
Operation Sindoor: आॅपरेशन सिदूंर में भारत के हाथों करारी शिकस्त झेल चुके पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया जाना विश्व सैन्य इतिहास की एक अभूतपूर्व और आश्चर्यजनक घटना है। फील्ड मार्शल का पद किसी भी सेना का सर्वोच्च सम्मान होता है, जो युद्ध में असाधारण साहस, रणनीतिक कौशल और विजय के लिए प्रदान किया जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने पराजित जनरल को इस सर्वोच्च रैंक से नवाजकर विश्व समुदाय को स्तब्ध कर दिया है। इस निर्णय ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी विचारणीय है कि क्या यह कदम सेना की खोई साख को बचाने की एक हताश कोशिश है।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनकी कैबिनेट के इस फैसले की पाकिस्तान में तीखी आलोचना हो रही है। आम जनता ने इसे हास्यास्पद और तर्कहीन करार दिया है। विपक्ष ने इसे मुनीर की छवि को चमकाने का एक सुनियोजित प्रयास बताया है। सरकार का दावा है कि मुनीर को यह पद पहलगाम की घटना के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष में उनके ‘रणनीतिक नेतृत्व और निर्णायक भूमिका’ के लिए प्रदान किया गया है। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। आॅपरेशन सिदूंर के दौरान भारत ने पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों, सौ से अधिक आतंकवादियों और लगभग एक दर्जन एयरबेस को निशाना बनाया। पूरे आॅपरेशन में भारत का पूर्ण प्रभुत्व रहा, और पाकिस्तानी डीजीएमओ को संघर्ष विराम के लिए अनुरोध करना पड़ा।
प्रश्न उठता है कि क्या यह कदम पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार पर सेना की पकड़ को और मजबूत करने का संकेत है? 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से पाकिस्तान में अब तक 17 सेना प्रमुख हुए हैं, लेकिन 75 वर्षों के इतिहास में यह दूसरा अवसर है जब किसी सेना प्रमुख को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है। इससे पहले 1959 में तत्कालीन सैन्य शासक जनरल मोहम्मद अयूब खान ने स्वयं को यह रैंक दी थी। अयूब ने 1958 में तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली थी और एक साल बाद स्वयं को फील्ड मार्शल घोषित किया। उनकी पदोन्नति स्व-घोषित थी, जबकि मुनीर की पदोन्नति के पीछे शहबाज सरकार का निर्णय है। लेकिन यह निर्णय स्वतंत्र है या किसी दबाव का परिणाम, यह सवाल पाकिस्तानी सियासत में गूंज रहा है। यदि शहबाज ने स्वेच्छा से यह सिफारिश की है, तो इसे उनकी अदूरदर्शिता ही कहा जाएगा। क्या यह राजनीतिक मजबूरी और सेना के दबाव का परिणाम है? यदि हां, तो यह विचारणीय है कि सेना की ऐसी कौन-सी महत्वाकांक्षा है, जिसे मुनीर इस नए पद पर पूरा कर सकते हैं?
पाकिस्तान में सेना हमेशा से अन्य संवैधानिक संस्थाओं से अधिक शक्तिशाली रही है। स्वतंत्रता के बाद तीन दशकों से अधिक समय तक देश सीधे सैन्य शासन के अधीन रहा। सेना प्रमुख को सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है, जो अक्सर निर्वाचित सरकार पर हावी रहता है। सेना पर चुनावों में हेरफेर और पसंदीदा उम्मीदवारों का समर्थन करने के आरोप भी लगते रहे हैं। पूर्व सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने अपने विदाई भाषण में स्वीकार किया था कि सेना राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करती है। 2024 के संसदीय चुनावों में इमरान खान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई), ने सेना पर धांधली के गंभीर आरोप लगाए। मई 2023 में इमरान की गिरफ्तारी के बाद नाराज पीटीआई कार्यकर्ताओं ने जिन्ना हाउस को लूटकर आग के हवाले कर दिया था, जिससे सेना की लोकप्रियता को गहरा आघात लगा।
बलूच राष्ट्रवादियों और पाकिस्तानी सेना के बीच बढ़ते संघर्ष ने भी सेना की साख को नुकसान पहुंचाया है। अब तक 400 से अधिक सैनिक इस संघर्ष में मारे जा चुके हैं। बलूचियों ने जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर सेना के सामने खुली चुनौती पेश की थी। इन बिगड़ते हालात और बढ़ती असुरक्षा के कारण सैनिकों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है। मार्च 2025 में ही 2500 से अधिक सैनिक सेना छोड़ चुके हैं। इस सैन्य नुकसान की भरपाई के लिए शहबाज सरकार अब भारत के साथ संघर्ष में कथित जीत का प्रचार कर सेना का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रही है। सरकार जनता को यह विश्वास दिलाने में जुटी है कि भारत को युद्ध में हराने के बाद पाकिस्तानी पासपोर्ट की वैश्विक साख बढ़ गई है। कथित सर्वेक्षणों में सेना की लोकप्रियता में उछाल दिखाया जा रहा है, और रक्षा बजट बढ़ाने की बात भी हो रही है। मुनीर की पदोन्नति भी इसी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है।
हालांकि, इस अलंकारिक फील्ड मार्शल पद ने मुनीर की शक्ति को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दिया है। वे अब पांच सितारा जनरल बन गए हैं, जिससे शहबाज शरीफ की पहले से कमजोर स्थिति और भी नाजुक हो गई है। यह सर्वविदित है कि शहबाज की पार्टी, पीएमएल-एन, सेना और आईएसआई की मदद से ही सत्ता में आई है। उनकी सत्ता सेना और आईएसआई की मर्जी पर निर्भर है। उनके भाई नवाज शरीफ भी सेना की कृपा पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और सेना के बीच तनाव की खबरें सामने आ रही हैं। सेना प्रमुख वकार-उज-जमां ने कार्यवाहक सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए हैं। ढाका में कमांडिंग अधिकारियों के साथ बैठक में उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की विफलता पर नाराजगी जताई। ऐसे में, पाकिस्तान में सेना की बढ़ती ताकत न केवल वहां की पहले से चरमराई लोकतांत्रिक व्यवस्था को और कमजोर करेगी, बल्कि भारत के लिए भी गंभीर सुरक्षा चुनौतियां पैदा कर सकती है।
पाकिस्तान एक ऐसा अनोखा देश है, जहां की सेना युद्ध जीतने का दावा करती है, लेकिन देश हार जाता है। मुनीर की पदोन्नति इस विरोधाभास का एक और प्रमाण है। यह कदम न केवल सेना की साख को बचाने की कोशिश है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पाकिस्तान की सियासत में सेना का दबदबा अब भी कायम है। भारत को इस स्थिति पर कड़ी नजर रखने और अपनी रक्षा तैयारियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)