पढ़णे मै गाम के गाबरू शहरी बालकां तै आगै लिकड़े

Hisar
गांवों में छुपी असली प्रतिभा,सिर्फ संसाधनों से संवारने की जरूरत

गांवों में छुपी असली प्रतिभा,सिर्फ संसाधनों से संवारने की जरूरत

संदीप सिंहमार।
Hisar।
शिक्षा हो या संस्कार गांव की बात आते ही शहर के लोग अक्सर मुंह चढ़ा कर बात करते हैं, लेकिन आंकड़ों पर गौर फरमाया जाए तो शहरी बच्चों की शिक्षा व संस्कार ग्रामीणों से अच्छी नहीं है। यह हम नहीं बल्कि हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड व सीबीएसई के आंकड़े बोल रहे हैं। इस मामले में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भी ग्रामीण बच्चे शिक्षा में अव्वल हैं। पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड उठा कर देख लिया जाए तो हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड व सीबीएसई के परीक्षा परिणाम में ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों के बच्चे हर बार टॉप करते हैं।

यह कोई मजाक का पुट नहीं है बल्कि सौ फ़ीसदी सच्चाई है। लोगों की सोच के अनुसार आमतौर पर ग्रामीण इसलिए शहरों की तरह मूव होना चाहते हैं कि वहां अपने बच्चों को शिक्षा अच्छी दिला सकें। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा घोषित किए गए बारहवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों के 83.51 फीसदी बच्चे पास हुए तो शहरी क्षेत्रों के सिर्फ 77.70 प्रतिशत बच्चे ही उत्तीर्ण हो सके। दूसरी तरफ दसवीं कक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के 67.35 प्रतिशत बच्चों ने बाजी मारी तो शहरी बच्चे 61.28 पर ही सिमट गए। सच्चाई जो हम बता रहे हैं, वही है। आज शहर के बच्चे पढ़ने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों का चुनने लगे हैं। सोमवार को हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने 12वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित किया।

सरकारी आंकड़ों में भी पिछड़े शहरी

इस परीक्षा परिणाम के आंकड़ों पर गौर फरमाया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों ने शहरी बच्चों को पूरी तरह से पछाड़ दिया है। हमारा मकसद ग्रामीण व शहरी बच्चों के बीच भेदभाव की खाई पैदा करना नहीं है। लेकिन सच्चाई सामने आनी चाहिए कि आखिर है क्या? माना जाता है शहरी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के अवसर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। शिक्षा के संसाधन अच्छे होने की वजह से बेहतरीन शिक्षा के लिए कुछ ग्रामीण भी अपने बच्चों को शहर की शिक्षण संस्थानों में भेजते हैं। लेकिन एक ही साल गुजर जाने के बाद सब कुछ सामने आ जाता है।

संसाधन कम,फिर भी लोहा मनवा रहे ग्रामीण बच्चे

ग्रामीण बच्चे कम संसाधन होने के बावजूद भी हर बार बोर्ड टॉप करते हैं। इतना ही नहीं परसेंटेज के मामले में भी ग्रामीण बच्चे ही अव्वल आ रहे हैं। गहनता से मंथन करने की बात यह है कि जिन बच्चों के पास संसाधनों की कमी है। मूल आवश्यकता की चीजें भी कम है। स्कूल में बिजली पानी तक का प्रबंध पूरा नहीं है। अधिकतर स्कूलों में या तो जरनेटर की सुविधा नहीं है। जरनेटर है तो उसमें तेल की सुविधा नहीं है। ऐसी स्थिति में भी ग्रामीण बच्चे दिन रात मेहनत करके अपना परीक्षा परिणाम दुनिया के सामने दे रहे हैं।

मेडिकल व इंजीनियरिंग में भी सफलता के झंडे गाड़े

मेडिकल लाइन हो या इंजीनियरिंग लाइन इस दिशा में भी ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं। अब हमारा कहने का मकसद यह कतई नहीं है कि शहर के हर बच्चे हर काम में पिछड़े हुए हैं, ऐसा नहीं है। शहरी बच्चे इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क्षेत्र में ग्रामीण बच्चों से आगे हैं। यही एक वजह जहां शहरी बच्चों को व्यवसाय के तौर पर उन्हें आगे ले जा रही है तो शिक्षा के तौर पर पीछे धकेल रही है।

यूपी सरकारी तौर पर शहरी तर्ज पर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए तो शहरी बच्चे अपना ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन कर सकते हैं। आधुनिक काल के मशहूर लेखक ‘मुंशी प्रेमचंद’ ने भी अपनी रचनाओं में ग्रामीण समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश की असली प्रतिभा ग्रामीण क्षेत्रों में ही बसती है। फिर भी इनकी मूल आवश्यकताओं व समस्याओं की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। यह ग्रामीणों के साथ घोर अन्याय है। पर इस और गहन चिंतन करने की जरूरत है।