‘संत-महापुरुषों के बिना नहीं कटती चौरासी’

सच्चा सौदा सुख दा राह, सब बंधनां तों पा छुटकारा मिलदा सुख दा साह…

संतों के फरमाए हुए वचन जीवन के हर मोड़ पर काम आते हैं। संतों के प्यारे और मीठे संदेश रूपी वचनों को इस श्रृंखला में आप पढ़ रहे हैं।

…जब सार्इं जी का दीवाना हो गया दुकानदार | Sacha Sauda

सन् 1958, दिल्ली। एक बार जीवोद्धार यात्रा के दौरान परम पूज्य मस्ताना जी महाराज दिल्ली गए हुए थे। (Sacha Sauda) आप जी ने कपड़े की खरीददारी की इच्छा व्यक्त की। कुछ सेवादारों को साथ लेकर आप जी दिल्ली के चाँदनी चौक बाजार में एक दुकान पर गए। उस समय सरसा से भक्त चरण दास भी आप जी के साथ था। दुकान पर पहुंचकर आप जी ने गर्म कपड़ा खरीदा। कीमत पूछने पर दुकानदार ने 4000 रुपये मांगे। आप जी ने दुकानदार को कहा, ‘‘हम किताब के पन्ने पलटेंगे, तुम रुपये निकालते रहना तथा गिनते रहना।’’ इस प्रकार दुकानदार पुस्तक में से नोट निकालता रहा। जब सौ-सौ के चालीस नोट हो गए तो उसने कहा की बस।

हम जो देते हैं, वापिस नहीं लेते | Sacha Sauda

परंतु आप जी ने एक पन्ना और पलटा तथा सौ रुपए का वह नोट भी निकालकर उस दुकानदार को दे दिया। उसके बाद आप जी ने उसको पुस्तक के बाकी पन्ने पलटकर दिखाए परंतु उनमें से अब कुछ नहीं निकला। दुकानदार हैरान रह गया। आश्चर्यचकित होकर दुकानदार यह सोचने लगा कि पैसे कम करवाने की बजाय अधिक दे दिए। ये कैसा फकीर है! आज तक ऐसा कोई भी ग्राहक नहीं देखा जो कम करवाने की बजाय पैसे अधिक दे दे। दुकानदार ने ईमानदारी दिखाते हुए वो सौ रुपए का नोट आप जी को वापिस देना चाहा, परंतु आप जी ने लेने से इन्कार कर दिया और फरमाया,‘‘हम जो देते हैं, वापिस नहीं लेते। यह तो देने वाला फकीर है, लेने वाला नहीं।’’ उस दिन दिल्ली में सत्संग का प्रोग्राम था।

संत-महापुरुष के मिलाप के बिना चौरासी नहीं कटती | Sacha Sauda

आप जी ने यह कपड़ा सेवादार भाइयों को ‘दातें’ देने के लिए खरीदा था। बातों-बातों में दुकानदार को भी सत्संग के कार्यक्रम के बारे में पता चल गया। वह आप जी से इतना प्रभावित हुआ कि साथ चलने को तैयार हो गया। उसने उसी समय अपनी दुकान बंद की व आप जी की जीप में बैठ गया। रास्ते में एक खुली छत वाली कार मिली, जिसमें बढ़िया नस्ल के दो सुुंदर कुत्ते थे। आप जी ने उस कार की ओर इशारा करके दुकानदार से कहा, ‘‘देखो भाई!

