संतों का काम इन्सान को भगवान से जोड़ना

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शुक्रवार को शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा (यूपी) से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से पावन वचनों की अमृतमयी वर्षा करते हुए खुशहाल गृहस्थ जीवन जीने का फलसफा समझाया। आपजी ने आम जीवन में गृह क्लेश की वजह बनने वाले कारणों पर भी प्रकाश डाला और इनसे निजात का तरीका भी बताया।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मालिक की साजी नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ बेपरवाह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज, बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज) के रहमोकरम, परोपकार असंख्य हैं जो गिनाए नहीं जा सकते। जो भाग्यहीन थे वो भाग्यशाली बने और भाग्यशाली अति उत्तम भाग्यशाली बन गए। तो संतों का काम समाज को नई दिशा देना होता है। किसी को बुरा कहना, किसी को गलत कहना संतों की फितरत में नहीं होता। संतों का काम इन्सान को इन्सान से जोड़ना और इन्सान को भगवान से जोड़ना होता है। पूरी सृष्टि जो परमपिता परमात्मा, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब ने बनाई है, संतों का काम उस सृष्टि के भले के लिए जरूरी कदम उठाना, सब जीवों को समझाना और परमानंद पहुंचाने का कार्य होता है। शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता रहबर ने ये रीत चलाई। तो आपको समझाते रहे।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ब्रह्मचर्य की चर्चा होती रही। उसके बाद आता है गृहस्थ आश्रम। 25 साल तक ये होता था कि ब्रह्मचर्य का पालन करना है। उस समय में गुरुकुल जंगलात, पवित्र वातावरण में होते थे। जहां पढ़ाया जाता था। धर्म सिखाया जाता था। इन्सान बनाया जाता था और फिर वहीं से ही जब पता होता था कि अब शादी के लायक है, उसके अनुकूल हो गया है, पढ़ाई पूरी हो गई तो वहां से आने के बाद उसने गृहस्थ ज़िंदगी में प्रवेश करना है, गृहस्थ आश्रम शुरू होने वाला है। तो हमारे पवित्र वेदों में हमने जो अनुभव किया, उसके आधार पर हम कहना चाहते हैं कि हर चीज सिखाई जाती थी। घर-गृहस्थ में कैसे तालमेल बैठाना है, कब स्वस्थ बच्चा होगा, कैसे परिवार के लिए समय देना है, कैसे तालमेल बैठाना है, ये छोटी बात नहीं होती।

‘पढ़ाई के बाद मिलती थी गृहस्थ जीवन की शिक्षा’

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आप बचपन से जिस घर में रहे हो, अब तो थोड़ा बदलाव आ गया, लेकिन पहले ये होता था कि घर से बाहर जाते थे तो उस कमरे में कईयों को नींद कम आती थी, कि भई नया कमरा है, नई जगह पर आए हैं तो नैच्युरली कुछ लोग ऐसे सेंसेटिव होते हैं, जिनको नींद कम आती है। लेकिन जो बच्ची बचपन से अपने घर-परिवार में रही, माँ-बाप के साथ रही, बहन-भाई के साथ रही, छोटी से छोटी जिद भी उसके माँ-बाप, अगर अच्छे नेक हैं, बेटे-बेटी को बराबर मानते हैं, तो उसकी जायज जिद पूरी करते रहे हैं। और एकदम परिवर्तन आता था कि वो दूसरे घर में चली जाती थी। रहन-सहन पराया शरीर के अनुसार, परिवार, भाई-बहन वो भी पराए, चाहे वो ननद है, चाहे वो देवर है, जेठ है, जो भी हैं, सब नए। सास-ससुर भी नए माँ-बाप हैं।

