सच्चे सतगुरू जी ने बच्चे को बख्शी नई जिंदगी

Shah Satnam Singh Ji Maharaj

जीवित ही लेकर जाऊंगी

सन् 1975 में पूजनीय परम पिता जी ने गांव जैतो मंडी (पंजाब) में सत्संग किया। मैं गुरू जी के रात्रि-विश्राम वाले घर पर दर्शन करने गई हुई थी। तब एक बहन पूजनीय परम पिता जी के पास आई। आते ही उसने अपना चार-पांच दिन का बच्चा जो मर गया था पूजनीय परम पिता जी के सामने रख दिया। पूजनीय परम पिता ने पूछा, ‘‘बेटा, क्या बात हो गई?’’ तब उस बहन ने बताया कि पिता जी, शादी के तेरह साल बाद आपने मुझे एक लड़के की दात बख्शी थी, जो जन्म लेने के पांच दिन बाद ही मर गया है। प्यारे सतगुरू जी, या तो आप जी मुझे लड़का देते ही न, अगर दे ही दिया है तो वापिस न लेते। इस को जीवनदान देकर मेरी लाज रखो।

मैं तो इसे जीवित ही लेकर जाऊंगी। उसकी करूणामयी आवाज सुनकर शहनशाह जी को दया आ गई और उसे प्यार भरे शब्दों द्वारा हौसला देते हुए फरमाया, ‘‘बेटा, जन्म-मरण तो मालिक के हाथ में है। बच्चे को ध्यान से देखो और ये प्रसाद उसके मुंह में डाल दो।’’ प्रसाद मुंह में डालते ही बच्चे ने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं और हाथ पैर हिलाने लगा। अपने बच्चे को जीवित देख उस बहन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उसकी आंखों से प्रेम की अश्रु धारा बहने लगी। उसने पूजनीय परम पिता जी का लाख-लाख धन्यवाद किया। पूजनीय परम पिताजी ने कहा, ‘‘बेटा, लगता है तुम्हें गलतफहमी हो गई थी, इसमें हमनें कुछ नहीं किया है। ’’ इस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने उस बच्चे के मौत जैसे भयानक कर्म को जिंदगी में बदलकर तथा अपने आपको छुपाते हुए उस परिवार को खुशियां से मालामाल कर दिया।
श्रीमति हाकमो देवी, जैतो मंडी (पंजाब)

सच्चे सतगुरू जी के वचन, कोई कमी नहीं रहेगी

मार्च, 1958 रामपुरिया बागड़ियां, सरसा (हरियाणा) आप जी ज्ञानपुरा धाम, रामपुरिया बागड़ियां आश्रम में पधारे। उस आश्रम की देखरेख की सेवा दादू बागड़ी करता था। सेवादार सख्त मेहनत द्वारा प्राप्त कमाई करके ही खाते और कल के भोजन की चिंता नहीं करते थे। सतगुरू पर दृढ़ विश्वास रखते हुए सेवा-सुमिरन में लगे रहते। अचानक आप जी के डेरे में पधारने पर सेवादार विचार करने लगे कि सतगुरू जी के साथ कुछ संगत भी है, और भी संगत दर्शनों के लिए व सत्संग सुनने के लिए आएगी पर आश्रम में तो इस समय मात्र एक पाव गुड़ ही है। सभी भगत लंगर पानी के प्रबंध के बारे में सोचने लगे तो भोलेपन में सत् ब्रह्मचारी सेवादार दादू ने अपने दिल की बात मुर्शिद के सामने प्रकट कर दी। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘देखो, पहले इधर एक शमशान भूमि थी।

अब डेरा बन गया है, बहुत से लोग सत्संग पर आएंगे और देखेंगे। जो तू कहता है कि राशन किधर से आएगा तो पुट्टर, फिक्र न करो, यहां तो सतगुरू के माल का ढ़ेर लग जाएगा। कोई कमी नहीं रहेगी।’’ शहनशाह जी वहां ग्यारह दिन तक ठहरे। हर रोज सत्संग होती व कमाल के नजारे मिलते। दूर-दराज से बहुत साध-सत्संग आती, रोज खूब मिठाईयां तथा देसी घी का हलवा बनता और साध-संगत को खिलाया जाता। नाम-दान लेने वाले नए लोगों की लाईनें लग जाती। कई-कई बार तो इस आश्रम में एक दिन में एक से ज्यादा बार भी आप जी ने नामदान की दात बख्शी।

वह सब जरूरतों को समझता है

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की सतगुरू के प्रति असीम श्रद्धा भक्ति को देखते हुए पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब में कई बार पधारे। एक बार बेपरवाह जी इस पवित्र गांव में सत्संग के बाद नाम-शब्द की युक्ति प्राप्त करने आए नए जीवों को बुराईयां त्यागने के बारे में समझा रहे थे। किसी-किसी नाम अभिलाषी से परिचय प्राप्त कर रहे थे। किसी-किसी से पूछ भी रहे थे कि तुम नाम-रास्ता क्यों लेना चाहते हो? सभी अपने-अपने तरीके से उत्तर दे रहे थे। इस प्रकार भान सिंह नामक भक्त से बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूछा, ‘‘वरी! तू नाम क्यों लेना चाहता है?’’ उसने बताया कि सांई जी, मेरे यहां संतान नहीं है। संतान प्राप्त करने के लिए नाम लेना चाहता हूं। सांई जी ने भान सिंह को बताया, ‘‘अंसी बच्चे थोड़े ही वंडदे हां’’ यह कहकर उसे बाहर भिजवा दिया। भान सिंह भक्त ने संगत की सेवा में तन्मयता से जुट शाह सतनाम जी महाराज जी के पास जाकर उन्हें सारी बात बताई।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अब तूने जाकर पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में अरदास करनी है कि मैंने अपनी आत्मा के कल्याण के लिए नाम लेना है।’’ फिर उस भक्त ने वैसा ही किया। भक्त मान सिंह को नाम लेने वालों में बैठने का इशारा करते हुए बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘‘वरी! हमारी बात सुन। एक आदमी की कारीगर (लड़की का मिस्त्री) से यारी है। कारीगर रोज शाम को उस आदमी के पास आता है। उस आदमी के पास मंजी (चारपाई) नहीं है। उस आदमी को क्या जरूरत है कि वह कारीगर को कहे कि मुझे एक मंजी बनाकर दे। कारीगर खुद ही देखता है कि मेरा यार नीचे जमीन पर सोता है क्यों ने इसे मंजी बनाकर दूं। इसी प्रकार जब तुमने नाम शब्द ले लिया है तो उसे जपो। वह मालिक तुम्हारी सभी जरूरतों को समझता है और वह बिन मांगें ही जायज मांगें पूरी करेगा। ’’

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।