अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं। ताजा बयान में उन्होंने कहा है कि वह कश्मीर मामले में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से मुलाकात करेंगे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वे दोनों नेताओं को कब व कहां मिलेंगे? दुनिया के एक ताकतवर देश के शीर्ष नेता के ऐसे ब्यान की चर्चा होना स्वाभाविक है। इस्लामाबाद इस ब्यान का अपने नजरिए से अर्थ निकालता है, वे ट्रम्प के इस बयान को कश्मीर मामले में अमेरिका की मध्यस्थता के रूप में समझ रहा है। नई दिल्ली के लिए यह ब्यान नई दुविधा पैदा करने वाला है।
हालांकि व्हाईट हाऊस पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता नहीं करेगा। व्हाईट हाऊस की सफाई के बाद भी ट्रम्प चतुराई से फिर ऐसे बयान देते रहे हैं कि यदि भारत चाहेगा तब अमेरिका मध्यस्थता करने के लिए तैयार है। इस तरह के उलझन भरे ब्यान मामले को सुलझाने की बजाय और भी पेचीदा कर रहे हैं, जबकि भारत संयुक्त राष्ट्र में यह स्पष्ट कर चुका है कि कश्मीर मामले को भारत-पाक आपसी बातचीत से सुलझा सकते हैं। ऐसे माहौल में अमेरिका जैसे देश के राष्टÑपति द्वारा ऐसा बयान देना निराशाजनक है।
भले ही प्रत्येक नेता का काम करने का अपना अलग तरीका होता है लेकिन गंभीर मामलों में सोच-समझकर व संयम से बोलने की आवश्यकता होती है। नि:संदेह ट्रम्प ने अपनी ब्यानबाजी से उत्तरी कोरिया व ईरान जैसे देशों से अपने विवाद सुलझाने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन ऐसे तौर-तरीके को हर जगह व मौके पर लागू नहीं किया जा सकता। ट्रम्प भारत-पाक के प्रधानमंत्रियों को क्या कहना चाहते हैं?, ऐसा अटपटा ब्यान देना स्थिति को जटिल बनाता है। अमेरिका विश्व आतंकवाद के खात्मे की मुहिम का नेतृत्व कर रहा है। यदि अमेरिका आतंकवाद को लेकर एक ही मापदंड रखें तब कश्मीर में आतंकवादी हिंसा खत्म हो सकती है।
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