इस तरह से वो बच्ची इतना कुछ त्याग कर जब उस घर में आती तो कैसे उसने एडजस्ट करना है और लड़के ने कैसे उसका साथ देना है, ये गृहस्थ आश्रम में सिखाया जाता। उसकी शिक्षा ब्रह्मचर्य के लास्ट में दी जाती। हर चीज, बारीकी से बताई जाती। तो दो-तीन महीने में शिक्षा के द्वारा उसको गृहस्थ ज़िंदगी अपनाने के लिए तैयार कर दिया जाता। क्योंकि जो ब्रह्मचर्य में रहा होता है, उसे गृहस्थ ज़िंदगी से कुछ मतलब नहीं होता था। और जो 25 साल ब्रह्मचर्य में रह ले तो अपने आप में बेमिसाल हो जाता है। बॉडी इस तरह से रिएक्ट करती है कि जैसे एक मजबूती आ गई, एक अलग अनुभव फील होता है। उस वक्त वो गृहस्थ ज़िंदगी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं होता, इसलिए उसको पहले तैयार किया जाता। क्योंकि 25 साल के दरमियान ही वो नौकरी में भी चला जाता। मंत्री, मुनीम जो भी है, उसकी भी ट्रेनिंग हो चुकी होती, लगभग-लगभग अप्वाइंटमेंट हो चुकी होती। जिसने सेना में जाना हो सेना में, घुड़सवार घोड़ों में चले जाते, तीरंदाज और तलवारबाज आदि को अलग-अलग श्रेणियों में बांट दिया जाता। लेकिन उस वक्त पढ़ रहे होते थे तो लास्ट की शिक्षा गृहस्थ आश्रम की होती।

पति इन बातों का रखे ध्यान

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि धर्मानुसार हमने जो अनुभव किया वो आपको बताने जा रहे हैं। घर-गृहस्थ में रहते हुए बेटों का ये फर्ज है कि जब वो बच्ची घर-परिवार छोड़कर आती है तो सबसे पहला सहारा उसका, उसके पति ने बनना होता है। क्योंकि वो आपके लिए, आपके साथ जीवन व्यतीत करने के लिए आई है। अगर आप भी सहारा नहीं देंगे तो कौन देगा सहारा। इसलिए उस बच्ची को, जो आपकी पत्नी के रूप में आई है, आपने एडजस्ट करना है और करवाना है। आपने उसे बताना है कि मेरी माँ का स्वभाव कैसा है? पिता का स्वभाव कैसा है? बहन-भाइयों का स्वभाव कैसा है? या यार, दोस्त, मित्र जो भी आते हैं वो कैसा है? ये पहला फर्ज होता है पति का अपनी पत्नी को शिक्षा देने का, और बेहद जरूरी भी है। उसको क्या पता आपकी माँ को क्या पसंद है? उसको क्या पता आपकी माँ का स्वभाव कैसा है? तुनकमिजाज है या नॉर्मल है या शान्त है या सामाजिक, यानी कि हर किसी को अपनाने को तैयार है, स्यानी है, समझदार है।

सामाजिक का मतलब ही ये होता है कि जो समाज में विचरते हैं और अपने वचनों पर रहते हुए, अपने किरदार को, अपने कैरेक्टर को ऊँचा रखते हुए वो एक जगह बना लेते हैं, तो वो किस किस्म में आती है। ये पति ही बता सकता है जी। दूसरे तो दूर हैं, तो गृहस्थ जिंदगी की शुरूआत यहां से होती है। जो भी नौजवान बच्चे, चाहे आज कितनी भी फूं, फां करके कुछ भी हो रहा हो, अपने आपको आप हाइटेक मानते हों या जो भी आप मानते हैं, लेकिन हमारी बात लिख लो, इस बात को फॉलो करोगे तो घर में झगड़े नहीं होंगे। अदरवाइज वो और माहौल से आई है। उसने अपने माँ-बाप को देखा है, उनके लाड-प्यार या डांट को देखा है, पर आपके परिवार का तो नहीं पता उसको।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अब लड़की को ये होना चाहिए कि वो कोशिश करे अपनी तरफ से कि कुछ समय अपने उन विचारों को, अपनी उन भावनाओं को थोड़ा छुपाकर घर के बारे में जाने। मतलब कौन किस आदत से जुड़ा हुआ है? कौन कैसा है? अब पति ने तो बताया दिया, विचरना तो उसने है। अब दोनों नौकरीपेशा हों तो भी जरूरी है। चाहे नौकरी क्यों ना करते हों, आपके पास रह रही है तो उसको बताना जरूरी है। फिर घर-गृहस्थ की गाड़ी चलती है।

