कहर ढाह रही धुंध

गत दिवस पंजाब के जिला फाजिल्का में घटित एक दर्दनाक हादसे में 12 अध्यापकों सहित 13 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे ने मृतकों के परिवारों, सरकार व आमजन को बुरी तरह झकझौर दिया। हादसे के बाद प्रत्येक व्यक्ति चर्चा करता नजर आता है कि हादसा कैसे और क्यों हुआ! शिक्षामंत्री का फाजिल्का पहुंचना भी इस बात का परिणाम है कि हादसे की भयानकता हर किसी को दु:खी करने वाली है। फिर भी सड़क हादसों में गिरावट न आने से यह सवाल उठता है कि हादसों के प्रति आमजन व सरकारों की मानसिकता नकारत्मक बनी हुई है। सर्दी के मौसम में धुंध के कारण देशभर में हजारों व्यक्तियों की मौत होती है। इसके बावजूद हादसों से सरकार व लोग सबक लेते नजर नहीं आ रहे। एक बड़ा हादसा होता है, तो कुछ दिन बाद फिर कोई न कोई दुर्घटना घट जाती है। हर कोई हादसे पर चिंता व्यक्त करता है, लेकिन हादसों के कारणों को समाप्त करने की जहमत नहीं उठाता। लोग ट्रैफिक नियमों को मानने व अपनाने के लिए तैयार नहीं। इसी तरह सरकार भी केवल मुआवजा देने या अन्य सहायता देने तक सीमित रहती है, जबकि जरूरत है एक बेहतर ट्रैफिक व्यवस्था और संस्कृति की। सबसे पहले तो हमारे राजनैतिक नेताओं, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को खुद ट्रैफिक नियमों के पालन की मिसाल बनना चाहिए। जब अधिकारी ही गाड़ियां सड़क पर रोककर घंटा-घंटा बाजार में खरीददारी करते हैं, तो आम लोगों के लिए कोई मॉडल नहीं रह जाता। वैसे तो कानून के पालन की भावना दिल से उठनी चाहिए, लेकिन यहां तो सख्ती भी लागू नहीं होती। ट्रैफिक पुलिस के किसी कर्मचारी में हिम्मत नहीं होती कि वह किसी राजनैतिक रसूख वाले व्यक्ति या उच्च अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई कर सके। यदि कोई भूल-चूक से हिम्मत कर भी ले, तो उसकी शामत आ जाती है। कानून का राज लाने के लिए हर छोटे से छोटे कर्मचारी को इतनी हिम्मत व आजादी देनी होगी कि वह नियमों का उल्लंघन करने वाले उच्च अधिकारियों व राजनैतिक नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके। इसके बिना सुधार संभव नहीं। ट्रैफिक विभाग में भ्रष्टाचार खत्म किया जाना भी जरूरी है, ताकि कर्मचारी नियमों का उल्लंघन करने वालों से पैसे लेकर उसे गैर-कानूनी कार्यों की छूट न दें। आम जनता का भी कर्तव्य है कि नियमों को तोड़ने में गर्व महसूस करने की बजाए, नियमों को मानने में गर्व महसूस करे। सरकार को यह भी चाहिए कि बढ़ रही धुंध के मद्देनजर विकसित देशों की प्रौद्यौगिकी और व्यवस्था का प्रयोग कर यातायात को सुरक्षित बनाएं। यह केवल मुआवजा नहीं, बल्कि कीमती जानों का सवाल है।