बैंकों को डूबने से रोकिये

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केंद्रीय कैबिनेट ने डीआईसीजीसी एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी है। इससे किसी भी बैंक के डूबने पर खाताधारक को उसके जमा पांच लाख रुपए 90 दिनों के भीतर मिल जाएंगे। विगत वर्षों में पीएमसी बैंक, यश बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक भी संकट में आ गए थे। भले ही यह अच्छी बात है कि लोगों को उनका पैसा मिल सकेगा लेकिन यहां आवश्यकता इस बात की है कि बैकिंग व्यवस्था इतनी मजबूत की जाए ताकि कोई बैंक डूबे ही नहीं। जहां तक बैकिंग के कारोबार का संबंध है, बैंकों के डूबने का कोई चांस ही नहीं बनना चाहिए। दरअसल बैंकों के डूबने का कारण ही भ्रष्टाचार है। हमें इस धारणा से बाहर निकलने की आवश्यकता है कि बैंक कभी डूब भी जाते हैं। ऐसी धारणा हमारी अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खा रही है। ऐसे में लोग अपना पैसा बैंकों में जमा करवाने से पीछे हटेंगे और नकद लेन-देन बढ़ेगा।

सरकार के इस ऐलान के बाद शायद अब लोग यही सोचने लगेंगे कि अपने किसी भी अकाउंट में पांच लाख से ज्यादा रकम रखें ही ना। वास्तव में व्यवस्था ऐसी होना चाहिए कि खाताधारक को देश के कानून व बैकिंग व्यवस्था पर पूरा भरोसा हो। लोग बेफिक्र होकर बैंकों में पैसा जमा रखें। केंद्र सरकार व रिजर्व बैंक सभी बैंकों की सख्त निगरानी करें और बैकफुट पर चल रहे बैंकों की मदद भी करें। बैकिंग क्षेत्र से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सख्त नियम बनने चाहिए और दोषियों को कानून के कटघरे में खड़ा करने की प्रक्रिया में तीव्रता लाने के प्रयास करने चाहिए। विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे लोगों ने भारतीय बैंकों को बुरी तरह चोट मारी है।

कानूनी अड़चनों के कारण उपरोक्त आर्थिक भगौड़े खुद को विदेशों में छिपाकर बैठे हैं। अंतरराष्ट्रीय संधि भी कानूनी समाधान में बाधा बनी हुई है। वास्तव में आर्थिक अपराधियों से ब्याज सहित पैसे की भरपाई करवाई जानी चाहिए। उन बैंक अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जो नियमों को नजरअंदाज कर मोटे कर्ज देते हैं। अत: आवश्यकता है कि बैकिंग सिस्टम को विश्वसनीय व मानवीय आवश्यकताओं का अटूट हिस्सा बनाया जाए। बैकिंग क्षेत्र में वृद्धि के बिना देश की खुशहाली की कल्पना नहीं की जा सकती। सरकार को इस बात की गारंटी देनी चाहिए कि बैंक डूबेंगे ही नहीं, बैंक जुआ नहीं बल्कि विकास की गारंटी होने चाहिए।

 

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