अब स्वास्थ्य सेवाओं पर भी विशेष छूट का दौर

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अस्पतालों द्वारा लोगों को आकर्षित करने के लिए डाला जाता है विशेष रियायतों का चोगा

भटिंडा (अशोक वर्मा)। भटिंडा क्षेत्र में निजी मेडिकल सेवाएं कार्पोरेट सेक्टर का रूप धारण कर गई हैं। इसकी मिसाल काफी अस्पतालों द्वारा अपनी सेवाओं में अन्य व्यापारिक संस्थानों की तरह विशेष रियायतें देने व पेशकश करने से मिलती है। शहर के अखबार रोजाना ही ऐसे पोस्टरों व हैंडबिलों से भरे होते हैं, जिनमें मरीजों को रियायतें अथवा विशेष छूट का चोगा डाला होता है।

जानकारी मुताबिक भटिंडा के एक निजी अस्पताल ने शहर में पांच हजार रुपये में होने वाले टैस्ट 1499 रुपये में करने की पेशकश की है। इसी अस्पताल ने पूरे शरीर से संबंधित टैस्ट का 13 हजार रुपये वाला पैकेज 4699 व बाजार में 7900 रुपये में होने वाला काम 2499 रुपये में करने की घोषणा की है।

भटिंडा में निजी स्वास्थ्य सेवाएं हुई कार्पोरेट सेक्टर में तबदील

इसी तरह एक अन्य अस्पताल ने सुबह 9 बजे से 12 बजे तक जनरल ओपीडी की कीमत 50 रुपये की है तो अन्य भी कई अदारों ने मरीजों को आकर्षित करने के लिए कई तरह की पेशकश की हुई हैं। इस देखा-देखी के चलते मरीजों की संख्या कम होने की मजबूरी में शहर के बड़े अस्पताल को भी कई मामलों में विशेष छूट की घोषणाएं करनी पड़ी हैं।

पता चला है कि दो तीन अस्पताल तो ऐसे हैं, जिन्होंने इस काम के लिए कार्पोरेट मैनेजरों की नियुक्ती कर रखी है। यह मैनेजर मरीजों अथवा उनके साथ आए रिश्तेदारों को स्वास्थ्य सेवाओं के प्लान समझाते हैं और बिक्री करते हैं।

इससे स्पष्ट है कि डॉक्टरी भी अब सेवा वाला काम नहीं रहा है। माना जा रहा है कि इसके मुख्य कारण बदलते समय कारण तबदील हुई सामाजिक तरजीह, मेडिकल शिक्षा का महंगा होना, ईलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों व इमारतों का खर्च करोड़ों तक पहुंच जाना है। इसके साथ ही सरकारों द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मूलभूत क्षेत्र के लिए ग्रांट देने से हाथ पीछे खींचना इसके लिए जिम्मेवार है।

देखने में आया है कि इस क्षेत्र में दो दर्जन के करीब बड़े अस्पताल हैं, जिनके द्वारा अपने- अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होने व मरीजों को अत्याधुनिक सेवाएं देने का दावा किया जा रहा है।

भटिंडा में अपना अस्पताल चला रहे डॉक्टर का प्रतिक्रम था कि कोई समय ऐसा भी था कि भटिंडा जिले में कुछ ही बड़े अस्पताल थे। गत डेढ दशक दौरान अस्पतालों की संख्या में काफी ईजाफा हुआ है। विशेष तौर पर किसी न किसी रोग के विशेषज्ञ डॉक्टरों के अस्पताल ज्यादा अस्तित्व में आए हैं। इसके चलते स्वास्थ्य के क्षेत्र में मुकाबले का दौर शुरू हो गया है। मजबूरी कहें अथवा अपना काम ठप होने का डर, हर कोई व्यापारिक रास्ते पर चल पड़ा है।

विरोधी नीतियां जिम्मेवार: डॉ.मंगला

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भटिंडा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप मंगला ने कहा कि पंजाब में 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाएं छोटे स्तर पर निजी व सरकारी अस्पतालों में मुहैया करवा रहे हैं। स्वास्थ्य ढांचे को बिगाड़ने के लिए विरोधी देशों के ईशारे पर लागू की नीतियों जिम्मेवार हैं,

जिनके तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्पोरेट घरानों को प्रोत्साहन किया जा रहा है। डॉ. मंगला ने कहा कि असल में इन कार्पोरेट अस्पतालों का एक ही उद्देश्य पैसा कमाना रह गया है, जिस कारण इस तरह के ढंग अपनाए जा रहे हैं।

चिंताजनक रूझान: माहीपाल

कामरेड माहीपाल ने कहा कि इसके लिए सरकार की नीतियां जिम्मेवार हैं, जिसने सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया है। इसका परिणाम कार्पोरेट अस्पताल अपनी जरूरत व मर्जी मुताबिक इस सेवा को सौदे की तरह बेचने लगे हैं। पैसे की दौड़ में ‘प्रोफैशनलिजम’ ही इतनी बढ़ गई है कि अब मरीजों को ग्राहक समझा जाने लगा है, जो कि सामाजिक पक्ष से चिंताजनक रूझान है।

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