बापू! हमारे यहां आश्रम भी बनाओ! हम आपको जाने नहीं देंगे

गुजरात वासियों की सच्ची पुकार सुन पूज्य गुरू जी ने बनवाया

  • डेरा सच्चा सौदा आश्रम ‘शाह सतनाम जी अलौकिक धाम’ लाकड़िया (कछ भुज) गुजरात

अहमदाबाद (सच कहूँ न्यूज)। ये आश्रम नेशनल हाईवे राष्ट्रीय राज्य मार्ग न. 15 जो पठानकोट से बठिन्डा, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, सांचोर, सूई-गांव भमार, राधनपुर चितरोड़ लाकड़िया समख्याली पर स्थित है। यह हाईवे समख्याली पहुंच कर खत्म हो जाता है। इस आश्रम के पीछे की तरफ गांधी धाम पालमपुर गुजरात रेलवे-लाईन है। ये आश्रम डेरा सच्चा सौदा सरसा से लगभग 1200 कि.मी. की दूरी पर दक्षिण पश्चिम में स्थित है।

डेरा बनाने की जरूरत क्यों पड़ी 

26 जनवरी 2001 को प्रात: 8:50 पर गुजरात में आए जबरदस्त भूकम्प ने भारत के हर नागरिक के दिलों को ही नहीं डुलाया था बल्कि सारी विश्व की मानवता के हृदयों को झकझोर कर दिया। डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू सन्त डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भूकम्प की इस दु:खद घटना को सुनते ही गहरा दु:ख मनाया। उस दिन भण्डारे पर डेरा सच्चा सौदा में आई हुई लाखों की संख्या में संगत की उपस्थिति में भूकम्प से मारे गए सभी जीव प्राणियों की आत्मा को शान्ति तथा मोक्ष प्राप्त हो, ऐसे वचन फरमाकर संगत से ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा लगवाकर उन जीवों को मोक्ष प्रदान किया।

इसके बाद हजूर पिताजी ने प्रबन्धक भाइयों को फरमाया कि भूकम्प पीड़ितों को राहत देने के लिए जल्दी से जल्दी तैयारी करो। शहनशाह जी का हुक्म होते ही दो सौ ट्रकों में राशन, कम्बल, तम्बू व हर तरह की राहत सामग्री भरकर साथ में लगभग पांच हजार सेवादारों को सरसा दरबार से गुजरात के लिए रवाना कर दिया। इसके साथ ही हजूर महाराज जी स्वयं भी सेवादारों और सेवा समिति को साथ लेकर गुजरात के लिए चल पड़े और वचन फरमाएं, ‘‘जब तक स्वयं भूकम्प पीड़ितों से नहीं मिल लेते तब तक हमें चैन नहीं आएगा।’’ गुजरात को जाते समय रास्ते में बाड़मेर जिले के एक गांव ताजियाबास के प्रेम-प्रभु होटल में एक घण्टा ठहरे। वहां उस होटल में एक बहरे को अकेले नाम-दान प्रदान किया।

पूज्य हजूर पिताजी अपने दस-बारह वाहनों के काफले के साथ करीब 1200 कि.मी. का सफर तय करते हुए देर रात भुज जिले के समख्यिाली शहर में जा पहुंचे और रात वहीं पर ही रुके। सुबह अंजार पहुंचने पर वहां के उच्च अधिकारियों ने तहसील रापर को सम्भालने की जिम्मेवारी डेरा सच्चा सौदा को सौंप दी क्योंकि वह अत्याधिक क्षतिग्रस्त इलाका था और वहां तब तक बाहर से काई राहत नहीं पहुंची थी। इतना सुनते ही हजूर महाराज जी तुरन्त रापर के लिए रवाना हो गए और रापर से करीब पांच कि.मी. पहले ही अपना डेरा जा लगाया और गांव की स्थिति का जायजा लेने के लिए स्वयं रवाना हो गए।

वहां अति दु:खी परिवारों से मिले और उन्हें सांत्वना दी। परोपकारी दाता जी ने 42 गावों को गोद लेकर सेवा का कार्य आरम्भ कर दिया। सभी गांवों में डिपू बनाकर राशन बांटने की ड्युटी लगा दी गई। इसके बाद हजूर महाराज जी गांव-गांव जाकर उनका दु:ख पूछते। जिस गांव में भी पिताजी जाते, सभी लोग पिता जी के चरणों में लेट कर, रो-रोकर पुकार करते, ‘बापू! हमारे साथ बहुत बुरा हुआ है। हम पर दया-मेहर करो और अपनी शरण में ले लो। बापू न कुछ खाने को है, न ही कुछ ओढ़ने को है। सारी रात बच्चे सर्दी में ठिठुरते हैं और भूखे-प्यासे ही सो जाते है। उनकी हालत वास्तव में बहुत ही दयनीय थी। वे कहते थे,‘ बापू आपसे मिलकर हमें बहुत शान्ति मिली है बापू! अब हमें छोड़कर न जाना। हमारे ऊपर ऐसी दया-मेहर करना कि जो कुदरत ने कहर ढाया है। वो फिर न हो।