गुस्सा बर्बादी लेकर आता है

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज के दौर में देखें तो एक समझौता जरूरी है। पतिदेव को गुस्सा आया हुआ है तो उस समय पत्नी को शांतमय तरीके से ट्रीट करना चाहिए। शरीर सबके एक जैसे होते हैं, तत्व सभी के अंदर रजो, तमो, सतो। किसी को भी किसी भी क्षण ऐसा हो सकता है। किसी बिजनेस व्यापार की वजह से, बाल-बच्चे की टैंशन की वजह से, घर-परिवार की टैंशन की वजह से, इत्यादि-इत्यादि। तो उस समय उसे शांत रहकर, बल्कि साथ देना होता है, क्योंकि वो एक मरीज बन जाता है। कभी आप गुस्से में आए हो तो शीशे के सामने खड़े होकर देखना।

नथूने फूल जाते हैं, आँखें फैल जाती हैं और आपके होंठ कांपते हैं, हाथ कांपते हैं, शरीर कांपता है। पर कईयों का ये नहीं होता, लेकिन नाक का फैला होना और आँखों का फैलना पक्का होता है। तब नहीं पता चलता कि आप क्या बोले जा रहे हैं, क्योंकि ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ जाता है, ब्लड धमनियों में तेजी से सर्कल करता है, जितनी भी रगें हैं उनमें चलता है। तो वो गुस्से के जो क्षण होते हैं उसमें बर्बादी होती है। पर वो बेटी बहुत महान होती है, जो उस बर्बादी को रोक ले। पता ही ना चलने दे घर में कि हमारी आज घर में लड़ाई भी हो गई। शांतमय तरीके से उसको शांत करे।

शांति से निकालें समस्या का हल

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि पति ही नहीं पत्नी को भी गुस्सा आ सकता है। तो उसके कारण हो सकते हैं। घर-परिवार में, अपने परिवार की, कोई-न-कोई टैंशन, कोई-न-कोई बात चुभ गई। क्योंकि बहनों में ज्यादा होता है कि बीच में निकालती रहती हैं बातें। आजकल तो भाई भी कम नहीं हैं नैक-टू-नैक मुकाबला है। लेकिन टोंट कसने में बहनें अभी नंबर वन पर हैं, हमारी जो बेटियां हैं, हम किसी का बुरा नहीं कहते, हमने जो महसूस किया है, जो देखा है वो बताया। बेटे भी कम नहीं हैं पर वो ज्यादा जानती हैं। बात किसी को कह रही होती है, सुना किसी को रही होती हैं। मतलब इधर बात हो रही होती है, जला किसी और को रही होती हैं ऊँची-ऊँची बोलकर। ताकि उसको टारगेट कर सके, बिना कुछ कहे। तो पता नहीं कौन सी बात चुभी और उसको गुस्सा आया हुआ है। अब पति देव की बारी है ठंडा रहने की।

शांतमय तरीके से उस गुस्से को शांत करवाएं। आराम से बैठकर अलग से पूछें कि प्रोब्लम क्या है? समस्या क्या है? दूसरी बात आपको तालमेल रखना है, माँ-बाप को भी नहीं छोड़ सकते और पत्नी को तो लेकर ही आप आए हैं उसको तो छोड़ोगे कैसे आप, वो तो आई ही आपके सहारे है। तो आप पत्नी की अलग से बात सुनें। अगर वो आपकी माँ की शिकायत करती है, फादर की या किसी की भी, सुन लीजिए, भड़किये मत, उसको कहो कि मैं जरूर हल करूंगा, हर हाल में हल करूंगा। अब आप वाकई उस समस्या का हल करें। जाएं अपनी माता को या पापा को या बहन-भाई के पास, जिसके साथ भी उसकी वो बात है। उसको अलग से मिलें, सामने नहीं।

