पूज्य सतगुरू जी के वचनों ने बदली शिष्य की तकदीर

Shah Mastana ji Maharaj
Shah Mastana ji Maharaj: पूज्य सतगुरू जी के वचनों ने बदली शिष्य की तकदीर

Shah Mastana ji Maharaj: प्रमुख दास गांव खजूरी (फतेहाबाद) में रहता था। उसका पहला नाम राम गोपाल शर्मा था। सन् 1952 में परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पहली बार जब महमदपुर रोही में सत्संग फरमाया था तो गांव में सबसे पहले राम गोपाल ने नाम-दान प्राप्त किया था। पूज्य शहनशाह जी ने अपार रहमत करते हुए राम गोपाल का नाम प्रमुख दास रख दिया था।

राम गोपाल के दो भाई थे। वह सबसे छोटा था। उसने बताया कि उन दोनों के यहां तो अच्छी पैदावार थी परंतु मेरे घर में गरीबी थी। नाम दान मिलने के बाद वह लगभग आश्रम में ही सेवा करता रहता था। पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज जहां भी सत्संग करने के लिए जाते वह भी साथ ही चला जाता। घर पर तो कभी-कभी ही आया करता था। घर में कई बार तो इतनी तंगी आ जाती थी कि घर में आटा तक नहीं होता था और मुश्किल से गुजारा करना पड़ता था। शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज, डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम, महमदपुर रोही में सत्संग करने के लिए पधारे। भक्त प्रमुख दास भी आप जी के साथ था। घर में जबरदस्त गरीबी थी। खाने को कुछ भी नहीं था। भक्त के परिवार वाले सभी सदस्य भूखे बैठे हुए थे।

इतने में भक्त का एक बड़ा भाई घर पर आया और परिवारजनों को इस प्रकार भूख के कारण उदास बैठे देखकर ताना मारते हुए कहने लगा कि तुम्हारे बाप ने और बाबे (पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज) ने बाजरी इक्ट्ठी कर रखी है जाओ और लाद लाओ। बच्चों ने ताऊ की इस बात को सच समझा और वे ऊंटनी लेकर डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम में पहुंच गए। बच्चों को क्या पता था कि उनके ताऊ ने उनसे मजाक करते हुए ताना मारा है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज स्टेज पर विराजमान थे। रू हानी सत्संग चल रहा था और ऊंटनी सहित अपने बच्चों को दरबार में आता देखकर प्रमुख दास ने उन्हें बाहर ही रोकते हुए पूछा कि वे यहां पर किस लिए आए हैं? इस पर बच्चों ने अपनी ताऊ वाली सारी बात ज्यों की त्यों ही बता दी।

यह सुनकर उसको बहुत दु:ख पहुंचा परंतु उसने बच्चों को बहुत ही प्यार से समझाया कि बैठकर सत्संग सुन लें। सत्संग के बाद तुम्हारे साथ ही गांव को चलंूगा। घट-घट के जाननहार दयालु दातार जी सब कुछ समझ गए। प्रमुख दास वापिस शहनशाह जी के पास आया तो शाह मस्ताना जी ने पूछा, ‘‘प्रमुख दास! ये मुंडे (लड़के) किस लिए आए हैं?’’ उसने सच्चाई को छुपाते हुए प्रार्थना की कि सार्इं जी! यह पास के गांव बड़ोपल से आए हैं और अपने गांव जा रहे हैं जी। इस पर दातार जी ने फरमाया , ‘‘भई! तू गरीब मस्ताने से क्या छुपा रहा है, सच-सच बता क्या कहा है उन्होंने?’’ अपने मुर्शिद जी के पवित्र मुख ये यह वचन सुनते ही प्रमुख दास वैराग्य में आ गया और उसने सारी बात ज्यों की त्यों ही बयान कर दी।

इस पर शाह मस्ताना जी  (Shah Mastana ji Maharaj) ने उन्हें अपना भरपूर प्यार बख्शते हुए पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘‘अच्छा! तो उन लोगों ने गरीब मस्ताने को ताना मारा है। जाओ पुट्टर! ऐसा बोलने वाले को कह देना कि इन लड़कों की गाड़ियां चलेंगी। अच्छा कारोबार होगा।’’ इसके साथ ही सच्चे पातशाह जी ने उन्हें नोटों के हार पहनाए और अपनी अलौकिक खुशियां प्रदान की। अपने मुर्शिद के ऐसे इलाही प्रेम व बेपरवाही खुशी को पाकर भक्त व उसके लड़के दाता जी के हजूरी में खूब नाचे। इस प्रकार अपने मुर्शिद का भरपूर प्यार प्राप्त कर वे अपने गांव आ गए।

बस! फिर क्या था? उसी दिन से ही उनके दिन फिर गए। कुल-मालिक की उन पर ऐसी अपार रहमत हुुई कि उन्होंने कारोबार शुरू कर लिया, दुकानें खोल ली। खूब आमदनी होने लगी। कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। प्यारे मुर्शिद जी की कृपा से आज उनके घर में उपरोक्त वचनानुसार गाड़ियां भी हैं और अच्छा कारोबार भी है।

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