कतर पर प्रतिबन्ध के मायने

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खाड़ी देशों में एक अजीब घटनाक्रम देखने को मिल रहा है। इस्लामिक स्टेट की आर्थिक मदद के आरोप में सऊदी अरब सहित कई मध्य एशियाई इस्लामिक देशों ने कतर पर प्रतिबन्ध लगा दिए हैं। इस प्रतिबन्ध के दूरगामी असर भारत पर भी दिखने के असार हैं। दरअसल कतर की चर्चा उसकी संपदा, उसकी दौलत के चलते ही होती है, लेकिन खाड़ी देशों ने कूटनीतिक संबंध खत्म कर अब इसी कतर को अलग-थलग कर दिया।

राजनयिक संबंध खत्म करने वाले देशों में सउदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, यमन और लीबिया शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और बहरीन ने कतर के लिए हवाई, जमीनी और समुद्री रास्ते भी बंद कर दिए हैं। इन देशों ने एक सुर में कतर पर आरोप लगाया कि वो क्षेत्र में कथित इस्लामिक स्टेट और चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है, जबकि कतर चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोपों का खंडन करता है।

चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले इन आरोपों में कितना दम है, इस मुद्दे पर तमाम अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार यह मान रहे हैं कि सऊदी के लिए आरोप लगाना तो बेहद आसान है, लेकिन क्या सउदी अरब तमाम तरह की फंडिंग करने में लिप्त नहीं है? यह एक विमर्श का मुद्दा है कि सऊदी अरब और अन्य देशों ने जिस तरह से कतर से राजनयिक संबंध तोड़े हैं, इसकी तात्कालिक वजह क्या रही है,

इसे चरमपंथ से जोड़कर देखा जाए या मध्य एशिया में कोई अन्य मुद्दा कतर को अलग-थलग करने की वजह बना। यदि मध्य-एशिया के सऊदी सहित अन्य इस्लामिक देश आतंकवाद के विरुद्ध इतना कड़ा रुख अपनाते हैं कि वर्षों तक साथ रहने वाले कतर से भी आतंक के नाम पर किनारा कर लेते हैं, तो इसे अच्छा संकेत मानना चाहिए। क्योंकि जब तक खुद इस्लामिक देश आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठाते, तब तक आतंक का खात्मा संभव नहीं।

तात्कालिक वजह में कतर की ईरान के प्रति बढ़ती घनिष्टता को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। कुछ दिन पूर्व कतर के शेख ने एक विवादित सन्देश दिया था, जिसमें उन्होंने जिक्र किया कि क्षेत्र में स्थिरता के लिए ईरान बेहद जरुरी है, लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब कतर से इस्लामी दुनिया के देशों ने संपर्क तोड़े हों। 2014 के मार्च महीने में भी सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने कतर पर उनके आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाते हुए अपने राजदूत वापस बुला लिए थे।

दरअसल कतर और सऊदी अरब के मध्य विवाद का पहलू समय-समय पर बदलता रहता है। पहले अरब और फारस का विवाद था, बाद में शिया सुन्नी विवाद बना और अब ये कतर सउदी अरब की शक्ल में है। कतर पहले से ही ईरान का समर्थक रहा है, जबकि सऊदी और ईरान के मध्य सम्बन्ध बेहतर नहीं हैं। ईरान से सउदी अरब की असुरक्षा की भावना अब सामने आ रही है।” और अरब देशों ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब खाड़ी देशों और उनके पड़ोसी ईरान के बीच तनाव बढ़ा है।

हालिया अरब यात्रा पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान पर चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगाए थे। इस घटना को अमरीका के दोस्त कहे जाने वाले ताकतवर खाड़ी देशों के बीच एक बड़ी दरार की तरह देखा जा रहा है। इस पूरे मामले को अमेरिकी और खाड़ी देशों के मध्य सम्बन्ध संतुल्लित करने के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है।

हालाँकि कतर पहले भी इस तरह के प्रतिबंधों का सामना कर चुका है और ना तो कतर इन देशों पर निर्भर है और ना ही ये देश कतर पर निर्भर हैं, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि ईरान के खिलाफ जिन 54 देशों को एकजुट करने की कोशिश हो रही थी, उसमें ये पहली दरार है। इस्लामी देशों के राजनयिक संपर्क तोड़ने और तमाम प्रतिबंधों के बाद क्या वाकई कतर दुनिया में अलग थलग पड़ जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।

कतर के पास क्या विकल्प हैं इस संकट का, भविष्य क्या है, इस बात की समीक्षा भी कुछ समय अंतराल के बाद ही की जायेगी। लेकिन जानकार इस बात का कयास लगा रहे हैं कि ये संकट जल्द सुलझ जाना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा न हुआ और ईरान के साथ कतर ने रणनीतिक साझेदारी कर ली, तो खाड़ी देशों के लिए दिक्कतें बढ़ जाएंगी।

साथ ही अगर कतर ने चीन के साथ साझेदारी कर ली, तो फिर अमेरिका, सऊदी के साथ मिलकर भी क्या करेगा। हालांकि, कतर और सऊदी अरब के बीच इस संकट को हल करने का प्रयास लगातार जारी है। कुवैत के अमीर इन देशों के बीच मध्यस्थता का नेतृत्व कर रहे हैं। कतर पर लगने वाले प्रतिबंधों की भारत पर प्रभाव की बात करें, तो प्रवासियों के मुल्क कतर में सबसे ज्यादा प्रवासी लोगों की संख्या भारत से गए लोगों की है। कतर पर पाबंदी लगने के बाद साफ है कि उनके हित भी प्रभावित होंगे।

कतर में बसे भारतीयों में से काफी लोग ऐसे भी हैं, जो कतर में व्यापार करते हैं और वो अन्य खाड़ी मुल्कों सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और मिश्र में भी फैला हुआ है। ऐसे में अब उन लोगों के सामने दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। कतर के साथ भारत की ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में कई संधियां हैं। कतर को निर्यात करने वाला भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। प्रतिबंधों का असर कतर के व्यापार पर भी पड़ सकता है।

इसके अतिरिक्त खाड़ी का यह मुल्क भारत को बड़ी मात्रा में एलएनजी गैस सप्लाई करता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत अपनी जरूरत की 65 फीसदी गैस कतर से ही आयात करता है। इसके अलावा कई भारतीय कंपनियां भी कतर के साथ समय समय पर गैस का अनुबंध करती रही हैं।

इसके अलावा भारत कतर से एथलीन, प्रोपलीन, अमोनिया, यूरिया और पोलिथिन का आयाता करता है। इसलिए व्यापार का संतुलन कतर के पक्ष में भारी रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार साल 2014-15 में कतर के लिए भारत का निर्यात 1 अरब डॉलर से अधिक था। हालांकि कुछ समय पहले कतर के निर्यात में गिरावट के कारण द्विपक्षीय व्यापार में काफी कमी आई है। ऐसे में भारत को काफी सोच-समझ कर इस पूरे मामले में आगे बढ़ने की जरुरत है।

– पार्थ उपाध्याय

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