अब उससे पूछें कि मामला क्या है? फिर विवेक से काम लें, कि आखिर गलतफहमी किस बात से पनपी है। और फिर दोनों को समझाएं और मिलाएं कि ये तो बात कुछ भी नहीं थी, कोई चक्कर ही नहीं था, ताकि उस आई हुई बच्ची को, आपकी पत्नी को आपके ऊपर दृढ़ यकीन आ जाए, एक सहारा मिल जाए कि हाँ, मैं अपना हर दु:ख-सुख इनके सामने रो सकती हूँ और उसका सोल्यूशन ये मुझे दे सकता है और इसी तरह पत्नी को भी चाहिए कि वो अपने पति का सहारा बनकर उसके दु:ख-सुख में सहायता करे। यानी दोनों का बराबर का हक है। हमारी निगाह में कोई ऊपर नीचे नहीं है। तो ये गृहस्थ ज़िंदगी की शुरुआत है और फिर आगे जैसे-जैसे आप बढ़ते जाएंगे बहुत से मसले आएंगे। क्योंकि शुरुआत में कुछ और बात होती है, आदमी की नेचर है ये। चाहे वो बेटी हो या बेटा, सभी की नेचर है ये।

आपसी समझ से काम लें

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि उदाहरण के तौर पर आपके घर के बाहर फूल लगे हुए हैं, पेड़ लगा हुआ है। पर आप अपने काम धंधे में बिजी हैं, व्यस्त हैं तो आप जैसे ही घर में आते-जाते हैं, पहले दिन लगाए तो खुशी आएगी, दूसरे दिन खुशबू आई। पाँच-सात दिन खुशबू आई और देखते रहे कि यार बड़े सुंदर लगते हैं। दो महीने बात कई बार आपको पता ही नहीं होता कि मेरे घर के आगे फूल भी लगे हुए हैं। ये नेचर है। ऐसे ही जब नए रिश्ते बनते हैं तो बड़े उत्साहित होते हैं बच्चे आपस में। बड़ा, मतलब यूं लगता है कि उस जैसा दुनिया में कोई सुखी ही नहीं है। पर धीरे-धीरे दो, चार, छह महीने बाद वो नॉर्मल हो जाता है रिश्ता। एक-दूसरे की आदतों का पता चल जाता है।

आज के दौर की बात करें, आप दोस्त हैं, लड़का-लड़की हैं या दोस्त-दोस्त, तो उनमें जब दोस्ती होती है तब हर चीज शेयर नहीं करते आप। लेकिन जब शादी हो जाती है, शेयर करो या ना करो, आपकी हर चीज सामने आएगी ही आएगी। छुपा सकते हो आप जब कुछ देर के लिए बैठते हो, बातें करते हो, ये आसान है। दो, चार, पाँच-छह घंटे आसान है। पर दिन-रात वहीं रहना है और उसी के साथ रहना होता है लगभग-लगभग तो आप अपनी फितरत, अपनी आदतें नहीं छुपा सकते। वो दौर, वो समय अंडरस्टैंडिंग का होता है। आपसी समझ का होता है। किसी तीसरे को इन्वॉल्व ना करो अपने बीच में।

पर्सनल बात बाहर शेयर न करें

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कभी अपने कमरे की बात बाहर शेयर ना करो तो अच्छा है। वरना कुछ भी गलत अनसर फायदा उठा सकते हैं। बेवकूफ बना सकते हैं। इसलिए ये पुराने समय से कहावत है हमारे पवित्र वेदों की, कि जो घर का भेद आगे बताता है तो घर का भेदी लंका ढाय। जो अपने कमरे का भेद आगे बताता है तो वो अपनी गृहस्थी खत्म करने के लिए वो कदम उठा रहा होता है। क्योंकि वो आपकी अर्धांगिनी है, कहने का मतलब आप दोनों एक हैं। अब दो के बीच में कोई तीसरा आएगा, चाहे कोई भी क्यों ना हो, तो गड़बड़ होती है ना।

