कुरुक्षेत्र सच कहूँ/देवीलाल बारना। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे रत्नावली महोत्सव में इस बार जहाँ एक ओर हरियाणवी संस्कृति के रंग-रूप, लोकगीत और नृत्य ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, वहीं दूसरी ओर स्वाद का संगम बना ‘ताऊ बलजीत’ की गोहाना वाली जलेबी का स्टॉल। हरियाणवी में कहा भी जाता है रत्नावली में जलेबी ना हो, तो मेला अधूरा-सा लागे है। ऐसे में ताऊ बलजीत जो वर्ष 1960 से गोहाना की प्रसिद्ध जलेबी बना रहे हैं, इस बार भी अपने अनोखे स्वाद से लोगों का दिल जीतते नजर आए। उनके हाथों से बनी मोटी, खमीर उठी, कुरकुरी सुनहरी जलेबी ने हर किसी को अपनी ओर खींच लिया। लोग न सिर्फ वहीं बैठकर जलेबी का स्वाद ले रहे थे बल्कि घर ले जाने के लिए पैकिंग करवाते हुए वाह ताऊ वाह! कहते नजर आए। ताऊ बलजीत सिर्फ एक मिठाई बनाने वाले नहीं, बल्कि हरियाणा की परंपरा और मान-सम्मान के जीवंत प्रतीक हैं। वे हर वर्ष गीता जयंती, सूरजकुंड मेले और रत्नावली महोत्सव जैसे आयोजनों में अपनी खास जलेबी के माध्यम से हरियाणा की पहचान को नई ऊँचाइयाँ दे रहे हैं।
उनके इस निरंतर योगदान के लिए उन्हें कई राज्य स्तरीय मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। रत्नावली के दौरान उनके स्टॉल पर लोगों की भारी भीड़ रही बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर किसी ने ताऊ बलजीत की जलेबी का स्वाद चखकर मुस्कुराते हुए कहा मोटी खमीर, सुनहरी रंगत- ताऊ बलजीत की जलेबी, हरियाणा की शान बनत! रत्नावली महोत्सव में इस बार फिर यह साबित हुआ कि हरियाणा की संस्कृति के संग ताऊ बलजीत की जलेबी का स्वाद अब इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।















