रूहानियत के शहनशाह शाह सतनाम जी दातार

Shah Satnam Singh Ji Maharaj
Shah Satnam Singh Ji Maharaj रूहानियत के शहनशाह शाह सतनाम जी दातार

सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने मानवता के प्रति जो महान परोपकार किए हैं उसका वर्णन किया ही नहीं जा सकता। आपजी ने दुनिया को परमपिता परमात्मा से मिलने का राम-नाम का बहुत ही सरल रास्ता बताया। आपजी की पावन शिक्षाओं का प्रसार आज पूरे विश्व में हो रहा है। संत प्रकृति की मर्यादा के अनुसार अपना पंच भौतिक चोला बदलते हैं, लेकिन उनकी आध्यात्मिक ताकत हमेशा अतीत, वर्तमान और भविष्य में कायम रहती है। यह अनोखी मिसाल एमएसजी के रूप में सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल सतगुरु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने कायम की है। आप जी ने चोला बदलने से पहले ही पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के सीने पर कई बार अपने कर-कमलों से स्पर्श करके यह वचन फरमाए कि, ‘‘हम कहीं नहीं जाएंगे, हम यहीं (सीने पर स्पर्श करते हुए) रहेंगे, यहीं रहेंगे।’’ पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 13 दिसंबर 1991 को अपना पंच भौतिक चोला बदला। आप जी ने डेरे में उपस्थित जीएसएम सेवादारों को भावुक होते देख वचन किए, हम कहीं नहीं जा रहे, बल्कि जवान होकर आएंगे और दरबार के काम पहले से कई गुना बढ़कर होंगे।

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने सृष्टि पर अनंत परोपकार किए, जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। आप जी ने लाखों लोगों को नाम-शब्द, गुरु-मंत्र की दात बख्श कर उनकी आत्मा को सच्चा मोक्ष प्रदान किया। आप जी ने केवल सृष्टि के आत्मिक कल्याण का ही बीड़ा नहीं उठाया, बल्कि समाज में व्याप्त अंधविश्वास, भयानक नशों, धार्मिक भेदभाव, जातिवाद, क्षेत्रवाद, स्वार्थीपन जैसी बुराइयों को दूर करके आपसी भाईचारे और नि:स्वार्थ प्रेम का संदेश दिया। आप जी ने जहां अति जरूरतमंदों, गरीबों व दुखियों की खुद मदद की वहीं समस्त मानव समाज को भी जनसेवा का यह रास्ता दिखाया। आपजी का पावन संदेश है।

आपजी का पावन संदेश है, ‘‘परमात्मा एक है और सभी जीव उसकी संतान हैं, कोई बड़ा-छोटा नहीं। परमात्मा को पाने के लिए पैसे, कर्म-काण्ड, दान-‘‘परमात्मा एक है और सभी जीव उसकी संतान हैं, कोई बड़ा-छोटा नहीं। परमात्मा को पाने के लिए पैसे, कर्म-काण्ड, दान-चढ़ावे आदि लोक दिखावे की आवश्यकता नहीं, केवल सच्ची भावना से की गई भक्ति से ही रब्ब को पाया जा सकता है।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को पावन धरा श्री जलालआणा साहिब, जिला सरसा में अवतार धारण किया। आपजी के पूजनीय पिता का शुभ नाम सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू और पूजनीय माता का शुभ नाम आस कौर जी था। आप जी अपने माता-पिता की एकलौती संतान थे। जन्म के समय से ही आप जी के नूर से रब्बी जलाल झलकता था, जो एक बार देख लेता बस देखता ही रह जाता। पूजनीय माता जी के उच्च पवित्र संस्कारों द्वारा बचपन से ही आपजी का हृदय रब्बी गुणों (ईश्वरीय भक्ति)और समाज सेवा से भरपूर था।