तो आपकी जो पर्सनल बातें हैं, उसका मतलब वो आपकी ही पर्सनल बातें हैं, उसमें पति या पत्नी के माता-पिता को भी इन्वॉल्व नहीं होना चाहिए। कई पुरानी कहावत धर्मानुसार, पवित्र वेद अनुसार कि खून का रिश्ता और पति-पत्नी के रिश्ते में ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए, किसी को ज्यादा कहना नहीं चाहिए। क्योंकि वो ऐसी रबड़ होती है, जो स्ट्रैच तो हो जाती है, लेकिन खिंच कर फिर वापिस आ जाती है। यानि आपको लगता है कि उनमें झगड़ा हो गया, लेकिन वो तो फिर से एक हो जाएंगे, पर जो आपने बोला है, वो उनके दिलो-दिमाग में छपा रहेगा और याद रहेगा कि उसने हमें ये बोला था।

धर्मों में सब कुछ बताया है

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि माँ-बाप को जब बच्चे बड़े हो गए, शादियां हो गर्इं आपकी, तो फिर आगे बच्चे ने भी आना है। तो धर्मों और आदिकाल से चले आ रहे हमारे पवित्र वेदों के अनुसार हमने अनुभव किया तो उसमें बिल्कुल स्वस्थ बच्चा कब होगा, उसकी टाइमिंग तक बताई हुई होती है। इससे ज्यादा धर्म क्या सिखा सकता है गृहस्थ ज़िंदगी के बारे में। बिटिया को भी पता होता है और बेटे को भी, जो गुरुकुल से निकलता है, कि हाँ, ये टाइमिंग होती है कि जब स्वस्थ, तंदुरुस्त बच्चा आ सकता है। उम्र की सीमा होती है कि तब तक आपको बच्चा लेना चाहिए, तो वो तंदुरुस्त ज्यादा रहेगा।
छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ मत बनाओ

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि गृहस्थ ज़िंदगी में छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ मत बनाओ। चुगली-निंदा ना करो, अब आपके पास आकर पत्नी करती है या पति आकर करता है कोई बात। धैर्य से सुनो, काटो मत। हमेशा वो आदमी ज्यादा कामयाब होता है, जो धैर्य से सुनने की शक्ति रखता है। अपनी बात ना दो, पहले बात लो, यानी जो आपको बताने जा रहा है, शांत तरीके से उसकी पूरी बात सुन लो और फिर आप अपना जवाब दो। क्योंकि शॉर्टकट में हो सकता है आपको बाद में शर्मिंदगी महसूस हो, जब उस बात का रिजल्ट कुछ और हो और आपने बीच में काटकर कुछ और बोल दिया। फिर आपके साथ गड़बड़ हो जाएगी। इसलिए ये भी सिखाया जाता था कि सहने की शक्ति, बोलने की शक्ति। बोलने से पहले तोलो। कांटा थोड़ी ना लगाओगे आप। तोलने का मतलब होता है सहज मते से, शांति से एक-दूसरे की बात को सुनना। जब पति-पत्नी में ये आदत बन जाएगी, तो यकीन मानिये समाज में भी आप तरक्की करोगे। क्योंकि वो शांत स्वभाव सबको बहुत अच्छा लगता है।

संतुष्ट रहना सीखिए

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इन्सान को अग्रेसिव भी होना चाहिए, लेकिन उसकी एक सीमा है। जब लगे कि हद से कोई चीज गुजर रही है तो तब थोड़ा सा अग्रेसिव होना भी जरूरी होता है। अदरवाइज जितना हो सके प्यार, शांति के रास्ते को अपनाकर रखो। गुस्सा किसी का कुछ बिगाड़े या ना बिगाड़े, जिसके अंदर गुस्सा आता है कितनी देर वो अपसेट रहता है। उसके दिमाग में नेगेटिविटी चलनी शुरू हो जाती है। उसके शरीर में थोड़े-थोड़े विकार से फील होते हैं उसको, गुस्सा करने के बाद एकदम निढ़ाल हो जाता है। बेदम हो जाता है। फिर सोचता है कि मैं क्यों, किस लिए। इसलिए संतोष, संतुष्टि सीखिए आप।

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