पूज्य हजूर महाराज जी उन घरों में जरूर जाते जिनके परिवार में एक या उससे अधिक सदस्यों की मृत्यु हुई थी। पिताजी के दर्शन करके वे अपना द:ख दर्द भूल जाते। ऐसे एक परिवार में शहनशाह जी गए जिसमें छ: व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी। परिवार का माहौल बहुत ही दर्दनाक था परिवार के सदस्य पिताजी को कह रहे थे कि हम पर दया करो हमारा कोई नहीं है। उनका दु:ख दिल को दहला देने वाला था। जिसको पिताजी ने महसूस किया। शहनशाह जी ने उन्हें समझाया कि एक दिन तो सभी ने जाना है। जो लोग चले गए मालिक उनकी आत्मा की पूरी सम्भाल करेगा और आप लोगों को राहत व शान्ति देने के लिए ही हम इतनी दूर से चलकर आए हैं।

इस तरह रोते-चिल्लाते लोगों को सांत्वना (धैर्य) देते हुए पिताजी ने वचन फरमाएं, ‘‘जैसे कुम्हार घड़े पर एक हाथ चोट करता है तो दूसरे हाथ से अन्दर से सहारा भी देता है। भाई! मालिक, परवरदिगार का हुक्म ही ऐसा था। सब कुछ उसी के हुक्म से ही होता है। घबराओ नहीं बेटा। अब हम आ गए हैं अब और नुक्सान नहीं होगा। हम आपकी हर तरह से मदद व सम्भाल करेंगे।’’

परम पूजनीय दातार जी की पहली गुजरात फेरी में इन सभी गांवों में हर प्रकार की राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य आरम्भ किया। सभी परिवारों को तम्बू टैन्ट भी लगा कर दिए गए। पूज्य हजूर महाराज जी उस क्षेत्र में दो बार गए। आपजी ने अपनी दोनों पावन फेरीओं के दौरान जहां उन एक लाख के करीब जीवों को नाम-दान बख्श कर भवसागर से पार किया वहां डेरा सच्चा सौदा सरसा की तरफ से करोड़ों रुपए की राहत-सामग्री बांट कर उन भूकम्प पीड़ितों की हर तरह से सहायता भी की। बहुत बेघरों को लकड़ी के मकान बना कर दिए गए। पूज्य शहनशाह जी ने उस गांव का नाम अपने पावन मुखारबिन्द से ‘सई कल्याण नगर रखा। इसी प्रकार गांव प्रतापगढ़ में भी 102 लकड़ी के मकान बनवाकर उसे फिर से आबाद किया। क्योंकि ये दोनों गांव ही भूकम्प के कारण लगभग पूरी तरह से तबाह हो चुके थे। इस भूकम्प पीड़ित इलाके के वे दु:खी लोग हजूर पिताजी के चरणों में लेट कर बार-बार पुकार-पुकार कर कहते थे, बापू! हमारा क्या होगा?

बापू अगर आप न आते तो इस भयानक स्थिति में हमारा क्या हाल होता। बापू! चारों और अंधेरा नजर आ रहा है।जिन्दगी जीने को मन नहीं करता, किसी तरफ कोई किनारा नजर नहीं आता। बापू! बस आपका एक सहारा ही जिन्दगी का सफर तय करने को हौंसला देता है। बापू हमें और किसी चीज की जरूरत नहीं है। आप हमारे पास रहे। हमारे से दूर नहीं जाना। हम आपके बिना नहीं रह पाएंगे। बापू! हमारे यहां आश्रम भी बनाओ। हम आपको जाने नहीं देंगे। उन लोगों की सच्ची पुकार व इतना प्यार देख कर हमें तो यह महसूस हो रहा था कि कहीं ये बापू को यहीं पर ही रख न लें। परम दयालु, परोपकारी दातार जी ने उन दु:खी लोगों के हृदयों की पुकार, और तड़प सुनते हुए वहां पर आश्रम बनाने का निश्चय किया और प्रबन्धक भाइयों को शीघ्रअति-शीघ्र जमीन देख कर खरीदने का हुक्म फरमाया।

कुछ ही दिनों में प्रबन्धक भाइयों ने अपनी पूरी कोशिश से इसी राज्य में मार्ग नं: 15 पर गांव लाकड़िया जिला कछ भुज में बीस एकड़ जमीन खरीद ली। ये जगह समख्याली शहर से करीब पांच-छ: कि. मी. की दूरी पर पड़ती है। जमीन खरीदने के बाद पूज्य हजूर महाराज जी के हुक्मानुसार वहां डेरा बनाने के लिए सभी सामग्री एकत्र कर ली गई।

