकता है।

लेकिन अहम सवाल यह है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया को भुखमरी की ओर धकेलने वाला यह फैसला क्यों लिया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पुतिन यूक्रेन युद्ध में अनाज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के मूड में हो। या फिर पुतिन बीएसजीआई की आड़ में पश्चिमी देशों पर सौदेबाजी के लिए दबाव बना रहे हों। पुतिन के वक्तव्य से तो यही लग रहा है। वे बार-बार कह रहे हंै कि मास्को के हितों की अनदेखी की जा रही है। इस समझौते से रूस को वो फायदा नहीं हुआ जिसका वादा किया गया था।

काला सागर दक्षिणपूर्वी यूरोप और एशिया के बीच एक रणनीतिक क्षेत्र है, जिसके जरिए समुद्री, महाद्वीपीय, भू-रणनीतिक और आर्थिक हितों को एक साथ साधा जा सकता है। यूक्रेन जिसे यूरोप की ‘बे्रडबास्केट’ कहा जाता है, दुनिया के सबसे बड़े अनाज आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। वह वैश्विक बाजार में सालाना 45 मिलियन टन से अधिक अनाज उपलब्ध कराता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार यूक्रेनी अनाज दुनिया भर में 400 मिलियन लोगों का पेट भरता है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूसी नौसैनिक जहाजों ने यूक्रेन के बंदरगाहों की नाकेबंदी की तो 20 मिलियन टन से अधिक अनाज बंदरगाहों पर खड़े कंटेनरों में अटक कर रह गया।

रूस की इस कार्रवाई से अफ्रीका और मध्य पूर्व के कई देशों में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया। खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान को छूने लगी। ऐसे में अनाज और अन्य उर्वरकों की सस्ती पहुंच के लिए पिछले साल जुलाई में रूस, तुर्किए, यूक्रेन और संयुक्त राष्ट्र ने काला सागर अनाज पहल या ब्लैक सी र्ग्रेन इनिशिएटिव के रूप में यह समझौता किया था। समझौते के तहत यूक्रेन के तीन बंदरगाहों ओडेसा, चोनोर्माेर्स्क और पिवडेनी से जहाजों को सुरक्षित मार्ग की गारंटी दी गई थी । समझौते की पालना के लिए तुर्किए के इस्तांबुल में एक संयुक्त समन्वय केन्द्र (जेसीसी) स्थापित किया गया। समझौते को वैश्विक अनाज संकट को हल करने की दिशा में एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया था।

यूक्रेन पर रूसी हमलों के बाद जहां एक और खाद्य पदार्थो की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो गई थी वहीं समझौते के बाद कीमतें गिरना शुरू हो गई। लगभग एक वर्ष के दौरान इसमें 23 फीसदी की कमी आई है। समझौते की बदौलत मई 2023 तक यूक्रेन द्वारा 32 मिलियन टन से अधिक अनाज (मक्का और गेहंू) का निर्यात किया गया है। समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद गेहंू और मक्के की कीमतों में क्रमश: 17 प्रतिशत और 26 प्रतिशत की गिरावट आई है।

कुल मिलाकर कहा जाए तो समझौते के बाद यूक्रेन से होेने वाले खाद्यन निर्यात के कारण वैश्विक अनाज बाजारों ने राहत की सांस ली। इस समझौते की बदौलत ही संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य मूल्य सूचकांक में गुजरे एक साल के दौरान हर महीने कीमतों में गिरावट दर्ज की गई थी। मार्च 2022 के अपने सर्वाधिक उच्च स्तर के बाद से जुलाई 2023 तक इसमें 23 प्रतिशत गिरावट दर्ज की जा चुकी हैं। रूस ने 17 जुलाई को जैसे ही डील खत्म करने का ऐलान किया इंटरनेशनल मार्केट में खाद्य प्रदार्थो की कीमते 3 गुना तक बढ़ गई। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि बीएसजीआई वैश्विक अनाज बाजार के लिए किस कदर जरूरी था। Vladimir Putin