ये कुत्ते अपने पिछले जन्म में बहुत बड़े रईस थे। इन्होंने बहुत दान किया था और उसके बदले में इन्हें ऐसी जगह पर जन्म मिला कि आदमी इनकी सेवा करते हैं परंतु संत-महापुरुष के मिलाप के बिना चौरासी नहीं कटती।’’ ऐसे रुहानी वचन सुनकर दुकानदार आप जी का दीवाना हो गया तथा सत्संग के बाद उसने नाम-शब्द ले लिया। बाद में उसके साथ सैकड़ों लोग आप जी के दर्शन करने के लिए आए तथा ‘नाम-शब्द’ लेकर मोक्ष के अधिकारी बने।

तेज आंधी में भी डटी रही साध-संगत | Sacha Sauda

5 जून, वर्ष 1972 (भटिंडा)। गांव ज्ञाना जिला भटिंडा में सत्संग फरमाया जाना था। सतगुरु जी रात्रि के करीब दस बजे मंच पर विराजमान हुए और सत्संग का कार्यक्रम आरंभ हो गया। सत्संग को प्रारंभ हुए अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि अचानक तेज गति से आँधी आने लगी। जो नये श्रद्धालु सत्संग में आए थे, वे सभी भाग गए।

तब परम पिता जी ने बैटरी जलाकर सामने बैठी संगत से पूछा कि अगर आपको हमारी आवाज सुनाई दे रही है तो हाथ खड़े करो। सारी संगत ने हाथ खड़े करके सतगुरु जी से अर्ज की कि पिताजी, हमें आवाज सुनाई दे रही है, कृप्या हमें सत्संग का लाभ प्रदान करें। परम पिताजी ने फरमाया, ‘‘आज काल से डटकर मुकाबला करेंगे।’’

आंधी इतनी तेज गति से चल रही थी तथा कांटेदार झाड़ियां इत्यादि हवा के साथ इधर-उधर उड़कर साध-संगत से टकरा रही थीं, लेकिन सतगुरु जी के सानिध्य में सभी साध-संगत चुपचाप बैठकर सत्संग का आनंद लेती रही। सत्संग के अंत में परम पिताजी ने फरमाया ‘‘भाईÞ! काल ने बड़ की जोर लगाया परंतु मालिक के प्यारे बैठे रहे, किसी को भी काल हिला नहीं सका। जिन्होंने भी इस तेज आंधी के चलते हुए सत्संग को सुना है, उनको दस सत्संगों का फल दिया जाता है।’’

दोनों जहानों में सतगुरु की प्रीत ही
सच्ची है | Sacha Sauda

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जब तक इन्सान मुर्शिदे-कामिल की शरण में नहीं आता, उसे यह मालूम नहीं होता कि सच्ची प्रीत किसकी है। इन्सान बहुत से यार, दोस्त, मित्र बनाता है, रिश्ते-नाते जोड़ता है लेकिन जब कोई मुश्किल आती है, तब मालूम पड़ता है कि सारे ही रास्ता छोड़ गए। उस समय कोई हमारा ही बनता है तो वो ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम बनता है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि अगर आपने अपने सतगुरु, अल्लाह को अपना बना रखा है तो वो आपके अंग-संग धुनकारें देता है और आप कभी अकेले नहीं होंगे। इसलिए सच्चा मीत, सच्चा मित्र जो दोनों जहान में साथी है, वो सतगुरु, ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब है। इसलिए अगर प्यार करना, वैराग करना है तो सतगुरु, मौला के वैराग में आओ। उसकी याद में तड़प कर तो देखो, वो क्या नहीं कर सकता।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान धन-दौलत, नौकरी, बेटा-बेटी, बहन-भाई के लिए आंसू बहाता है। यही आंसू कभी उस अल्लाह, राम के लिए बहाकर देखो तो एक-एक आंसू हीरे-मोती, जवाहरात बन जाएगा लेकिन हैरानी की बात यही है कि लोग मालिक के लिए नहीं बल्कि दुनियावी साजो-सामान के लिए पागल हो जाते हैं और वो पागलपन बता देता है कि आप किसमें, कितनी हद तक खोए हुए हैं। जिसे आदमी अपना पक्का साथी समझता है वो पता नहीं कब साथ छोड़ जाए। इसलिए अगर साथी ही बनाना है तो उस दोनों जहान के मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु, राम को बनाइए।

 

 

 

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