राज्य सरकारों को चाहिए कि वह केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के घोषित परीक्षा परिणाम पर एक नजर डालें व फिर अपने-अपने राज्य बोर्डों के शिक्षा परिणाम को भी जरा परखें। इस बार सीबीएसई के 83% विद्यार्थी सफल रहे हैं। दूसरी ओर राज्य शिक्षा बोर्ड का हाल बेहाल है। पंजाब शिक्षा बोर्ड के 60 फीसदी छात्र भी पास नहीं हो सके। हरियाणा भी 50 फीसदी पर सिमट गया।
उत्तरप्रदेश सरकार के शिक्षा बोर्ड का हाल भी ठीक पंजाब-हरियाणा जैसा ही है। जहां तक सीबीएसई में शिक्षा के माध्यम में भाषा का सवाल है तब ज्यादातर छात्र अंग्रेजी को पढ़ने की भाषा चुनते हैं। जबकि पंजाब में पंजाबी, हरियाणा, दिल्ली, यूपी व राजस्थान में हिन्दी या बच्चों की मातृभाषा ही शिक्षण का माध्यम है। अंग्रेजी में बच्चों को पढ़ाई करना मुश्किल है फिर भी सीबीएसई का परीक्षा परिणाम राज्य बोर्डों से बहुत अधिक अच्छा रहा है। अब राज्य शिक्षा बोर्ड अपनी पीठ थपथपाने के लिए कह रहे हैं कि नकल पर अधिक सख्ती होने के चलते परीक्षा परिणाम प्रभावित रहे, जबकि शिक्षा में नकल पर रोक लगाना एक शिक्षक का मूल दायित्व है।
सीबीएसई के परीक्षा प्रबंधों में तो नकल नाम की कोई चीज ही नहीं है। राज्य सरकारों का इसमें पिछड़ापन ही झलकता है अगर वह मानते हैं कि परिणाम नकल रोक देने से प्रभावित हुआ। राज्य सरकारों के पास बेहतरीन शिक्षक हैं, जो सरकारी सेवा में नहीं जा पाते वह शिक्षक सीबीएसई के स्कूलों की ओर रूख करते हैं। सीबीएसई स्कूलों में शिक्षकों का वेतन भी सरकारी स्कूलों की बजाय कम रहता है। दरअसल राज्य सरकारों के अधीन चल रहे स्कूलों में शिक्षा प्रबंधन बेहद कमजोर है।
राज्य बोर्डों के शिक्षकों पर शिक्षण कार्याें का कोई दबाव नहीं है। फिर राजनीतिक प्रभावों के चलते बहुत से शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों या दूर के स्कूलों में जाना नहीं चाहते। नतीजा शहरोें में अध्यापक पूरे रहते हैं, लेकिन बच्चे कम रहते हैं क्योंकि बच्चे अधिकतर निजी स्कूलों में चले जाते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यार्थी रहते हैं परंतु शिक्षक गायब हैं। राज्यों के सरकारी शिक्षण ढ़ांचे में जबावदेही की टालमटोल की संस्कृति है। जबकि सीबीएसई स्कूलों में शिक्षकों पर शिक्षण कार्य की जबावदेही का पूरा दबाव रहता है।
सीबीएसई ऐसा नहीं है कि केवल शिक्षण तक छात्रों को सीमित रखता है बल्कि खेलकूद, कला संस्कृति, सामाजिक सेवा कार्य सबमें बच्चों को पूरा वक्त व अवसर दिए जाते हैं। दरअसल राज्यों की सरकारी व्यवस्था देश में काम-कम, वेतन-अधिक व जबावदेही बिल्कुल नहीं, आराम की जिंदगी का पर्याय हो गई है। कुछ भी हो राज्यों को अपने शिक्षा तंत्र को सुधारना होगा। बिना शिक्षण व्यवस्था में सुधार किए राज्यों की प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा में सुधार संभव नहीं।















