दिव्यांगों का मजाक उड़ाने वालों को मांगनी पड़ेगी माफी
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि दिव्यांगजन अथवा गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों का मज़ाक उड़ाना किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने स्टैंडअप कलाकार समय रैना, विपुल गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने यूट्यूब चैनलों पर सार्वजनिक रूप से माफी माँगें। Supreme Court News Today
न्यायालय ने टिप्पणी की कि हास्य-व्यंग्य के नाम पर किसी की पीड़ा का उपहास करना न तो सामाजिक दृष्टि से उचित है और न ही विधि की दृष्टि से। साथ ही स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि किसी की शारीरिक अक्षमता या रोग को हंसी का विषय बनाया जाए।
पीठ ने कहा कि कलाकारों द्वारा की जाने वाली माफी केवल औपचारिक न हो, बल्कि उसमें सच्ची भावना परिलक्षित हो ताकि समाज में सकारात्मक संदेश पहुँच सके। सुनवाई के दौरान अदालत ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि शिकायत दर्ज होने के बाद भी इन कलाकारों ने तुरंत खेद व्यक्त करने के बजाय सफाई देने का प्रयास किया, जिसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया बताया गया।
केंद्र सोशल मीडिया मंचों के लिए स्पष्ट और सुदृढ़ नीतियाँ बनाए
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सोशल मीडिया मंचों के लिए स्पष्ट और सुदृढ़ नीतियाँ बनाए, जिनमें सभी पक्षकारों—कंटेंट निर्माता, प्लेटफ़ॉर्म संचालक, सरकारी संस्थाएँ और आम नागरिक—की राय सम्मिलित हो। न्यायालय ने कहा कि जब सोशल मीडिया आय का माध्यम बन चुका है, तो इसके साथ ज़िम्मेदारी भी और अधिक बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त, अदालत ने सभी संबंधित कॉमेडियनों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स से हलफ़नामा दाख़िल करने को कहा है, जिसमें यह उल्लेख हो कि वे अपने मंच का उपयोग दिव्यांगजनों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए कैसे करेंगे।
उल्लेखनीय है कि एक फाउंडेशन ने याचिका दायर कर यह मुद्दा उठाया था कि कुछ स्टैंडअप कलाकारों ने अपने कार्यक्रमों और वीडियो में ‘स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी’ से पीड़ितों तथा नेत्रहीनों का मज़ाक उड़ाया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह प्रवृत्ति न केवल अमानवीय है, बल्कि समाज के संवेदनशील वर्गों को हंसी का पात्र बनाकर उनके सम्मान को ठेस पहुँचाती है। Supreme Court News Today
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