आप जी परमात्मा की खोज में कई संत-महात्माओं से मिले, उनसे गोष्ठियां भी की परन्तु कहीं से भी आपजी को संतुष्टि नहीं मिली। अंतत: आप जी डेरा सच्चा सौदा में आए तो पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के पावन दर्शन कर व पवित्र अखण्ड वचन सुनकर अंदर-बाहर से निहाल हो गए और आपजी को पूर्ण संतुष्टि मिली। उसी दिन से ही आपजी पूजनीय सार्इं जी को अपना तन-मन आदि सब कुछ सौंपकर दिन-रात सेवा में जुट गए। पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी पर अपार रहमतें बरसार्इं और आपजी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना। गुरगद्दी की बख्शिश से पहले सार्इं जी ने आपजी की कठिन से कठिन अनेक परीक्षाएं ली, जिसमें आप जी ने अपनी दृढ़ निष्ठा से दुनिया को दर्शाया कि गुरु और शिष्य का रिश्ता क्या होता है।

आपजी ने अपने सतगुरु जी के हुक्म अनुसार गिराई गई अपनी बड़ी हवेली और घर का सारा सामान ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर डेरा सच्चा सौदा सरसा में पहुँचा दिया। परीक्षा अभी भी बाकी थी। सार्इं जी ने सारा सामान आधी रात को ही डेरे से बाहर निकालने और खुद ही रखवाली करने के आदेश दिए। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने सतगुरु प्यारे के वचनों को सिरौधार्य करते हुए कड़ाके की ठंड के बीच स्वयं खुले आसमान के नीचे पूरी रात सामान की रखवाली की। अगले दिन सारा सामान आई हुई साध-संगत में बाँट दिया और आपजी ने अपने मुर्शिद प्यारे के दर्शनों का आनंद लिया। आखिर, बेपरवाह जी ने अपने खेल का राज़ प्रकट करते हुए आपजी को सरदार हरबंस सिंह जी (बचपन का शुभ नाम) से सतनाम सिंह जी महाराज ‘सतनाम’ का खिताब बख्शकर गुरगद्दी पर अपने साथ विराजमान किया। पूजनीय बेपरवाह जी ने साध-संगत में फरमाया कि ‘‘ये (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज) हमारा ही स्वरूप हैं। ये वोही सतनाम है जिसके सहारे ये सब खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं, जो इनकी पीठ के भी दर्शन करेगा वह भी नरकों में नहीं जाएगा। उसका भी उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे।’’

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 30 वर्षों तक दिन-रात रूहानियत का खूब डंका बजाया और लगभग 12 लाख लोगों को नशे आदि बुराइयां छुड़वाकर नाम-शब्द की बख्शिश की। 23 सितंबर 1990 को आपजी ने साध-संगत की उपस्थिति में पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे गुरु के रूप में विराजमान करके रूहानियत का इतिहास रचा। आप जी ने उसी दिन से पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को दरबार की तमाम जिम्मेवारियां सौंप दी। आप जी सवा साल तक पूज्य गुरु जी के साथ साध-सगत में ही विराजमान रहे। आपजी 13 दिसंबर 1991 को पंच भौतिक शरीर बदल लिया।

सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां विगत 34 वर्षों से आपजी का रूहानियत का संदेश पूरे विश्व में फैला रहे हैं। पूज्य गुरु जी की प्रेरणा व अथक प्रयासों से आज सात करोड़ से अधिक लोग नशे आदि सामाजिक बुराइयों को त्याग कर डेरा सच्चा सौदा के साथ जुड़कर आत्मिक व सामाजिक कल्याण का लाभ ले रहे हैं। आज पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज अपने नौजवान स्वरूप पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में साध-संगत की पल-पल संभाल कर रहे हैं। पूज्य गुरु जी के पावन मार्गदर्शन में सच्चे मुर्शिदे-कामिल की पवित्र याद में सन् 1992 से हर साल 12 से 15 दिसंबर तक ‘याद-ए-मुर्शिद शाह सतनाम जी फ्री आई कैंप’ लगाया जा रहा है, जिससे हजारों लोगों ने अपनी अंधेरी जिंदगी में उजाला पाया है और ये सिलसिला लगातार जारी है जी।