आत्मा दुनिया में आकर भूल जाती है गर्भ में किए वादे

Anmol Vachan

सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसकी आत्मा मालिक, अल्लाह, परमात्मा से दुआ करती है कि हे मेरे मालिक! मुझे इस कुम्भी नरक से आजाद कर दे और मैं हमेशा तुझे याद रखूंगी, लेकिन वह आत्मा जैसे ही बाहर आती है तो वह अपने किए हुए वायदे को भूल जाती है और मोह-माया में ऐसी खो जाती है कि उसे अपने मालिक की याद ही नहीं रहती। इन्सान का फर्ज है कि वह उस मालिक को याद करे जिसकी वह अंश है और जिससे वह बिछुड़ कर आया है। जो इन्सान मालिक की सच्चे दिल से भक्ति करता है, वह उसकी दया-मेहर के काबिल जरूर बन जाता है।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान की आत्मा उस परमात्मा की अंश है और मालिक से बिछुड़ कर आई नूर-ए-किरण है, लेकिन इस काल देश में आकर जीवात्मा सब कुछ भूल गई है। मन और माया ने आत्मा को इस तरह से गुमराह कर दिया है कि वह अपने अल्लाह, मालिक को भूल गई है। इन्सान केवल अपनी इच्छाओं को याद रखता है जो एक मक्कड़जाल के समान है। इन्सान की एक इच्छा पूरी होती है और साथ ही दूसरी शुरू हो जाती है। फिर दूसरी पूरी होती है और तीसरी शुरू हो जाती है। इस तरह इच्छाओं का मक्कड़जाल इन्सान के जीवन में छाया रहता है और मालिक की याद दिलो-दिमाग से खत्म हो जाती है। इन्सान जैसे-जैसे मालिक से दूर होता जाता है वैसे-वैसे उसके अंदर का सरूर खत्म होता चला जाता है।

पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि इन्सान के अंदर से अगर अपने मालिक के लिए आस्था, विश्वास खत्म हो जाता है तो उसे सुख, चैन, खुशियां कहां से मिलेंगी। ऐसा इन्सान आनन्द से खाली हो जाता है और परमानन्द से वंचित रह जाता है। इसलिए इन्सान को अपने मालिक, सतगुरु, परमात्मा पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए। इन्सान को चाहिए कि वह अपने विश्वास को सत्संग रूपी पानी पिलाता रहे, न कि पानी अपने ऊपर उड़ेलते रहें अर्थात् सत्संग सुने और सत्संग में फरमाए गए वचनों पर अमल जरूर करें। इन्सान अगर सत्संग सुन कर अमल नहीं करता तो वह खुशियां हासिल नहीं कर सकता।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान जब सत्संग सुनता है तो उसकी आत्मा के खाते में सत्संग का फल जरूर जमा हो जाता है और मृत्यु के बाद जब इन्सान रूहानी मंडलों में जाता है तो वहां उस सत्संग का फल काम आता है। इन्सान अगर इस जहान में खुशियां, परमानन्द हासिल करना चाहता है तो उसे वचनों पर अमल करना जरूरी है। वचन भी कोई तोप के समान थोड़े ही होते है। वचन सिर्फ इतना है कि इन्सान को राम का नाम जपना चाहिए और जपने के लिए कोई ज्यादा जोर भी नहीं लगाना पड़ता। लेटते, उठते, बैठते, सोते, खाना खाते हुए, नहाते हर जगह, हर समय इन्सान राम-नाम का सुमिरन कर सकता है। इन्सान नहाते समय भी मालिक का नाम गुनगुना सकते हैं। वैसे भी नहाते समय इन्सान गाने गाता रहता है लेकिन इससे तो अच्छा है कि राम का नाम गाया जाए। इन्सान अगर ऐसा करता है तो कदम-कदम पर इसका भी फायदा मिलना शुरू हो जाता है।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान की सभी शारीरिक क्रियाओं से सुमिरन करना सबसे आसान कार्य है। राम का नाम जपने के लिए केवल अपनी जीभ को हिलाना होता है और गुरुमंत्र गुरु, पीर-फकीर ने देना होता है। इन्सान को तो केवल अंदर ही अंदर उसका जाप ही तो करना होता है। नहाते समय भी इन्सान पूरा जोर लगाता है और कुछ लोगों को तो पसीना तक आ जाता है। उसके बाद कपड़े प्रेस करने पड़ते हैं और फिर पहनना पड़ता है लेकिन इन सभी से आसान है राम का नाम जपना।

राम का नाम तो केवल ख्यालों से जपना होता है और इसमें कुछ भी जोर नहीं लगता लेकिन इन्सान फिर भी कहता है कि मुझसे तो सुमिरन नहीं होता। तो जरा सोचिए, इन्सान बाकी सभी काम कर लेता है लेकिन राम का नाम जपने में पता नहीं क्यों उसे जोर लगता है जबकि राम का नाम लेना सबसे आसान है। इसलिए इन्सान को राम का नाम जपना चाहिए। इसके लिए इन्सान को कोई दान-चढ़ावा नहीं देना पड़ता, केवल सुमिरन करते रहना चाहिए, खुशियों से झोलियां भरते रहना चाहिए और दोनों जहानों में सैर करते जाना चाहिए।

 

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