इस आश्रम की स्थापना का शुभ आरम्भ :-

इस आश्रम की स्थापना का शुभ आरम्भ दिनांक 1-3-2001 को दोपहर के 11:55 पर परम पूजनीय हजूर महाराज जी ने अपने पावन कर-कमलों द्वारा फावड़े से टक लगाकर किया। आधा एकड़ के प्रांगण में एक बहुत सुन्दर तेरावास, एक बहुत बड़ा हाल तथा तीन कमरे बने हैं। ये सभी लकड़ी के बनाए गए हैं। इस आश्रम का शुभ मुहुर्त 12-3-2001 को पूज्य हजूर पिता जी ने अपने पावन कर कमलो से किया। कुल 20 एकड़ जमीन है। लगभग 7 एकड़ में बाग लगाया गया है। जिसमें चीकू, आम, नारियल, मौसमी आदि के पौधे लगे हुए है। डेरे में तेरावास के आगे एक कुआं है, जिसमें से सारे बाग के पौधों को पानी देना तथा इसी कुएं के पानी से एक एकड़ के लगभग जमीन में सब्जी की काश्त की जाती है। पहले इस कुएं का पानी बिल्कुल खारा था तथा वो भी मुश्किल से आधा घण्टा ही चलता था यानि पानी खत्म हो जाता था। अब पूज्य हजूर पिताजी की अपार दया-मेहर से वह कुआं दो-अढ़ाई घण्टे तक चलता है। पहले – पहले बाग में डालने के लिए पानी बाहर से लाना पड़ता था। ये सिलसिला 6 महीने तक चलता रहा। अब उसी कुएं से ही बाग व सब्जी को पानी दिया जाता है और साध-संगत द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।

इस आश्रम की सेवा के बारे में परम पूजनीय हजूर पिताजी ने जो वचन किए वे इस प्रकार है:-

‘‘जो भी सेवादार इस दरबार में सेवा करेगा उसका चौबीस घण्टों का सुमिरन मंजूर किया तथा जो भी सेवादार यहां पर निरन्तर 15 दिन सेवा करेगा उस पर मालिक की अपार रहमत होगी।’’ इस आश्रम का निर्माण कर परोपकारी दातार जी ने गुजरात की दु:खी व गरीब जनता पर एक बहुत महान परोपकार किया है, जो अपने आप में एक मिसाल है।

पूज्य हजूर महाराज जी ने वचन फरमाए :-

पूज्य हजूर महाराज जी ने वचन फरमाया ‘‘भाई ! ये जो भूकम्प आया इसका तो हमें पहले से ही मालूम था तथा फिक्र भी था परन्तु कुदरत का कानून बदला नहीं जा सकता। सन्त-फकीर तो मालिक की रजा को मानते हैं, रजा को काटते नहीं। हम तो मानवता की भलाई के लिए ही आए हैं। जीव तड़प रहे हों तो ये नहीं हो सकता कि सन्त-फकीर आराम से सो जाएं। इनकी बाहरी तौर पर सम्भाल करनी ही करनी है। जो हो गया सो हो गया अब भगवान से प्रार्थना करते है कि हे भगवान! इन्हें शक्ति दे ये उठ सकें। आप भगवान का नाम लें। नाम जपने से आत्मा बलवान होती है। और इन्सान की ताकत बढ़ जाती है। अगर भूकम्प रात्रि को आता तो क्या होता, बहुत तबाही होती, स्कूलों वाले बच्चे भी बच न पाते। जिस तरह कुम्हार मटका बनाता है। ऊपर से चोट करता है, नीचे हाथ रखता है, इसी तरह भगवान इन्सानों को बचाता भी है।’’

 

उस भूकम्प पीड़ित इलाके में सेवा कर रहे सेवादारों के पूज्य हजूर महाराज जी ने वचन फरमाए, ‘‘बेटा! आप बहादुर हो। तुम परमात्मा के बच्चों की सम्भाल कर रहे हो। मालिक क्यों नहीं आपकी सम्भाल करेगा। जो काम आपने किया है वो काम दुनिया में कोई नहीं कर सकता। आपने घर-घर जाकर पीड़ित लोगों की सेवा की है। मालिक आपको खुशियां देगा। छोटी-मोटी गलती आपकी सभी मुआफ। यहां पर शरारत नहीं करनी गमी का माहौल हैं।’’

गुजरात में एक प्रेमी अपने घर में नाम का सुमिरन कर रहा था। जब उसने देखा मकान हिल रहा है। उसने खड़े होकर सारे परिवार को मकान से बाहर निकाल लिया। ज्यों ही परिवार बाहर निकला तो मकान एकदम गिर गया। उसका सारा परिवार बाल-बाल बच गया। उसने बताया कि नाम में इतनी शक्ति है, अगर कोई नाम का सुमिरन करे तो। इस बात को सुनकर परोपकारी दातार जी ने फरमाया, ‘‘भाई! नाम में तो ऐसी ताकत है कि वह मृतक जीव को बुला सकता है। आप भी नाम का सुमिरन करें। थोड़ी सी बात हो उसी पर कह देते हैं पिताजी! मुझे ये दु:खद है आप ऐसा न करें।’’

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