Farmers News: डॉ. संदीप सिंहमार। कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो न केवल देश की आर्थिक नींव को मजबूत करता है, बल्कि किसान वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग के वैज्ञानिकों ने किसानों को कपास की बुवाई से पूर्व अपनी खेती की मिट्टी की जांच कराने की सलाह दी गई है। मिट्टी की गुणवत्ता और उसकी उपजाऊ क्षमता सीधे फसल के उत्पादन पर प्रभाव डालते हैं। जब किसान अपनी मिट्टी की जांच करते हैं, तो उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि उनकी मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद हैं और किसकी कमी है। इस जानकारी के आधार पर, वे उचित उर्वरकों का चयन कर सकते हैं, जैसे कि डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) और यूरिया, जो फसल के विकास के लिए आवश्यक हैं।
कपास अनुभाग में करवाएं मिट्टी की जांच | Farmers News
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई यह सलाह न केवल किसानों के लिए फायदेमंद है, अपितु यह कृषि उत्पादन की गुणवत्ता और स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है। खेती की सफलता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश आवश्यक है, जिससे न केवल किसानों को लाभ होगा, बल्कि समग्र कृषि क्षेत्र का विकास भी संभव होगा। मिट्टी की जांच करवाने के लिए देश के किसी भी कृषि विश्वविद्यालयों के कपास अनुभाग या प्रत्येक जिलों के कृषि विभाग के कार्यालयों में मिला जा सकता है।
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बुवाई के लिए उचित समय
कपास की बुवाई का उचित समय न केवल फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि उत्पादन और उपज पर भी गहरा असर डालता है। मई का महीना कपास की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। क्षेत्र विशेष के अनुसार, जिन स्थानों पर गेहूँ की कटाई के बाद खेत खाली हो चुके होते हैं, वहाँ किसानों ने अप्रैल में भी कपास की अगेती बुवाई की है। हालांकि, यह बात ध्यान देने योग्य है कि जून में कपास की बुवाई नहीं करने का सुझाव दिया जाता है। जून में बुवाई करने पर न केवल फसल की वृद्धि में रुकावट आती है, बल्कि कीटों और रोगों के प्रकोप की संभावना भी बढ़ जाती है। इस प्रकार, कपास की ऊष्मीय और जलवायु आवश्यकताओं के अनुसार उचित समय पर बुवाई करना आवश्यक है।
जून में बुवाई न करें किसान | Farmers News
कपास की सफल खेती के लिए एक अनुकूल वातावरण की जरूरत होती है, जिसमें तापमान और आर्द्रता का संतुलन महत्वपूर्ण है। मई का महीना सामान्यतः इन परिस्थितियों को संतुलित तरीके से प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, सही समय पर बुवाई करने से फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है। इससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है और किसान को बेहतर आय प्राप्त होती है।
शुरुआती चरण में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए
कपास की खेती खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है कि किसानों को कपास की फसल के शुरुआती चरण में जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए। सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि शुरुआती चरण में कपास की फसल में लाभकारी कीटों की भी उपस्थिति होती है। ये कीट न केवल कपास के लिए हानिकारक कीटों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, बल्कि पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव इस पारिस्थितिकी को प्रभावित करता है और लाभकारी कीटों की संख्या घटा देता है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल कपास के उत्पादन में कमी आती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
दूसरे, शुरुआती चरण में कीटनाशकों का उपयोग आर्थिक दृष्टिकोण से भी हानिकारक हो सकता है। किसानों को हर बार कीटनाशकों पर खर्च करने की आवश्यकता होती है, जो उनकी आय को कम करता है। जब फसल में लाभकारी कीटों का नुकसान होता है, तो किसानों को दोबारा कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है, जो एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ बनता है। यह एक दुष्चक्र की तरह काम करता है, जिसमें किसानों की आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
कंपनियों के झांसे में न आए किसान | Farmers News
कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के चलते नई-नई तकनीकों और बीजों का अविष्कार किया जा रहा है, जिनमें से बीटी कॉटन एक प्रमुख उदाहरण है। इसे मुख्य रूप से अच्छी पैदावार और कीट प्रतिरोधक गुणों के लिए विकसित किया गया है। हाल ही में, कई कंपनियों ने 3जी, 4जी और 5जी नामक कपास के बीज बाजार में उतारे हैं, जो गुलाबी सुंडी जैसे कीटों से बचाने का दावा करते हैं। कृषि अनुभाग विभाग ने किसानों को सतर्क करते हुए बताया कि वर्तमान में उपलब्ध बीटी कॉटन के बीजों में से कोई भी इस कीट के खिलाफ पूर्ण रूप से प्रतिरोधक नहीं है।
कीटनाशकों का विवेकपूर्ण उपयोग | Farmers News
वैज्ञानिक तरीके से कीटनाशकों का उपयोग करके कीटों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए अच्छे ज्ञान और समझ की आवश्यकता होती है। तकनीकी रूप से उन्नत बीजों का चयन एक महत्वपूर्ण कदम है, किसान को स्वयं अपने संसाधनों और अनुभवों का उपयोग करते हुए इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। इन बीजों से दूरी बनाकर, किसान एक समृद्ध और सुरक्षित फसल सुनिश्चित कर सकते हैं।