हमने नहीं की कोई फिजूलखर्ची, विज्ञापन जारी करना जरूरी

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सच कहूँ से विशेष बातचीत में सीएम के भरोसेमंद अधिकारी राजेश खुल्लर बोले

  • आरटीआई के अनुसार सरकार ने दो वर्षांे में 190 करोड़ रुपए के विज्ञापन जारी किए

चंडीगढ़(अनिल कक्कड़)। प्रदेश सरकार द्वारा गत 2 वर्षांे में विज्ञापनों पर खर्चे गए 190 करोड़ रुपए की आरटीआई जानकारी के बात सियासी गलियारों में हलचल मच गई है।

उठते सवालों के बीच मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों में से एक और उनके प्रिंसीपल सेके्रटरी राजेश खुल्लर ने सच कहूँ से बातचीत में कहा कि सरकार के लिए विज्ञापन जारी करना कानूनी तौर पर जरूरी है व सरकार ने किसी तरह की फिजूलखर्ची नहीं की है। उन्होंने कहा कि आरटीआई में जानकारी अधूरी मांगी गई है और जितनी जानकारी मांगी गई है उतनी मुहैया करवा दी गई है।

गत दिवस आरटीआई के आधार पर छपी एक रिपोर्ट में साफ किया गया है कि सरकार ने दो वर्षांे में 190 करोड़ रुपए के विज्ञापन जारी किए हैं जिनमें से 173 करोड़ रुपए के प्रिंट मीडिया एवं 11.5 करोड़ रुपए के विज्ञापन इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को जारी किए गए हैं। वहीं सरकार ने 5.5 करोड़ रुपए फलैक्स बोर्डांे पर खर्चे हैं।

क्लासीफाइड और डिस्पले विज्ञापन का फीसदी 50-50 रखती है

इस पर खुल्लर ने कहा कि सरकार हमेशा क्लासीफाइड और डिस्पले विज्ञापन का फीसदी 50-50 रखती है। डिस्पले विज्ञापन में 70 फीसदी के करीब ऐसे विज्ञापन होते हैं जो हर सरकार के शासनकाल के दौरान जारी होती हैं जिसमें 15 अगस्त, 26 जनवरी, कबीर दास जयंती, वाल्मिकी जयंती इत्यादि विज्ञापन होते हैं।

वहीं 30 फीसदी के करीब सरकार की जनहित की स्कीमों, योजनाओं एवं सूचनाओं से संबंधित होती हैं जो कि हर नागरिक की जानकारी के लिए आवश्यक होती हैं। बता दें कि सरकार द्वारा डिस्पले तथा क्लासीफाइड दो तरह के विज्ञापन जारी होते हैं। डिस्पले में डिजायनदार विज्ञापन जिनमें विभिन्न समारोहों, जयंतियों व सरकार की उपलब्धियों आदि का वर्णन किया जाता है,

जिसमें संंबंधित महापुरुष एवं सरकार के मंत्रियों की तस्वीरें भी प्रकाशित होती हैं। वहीं क्लासीफाइड में केवल नोटिस, नौकरी संबंधी सूचना, निविदा सूचना या अन्य सूचनाएं इत्यादि बिना किसी साज-सज्जा के प्रकाशित होती हैं।

फिजूलखर्ची का सवाल ही नहीं

खुल्लर ने कहा कि फिजूलखर्ची बिल्कुल नहीं है। आप यहां से अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले दस सालों के दौरान हर वर्ष क्लासीफाइड के लिए कितनी राशि खर्च हुई और डिस्पले विज्ञापन के लिए कितनी खर्च हुई। डिस्पले विज्ञापन कितना रहा है। उसके मुकाबले में पिछले दो सालों की तुलना की जा सकती है।

विज्ञापन आदत नहीं, कानूनी तौर पर जरूरी

एक सवाल के जवाब में खुल्लर ने बताया कि प्रदेश सरकार को विज्ञापन जारी करना कानूनी तौर पर भी जरूरी है। जहां तक क्लासीफाइड की बात है, जैसे नौकरी के विज्ञापन हैं। तो यह बहुत जरूरी है कि नौकरी संबंधी विज्ञापन दो बड़े अखबारों एवं दो छोटे अखबारों में अवश्य छपें ताकि उसकी सूचना जन-जन तक पहुंचे।

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