
Haryana Railway News: प्रताप नगर, सच कहूं राजेंद्र कुमार। हर गांव, हर कस्बे की कोई न कोई अधूरी ख्वाहिश होती है। कुछ सपने होते हैं जो कागज पर तो बनते हैं, लेकिन वक्त की गर्द में खो जाते हैं। कुछ आवाजें होती हैं जो सालों तक चुपचाप इंतजार करती हैं — एक जवाब का, एक शुरूआत का। यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन भी कुछ ऐसी ही अधूरी उम्मीदों की कहानी थी। लेकिन अब, वो सपना फिर से जिंदा हो गया है।
यह बात है हरियाणा के यमुनानगर की, जहां वर्षों से लोग चंडीगढ़ तक एक सीधी रेल कनेक्टिविटी की बाट जोह रहे थे। 91 किलोमीटर लंबा सफर—जो आज भी लोगों के लिए दूरी से ज्यादा एक इंतजार बन चुका था। इस लाइन का वादा तो सालों पहले हुआ था, 2013-14 में, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे मंजूरी दी थी। नारायणगढ़ और सढौरा होते हुए चंडीगढ़ तक पहुंचने का खाका तैयार हुआ था। पर वक़्त ने करवट ली, सरकारें बदलीं और वो सपना सरकारी फाइलों में दबकर रह गया। वर्ष 2023 में जब इस परियोजना को रद्द कर दिया गया, तब कई दिल टूटे, और आंखों में उम्मीद की चमक मुरझा गई। Haryana Railway News
लेकिन एक आदमी था जो इस उम्मीद को जिन्दा रखे हुए था—विजय बंसल एडवोकेट। राजनीति में कई उतार-चढ़ाव देख चुके विजय बंसल ने कभी हार नहीं मानी। वो एक आवाज बनकर खड़े रहे—यमुनानगर से दिल्ली तक, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक, हर जिम्मेदार को उन्होंने दर्जनों ज्ञापन सौंपे। उनका कहना था, “ये सिर्फ रेल लाइन नहीं, ये इलाके की धड़कन है।”
जुलाई महीने की एक सुबह, जब गर्मी अपने चरम पर थी, उन्होंने एक बार फिर से उम्मीद की चिंगारी जलाने का प्रयास किया। इस बार उनका ज्ञापन गया अंबाला के सांसद वरुण चौधरी के पास। उन्होंने न सिर्फ इसे गंभीरता से लिया, बल्कि इसे लोकसभा में पूरे जोर के साथ उठाया। और आखिरकार, अगस्त 2025 के बजट में वो खबर आई जिसने पूरे इलाके की धड़कनें तेज कर दीं—केंद्र सरकार ने यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन को दोबारा मंजूरी दे दी। इसके लिए 901 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इलाके में खुशियां थीं, उम्मीदों की हलचल थी और सबसे बड़ी बात—एक लंबा संघर्ष अब रंग लाता दिखा।
विजय बंसल ने इस पर कहा, “सरकार ने भले ही मंजूरी दी है, लेकिन अब जरूरत है इसे अमली जामा पहनाने की। कहीं ये फिर से घोषणाओं तक ही न सिमट जाए।” उनकी बातों में सच्चाई थी। क्योंकि बीते वर्षों में केंद्र सरकार ने इस और अन्य परियोजनाओं को सिर्फ 1-1 हजार रुपये आवंटित करके मजाक बना दिया था। ये बात खुद बंसल को मिली फळक की जानकारी से सामने आई, जिसमें बताया गया कि यमुनानगर-चंडीगढ़ के साथ-साथ जाखल-हिसार, पानीपत-रोहतक, अस्थल बोहर-रेवाड़ी, और पलवल-न्यू पृथला प्रोजेक्ट्स भी सिर्फ कागजों में चल रहे थे।
“ये सिर्फ रेल लाइन नहीं है, ये रोजगार का रास्ता है, ये बच्चों की पढ़ाई का जरिया है, ये बीमार माँ को ढॠक तक समय से पहुंचाने वाली उम्मीद है,” बंसल कहते हैं। उनके शब्दों में सिर्फ राजनीति नहीं, एक संवेदना भी थी, जो वहां के हर आम आदमी के दिल से जुड़ी थी।
अब सवाल है—क्या ये रेल लाइन सचमुच पटरी पर दौड़ेगी?
क्या शिवालिक की तलहटी में बसे वो गांव जो आज भी विकास से कोसों दूर हैं, रेल की आवाज न पाएंगे?
शायद जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है। पर एक बात तय है—अब यह सपना एक बार फिर से आँखों में बस गया है। और इस बार, उसे पूरा करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, जनता की भी है।