पूरे मामले में पुतिन के पक्ष को भी देखा जाना चाहिए। पुतिन लंबे समय से यह शिकायत कर रहे थे कि पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से रूस को अपने खाद्य पदार्थो और फटीर्लाइजर निर्यात करने की अनुमति देने वाले समझौते के हिस्से का पालन नहीं किया जा रहा है। पुतिन ने गरीब देशों तक अनाज नहीं पहुंचने की बात भी कही। पुतिन का आरोप बेजा नहीं है। समझौते के पक्ष में दलील तो यही दी जा रही थी कि इसके जरिये अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देशों को खाद्यन संकट से बचाने में मदद मिलेगी। लेकिन वास्तविकता यह थी कि यूक्रेनी बंदरगाहों से जाने वाले अनाज का एक बड़ा हिस्सा यूरोप के अमीर देशों के बाजारों में बिक रहा था। Vladimir Putin

जबकि इन्हीं देशों ने अमेरिका के साथ मिलकर रूस की अर्थव्यस्था का गला घोंटने के लिए उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। सच तो यह है कि समझौते की पूरी अंतर्कथा में रूस को खोने के लिए सब कुछ था पाने के लिए कुछ भी नहीं। लेकिन इसके बावजूद पुतिन ने सद्भावना दिखाई। मॉस्कों के हितों की अनदेखी होने के बावजूद वे समझौते के नवीनीकरण के लिए राजी हुए। लेकिन जब कीव ने क्रीमिया प्रायद्धीप को रूस से जोड़ने वाले केर्च ब्रिज पर हमला कर पुतिन को ललकारने का दुस्साहस किया तो गुस्साएं पुतिन ने समझौते से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। हमले में दो लोगों की मौत हो गयी थी। Vladimir Putin

इससे पहले पिछले अक्टूबर में भी पुतिन उस वक्त समझौते से हट गए थे जब काला सागर में रूसी जहाजों के बेड़े पर यूक्रेन ने ड्रोन हमला किया था। इसके बाद जब यूक्रेन ने संयुक्त समन्वय केन्द्र में इस बात की लिखित गांरटी दी कि सैन्य अभियानों के लिए मानवीय गलियारे का उपयोग नहीं किया जाएगा तब रूस दोबारा समझौते में शामिल हुआ। कोई दो राय नहीं कि समझौते से बाहर आना रूसी रणनीति का हिस्सा है। रूस अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों में राहत चाहता है।

लेकिन अब पुतिन के समझौते से बाहर निकलने के फैंसले के बाद यह स्पष्ट नहीं है कि यूक्रेन दुनिया को अनाज भेजना जारी रखेगा। हालांकि जेलेंस्की कह रहे हैं कि यूक्रेन डेन्यूब नदी के रास्ते निर्यात जारी रखेगा। एक बारगी जेलेंस्की के इस दावे को स्वीकार भी कर लिया जाए तो इससे यूरोप को तो सस्ता अनाज मिल सकता है, लेकिन चीन, यमन, मिस्र और अफगानिस्तान जैसे देशों तक डेन्यूबी नदी के रास्ते अनाज पहुंचाना संभव नहीं होगा।

दूसरा, पुतिन पिछले कुछ दिनों से यूक्रेन की खाद्य निर्यात सुविधाओं पर हमला कर रहे हैं। ऐसे में रूसी द्वारा सुरक्षा गांरटी न दिये जाने तक शिपिंग कंपनियां अपने जहाजों को युद्ध क्षेत्र में भेजने के लिए क्यों तैयार होगी। निसंदेह रूस के इस फैसले का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल सकता है। दुनिया की हालत बदतर होगी और बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार होंगे। लेकिन राहत की बात यह है कि पुतिन ने मांगे पूरी होने पर समझौते के नवीनीकरण के संकेत जरूर दिए हैं। इसलिए बेहतर यही है कि रूस के पक्ष को भी समझ लिया जाना चाहिए। Vladimir Putin

डॉ. एन.के सोमानी, अंतर्राष्टÑीय मामलों के जानकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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