दीपावली की रात से उत्तर भारत में जहरीले धूएं ने आमजन जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। सड़कों पर दुर्घटनाएं बढ़ गई हैं। बच्चे, बूढ़े, बीमार बेहद परेशान हैं। आम नागरिक को भी धूएं से आंखों व गले में जलन हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सिवाय अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई राहत की बात नहीं की है। वातावरण में फैला यह धुआं सिर्फ दीपावली के पटाखों की वजह से नहीं है, बल्कि इन दिनों किसान खेतों में लाखों टन धान की पुआल जलाते हैं। इस वजह से यह धुआं फैला हुआ है। दिल्ली राज्य महानगर है, जिसमें प्रतिदिन लाखों वाहन दौड़ रहे हैं व पेड़ों की संख्या बहुत कम है, अत: दिल्ली की हालत बेहद बुरी हो गई है। प्रतिवर्ष दीवाली के आसपास फैलने वाले इस धूएं को अब राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया जाना चाहिए। इस दौरान प्रभावित क्षेत्र में धुआं छोड़ने वाली भट्ठा इकाईयां, फैक्ट्रियां पूर्णत बन्द हो जानी चाहिए। साथ में वाहनों मे निजी वाहनों के प्रयोग को सीमित कर देना चाहिए। ताकि प्रतिपल वातावरण में घुलने वाले धूएं को रोका जा सके। किसानों द्वारा खेतों में पुआल जलाने को तो कठोरता से रोका जाना चाहिए। देश में सदियों से किसान धान व गेहूं की फसल बोते आ रहे हैं। पहले किसानों के पास आधुनिक मशीनें भी नहीं थी, तब भी किसान धान का पुआल को जलाते नहीं थे। लेकिन जिस गति से कृषि का आधुनिकीकरण हुआ, किसानों के पास हर तरह की मशीनरी आ गई है और खेत भी छोटे-छोटे हो गए हैं, उसकी तुलना में किसान उतने ही ज्यादा आलसी व लापरवाह हो गए हैं। स्वयं किसानों को भी पता है कि पुआल जलाने से जहां खेत की मिट्टी खराब होती है, खेत में खाद ज्यादा डालनी पड़ती है व वातावरण गंदा होता है, फिर भी किसान आग लगाने से बाज नहीं आ रहे। नतीजा, पूरी आबादी को संकट का सामना करना पड़ रहा है। अत: अब सरकार को इस दिशा में उतनी ही कठोरता लागू करनी होगी, जैसा कि फसल होते हुए भी हर किसान अफीम नहीं बो सकता। ठीक ऐसे ही धान होने पर भी किसान आग न लगा सकें, सरकार को आदेश देने होंगे। आबादी बढ़ने के साथ ही पटाखों की खपत भी बढ़ गई है फिर पटाखों में जहरीला धुआं फैलाने वाली सामग्री भी उपयोग हो रही है, जिस कारण दीपावली पर धुआं प्रदूषण बहुत ज्यादा हो रहा है। केन्द्र सरकार व संबंधित राज्य सरकारों को प्रति वर्ष विकराल हो रही इस समस्या पर काबू पाने के लिए अब उदासीन नहीं बने रहना चाहिए। जब तक सरकार कठोरता से पेश नहीं आएगी धुएं की यह आपदा दूर नहीं होने वाली।
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