बढ़ते रोबोट से घटते रोजगार की चुनौती

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आॅक्सफोर्ड यूनिटवर्सिटी और गूगल डीपमाइंड के शोधकर्ताओं का एक पेपर पिछले महीने एआई मैगजीन में प्रकाशित हुआ है। इस पत्र में एआई जोखिम पर चर्चा की गई है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि कैसे एआई इंसानियत के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के माइकल के. कोहेन ने एक साक्षात्कार में बताया कि असंख्य रिसोर्स वाली दुनिया में कब क्या हो यह अनिश्चित है। वहीं सीमित रिसोर्स वाली दुनिया में प्रतिस्पर्धा होनी निश्चित है। पहले से ही हर क्षेत्र में मशीनीकरण के बढ़ते उपयोग ने मनुष्य को बेरोजगार बना दिया है। क्योंकि आज रोबोट्स न सिर्फ आॅफिस के अंदर बल्कि आॅफिस के बाहर भी लोगों की नौकरियां छीनने में लगे हैं।

अमेरिकियों को डर सता रहा है कि रोबोट उनकी नौकरी पर सेंध लगा रहे हैं। यही कारण है कि ज्यादातर अमेरिकी स्वचालित कार और रोबोट के इस्तेमाल को लेकर झिझक रहे हैं। अमेरिका में जिस तरह से ड्राइवरलेस कार का चलन बढ़ रहा है, उससे लगता है कि बहुत जल्द अमेरिका की सड़कों पर केवल ड्राइवरलेस कार का ही कब्जा होगा। अगर ये बदलाव आया तो ट्रैक्सी ड्राइवर और दूसरों की कार चलाने वालों की नौकरी पर खतरा आना तय है। अमेरिका के 56 फीसदी लोग मानते हैं कि दस से पचास साल के अंदर पूरे अमेरिका में ड्राइवरलेस कार ही चलेंगी, जबकि नौ फीसदी अमेरिकियों के मुताबिक दस साल के अंदर ही सड़क पर केवल ड्राइवरलेस कार दिखाई देंगी। अमेरिका में अब तक दो प्रतिशत लोगों की नौकरी जा चुकी है। वहीं जो लोग घंटे के एवज में वेतन पाते थे, उनका काम करने के समय को पांच प्रतिशत तक कम कर दिया गया है। 18 से 24 साल के युवाओं में छह प्रतिशत की नौकरी आॅटोमेशन के चलते नहीं रही है, जबकि 11 प्रतिशत युवाओं के काम करने के घंटों में कटौती कर दी गई है।

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इसी तरह लंदन में अब डिलीवरी बॉय तक की नौकरियों पर संकट नजर आने लगा है। यहां रोबोट्स खाने-पीने की सामग्री घर-घर पहुंचाने का काम सफलतापूर्वक करने लगे है। स्टारशिप नाम की एक टेक्नोलॉजी कंपनी का छह पहियों वाला रोबोट सड़क मार्ग से कई बाधाएं पार करते हुए पार्सल लेकर घर पहुंच जाता है। अपने खास सेंसर की मदद से वह किसी से टकराता भी नहीं और सिग्नल्स भी बखूबी पार कर लेता है। यह जरूर है कि जहां हमारे डिलीवरी बॉय किसी पार्सल पहुंचाने में ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट लेने का दावा करते हैं, वहीं ये रोबोट अधिकतम 30 मिनट का समय ले रहा है। दरअसल यह साढ़े छह किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से अपना रास्ता तय करता है, ताकि किसी दुर्घटना का शिकार न हो। हालांकि गति की तरह ये जिम्मेदारी में डिलीवरी बॉय से किसी भी मामले में कम नहीं है। अगर कोई पार्सल चुराने का प्रयास करे तो ये उसकी तस्वीर ले सकता है, जो सीधे पुलिस कंट्रोल रूम को भेजी जा सकती है।

समय की मांग के अनुसार आज अमेरीका, कनाडा और आॅस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय बहु-विषयक पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालय अब भी पारंपरिक ढर्रे पर चल रहे हैं। भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में पढ़ने-पढ़ाने वालों की संख्या काफी कम है। लिहाजा हमें फैकल्टी तैयार करनी होगी। लोग तकनीक के नए युग में प्रवेश करने वाले हैं, ऐसे में सरकार की बड़ी भूमिका है। एआई से कई तरह की नौकरियां खत्म होंगी, इसलिए सरकार को सबसे पहले पॉलिसी की दिशा में काम करना होगा। नए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम तैयार करने होंगे।

— देवेन्द्रराज सुथार

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