स्वदेशी का सफर : आजादी के पहले और वर्तमान भारत

लेखक
नवीन कुमार यादव

गालवान घाटी में अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीर जवानों शहादत को प्राप्त हो गए, मैं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। आज देश चौतरफा संकट की परिस्थितियों से घिरा हुआ है। आज देश अपने वीर जवानों रियल हीरो के साथ एकजुट एक आवाज में एक साथ खड़ा है। चीन के हमले ने देश को झकझोर दिया। हमने हमारे 20 जवान ज्वलंतपुंज गवां दिए और यह माहौल देश को एक अलग दिशा दे रहा और यह दिशा आजादी की समयावधि 1905 स्वदेशी आंदोलन की तरफ जाता हुआ दिखाई दे रहा है जो एक बहुत अच्छा संकेत है। आज पूरे देश में स्वदेशी अपनाओ की गूंज सुनाई दे रही है। यदि सच्चे मायने में देखें तो यह हवा धरातल पर वास्तविक रूप में काम करे तो भारत की स्थिति बहुत खूबसूरत होगी। 1905 के स्वदेशी आंदोलन की तस्वीर भी आज के स्वदेशी आंदोलन की तस्वीर में बहुत अंतर है. 1905 में जो कहा वो किया गया लेकिन आज भारत में जो कहा गया वह 2 दिन बाद भूल गए की विचारधारा लोगों में दिखाई देती है। लेकिन प्रश्न यह है की 1905 के मुकाबले 2020 का भारत बहुत ताकतवर है फिर भी इस विचारधारा को स्थाई रूप से स्थापित करने में कामयाब क्यों नहीं हो रहा? जब भी ऐसी कोई नापाक हरकत पड़ोसी मुल्क से होती है तो उसके अगले ही दिन हम सड़कों पर पोस्टर बैनर लेकर निकल पड़ते हैं वह भी मात्र 10 से 15 मिनट के लिए फोटो खिंचवाने के लिए और फोटो भी उन्हीं यंत्रों से खींचते हैं जिनका कहीं ना कहीं बहिष्कार से सीधा संबंध होता है उनके हाथ में जो यंत्र होते हैं वह अधिकतर विदेशी हो ज्यादा तो चाइनीस होते हैं फिर भी इनमें इतनी हिम्मत कैसे आ जाती है कि गरीबों को ज्ञान देते हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी स्वदेशी के प्रेम में गुजार दी और जैसे ही तस्वीर अखबारों टीवी चैनल में आती है उसके अगले ही दिन हम वह ज्ञान भूल जाते हैं जो पिछले दिन 10 से 15 मिनट हमने किसी चौराहे पर खड़े होकर बड़े जोश के साथ दिया था। जहां हमने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया था वहां स्वदेशी पोस्टर जलाने के अलावा हमने कोई भी विदेशी वस्तु की 1905 की तरह होली नहीं जलाई विदेशी ब्रांड वाली वस्तुओं की दुकानों के आगे धरना नहीं दिया अब आप खुद सोचिए कि 1905 का जंजीरों में जकड़ा हुआ भारत से कहीं ज्यादा जंजीरों से मुक्त 2020 का भारत ज्यादा मजबूत है फिर भी हम 1905 के स्वदेशी आंदोलन के आगे बहुत कमजोर हैं।
आज स्वदेशी के प्रति जो अचेतन अवस्था है उसमें जितना हम जिम्मेदार है उससे कहीं अधिक जिम्मेदार हमारे हुक्मरान है एक बात तो है की हुक्मरान पहनते तो स्वदेशी हैं यहां तो मुझे बहुत खुशी मिलती लेकिन दुख तब होता है जब यह स्वदेशी खादी पहनकर विदेशी सामानों का टेंडर साइन करते हैं और विदेशी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी लगाते हैं इनको जरा भी शर्म महसूस नहीं होती बापू की खादी पहनकर बापू के स्वदेशी के सपने को तोड़ते हुए। और फिर हम अंधभक्त बन कर रहे नारे लगाते हैं और जैसे ही नापाक हरकत पड़ोसी मुल्क से होती है उस समय हम फिर से 15 मिनट स्वदेशी अपनाओ का नारा लगाते हुए किसी चौराहे पर ज्ञान देते हुए खड़े होते हैं। आज हिंदी की वो दुर्गति हो गई जिसकी कल्पना ही नहीं की थी राजस्थान जैसी सरकारें हिन्दी सुधार के बजाय अंग्रेजी माध्यम के स्कूल स्थापित कर रही हैं। सोचने की बात है कि जब हम हिन्दी को सभांल कर नहीं रख सकते तो स्वदेशी सामानों को कैसे रखेंगे। अच्छी बात है स्वदेशी आंदोलन कर रहे हो लेकिन इसका दायरा बढ़ाओ शिक्षा स्वास्थ्य जैसी चीजो के स्वदेशीकरण की बात भी उठाओ और संघर्ष करो।
हिन्दी भाषा की मीठास हमनें खो दी, हमारे कुम्हार का चाक हमारे अचेतनावस्था के कारण और हमारे हुक्मरानों की स्वार्थ लिप्सा के कारण लुप्त हो गया है। हमारे दीयों की जगह चाइनीज झालरों ने ले ली। लेकिन जिस तरह चीन हरकतें कर रहा है उसके हिसाब से हमें अब बाल गंगाधर तिलक जी के जोश जज्बा देशभक्ति को अपने जीवन में अपनाते हुए गांधीजी के सपने स्वदेशी की तरफ बढना होगा। चीनी झालरों की जगह दीयों को प्रज्वलयमान करना होगा। कहने का मतलब ये है कि प्रधानमंत्री जी के नारे लोकल टू वोकल को अब अपने जीवन में अपनाना होगा। पूरे देश को 1905 के स्वदेशी आंदोलन को पुर्न: जीवित कर तिलक जी के जज्बे के साथ आगे बढ़ना होगा।
कुछ लोग कहेंगे कि ये सम्भव नहीं है। लेकिन साहब हम उन वंश परम्पराओं से आते हैं जहां घास की रोटी खाकर भी देश के स्वाभिमान के लिए अपनी सरहदों से समझौता ना किया और ना कभी करेंगे। तो इस स्वदेशी की दिशा में कदम बढाए। आदरणीय सत्ताधीशो ! देश की आवाज और देश के मानस को समझिए ! मेरे हिन्दुस्तान में चीनी कम्पनियों को दिए निर्माण के सारे ठेके टेंडर संधियाँ रद्द कीजिए , भारतीय कम्पनियों में षड्यंत्र पूर्वक किए गए चीनियों के सारे निवेश को बाहर फेंकिए, उस निवेश की जगह भारतीय कम्पनियों को निवेश दीजिए ! चीनी उत्पादों के खिलाफ और बापू के सपने स्वदेशी को स्वीकार करने के लिए पूरे देश को तैयार कीजिए !

 

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