Shalgam Ki Kheti: विटामिनों से भरपूर है शलगम

Turnip Cultivation
Turnip Cultivation: विटामिनों से भरपूर है शलगम

ये है इसकी कृषि प्रकिया…

जलवायु | Turnip Cultivation

तापमान -12-30 डिग्री सेल्सियस
वर्षा – 200-400 एमएम
बिजाई के समय तापमान- 18-23 डिग्री सेल्सियस
कटाई के समय तापमान – 10-15 डिग्री सेल्सियस

मिट्टी

इसे मिट्टी की कईं किस्मों में उगाया जा सकता है पर शलगम दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में हो, में उगाया जाए तो यह अच्छे परिणाम देती है। भारी, घनी या हल्की मिट्टी में खेती करने से बचें क्योंकि इससे विकृत जड़ों का उत्पादन होता है। अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी की पीएच 5.5-6.8 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

एल 1: यह किस्म 45 से 60 दिन बाद पक जाती हैे इसकी जड़ें गोल और पूरी तरह सफेद, मुलायम और कुरकुरी होती हैें इसकी जड़ों की औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैे
Punjab Safed 4: इस खेती की सिफारिश पंजाब और हरियाणा में की जाती हैे इसकी जड़ें पूरी तरह सफेद, गोल, सामान्य आकार और स्वाद में बढ़िया होती हैें

जमीन की तैयारी | Turnip Cultivation

खेत की जोताई करें और खेत को नदीन रहित और रोड़ियों रहित बनायें। गाय का गला हुआ गोबर 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। बिना गले हुए गोबर का प्रयोग करने से बचे इससे जड़ें दोमुंही हो जाती हैं।

बिजाई का समय

देसी किस्मों की बिजाई का उचित समय अगस्त-सितम्बर, जबकि यूरोपी किस्मों का अक्तूबर- नवंबर में होता हैें

फासला

पंक्तियों के बीच 30-40 सैं.मी. का फासला और पौधों के बीच 6-8 सैं.मी. का फासला होना चाहिए।

बीज की गहराई | Turnip Cultivation

बीजों को 1.5 सैं.मी. की गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग

इसकी बिजाई बैड पर सीधे बो कर या मेंड़ पर कतारों में बो कर की जाती है।

बीज की मात्रा

एक एकड़ खेत के लिए 2-3 किलो बीजों की जरूरत होती है।

बीज का उपचार

जड़ गलन से फसल को बचाने के लिए बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम प्रति किलो से बीजों का उपचार करें।

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

खाद की मात्रा स्थान के हिसाब से बदलती रहती है। यह जलवायु, मिट्टी की किस्म, उपजाऊ शक्ति पर आधारित होती है। बिजाई के समय गाय के गोबर के साथ नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 55 किलो), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो प्रति एकड़) में डालें।

खरपतवार नियंत्रण

अंकुरण के 10-15 दिनों के बाद छंटाई की प्रक्रिया करें। मिट्टी को हवादार और नदीन-मुक्त बनाये रखने के लिए कसी के साथ गोड़ाई करेें बिजाई के दो से तीन सप्ताह बाद एक बार गोडाई करें। गोडाई के बाद मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएें

सिंचाई

लगम को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें, यह अच्छे अंकुरण में मदद करती है। गर्मियों में मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार, बाकी की सिंचाइयां 6-7 दिनों के अंतराल पर करें। सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर करें। शलगम को 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैे अनावश्यक सिंचाई ना करेें इससे जड़ों का आकार विकृत होगा और इस पर बाल उग जाते है।

फसल की कटाई

शलगम की पुटाई, किस्म के आधार पर और मंडी के आकार के हिसाब से जैसे कि 5-10 सैं.मी. व्यास के हो जाने पर करेें आमतौर पर शलगम के फल 45-60 दिनों में तैयार हो जाते है। कटाई में देरी होने के कारण इसकी पुटाई में मुश्किल और फल रेशेदार हो जाती हैं। इसकी पुटाई शाम के समय करें। कटाई के बाद शलगम के हरे सिरों को पानी से धोया जाता है। उन्हें टोकरी में भरा जाता है और मंडी में भेजा जाता है। इसके फलों को ठंडे और नमी वाले हालातों में 2-3 दिन के लिए 8-15 सप्ताह के लिए स्टोर करके रखना हो तो उन्हें रखा जाता है।

बीज उत्पादन

बीज उद्देश्य के लिए, शलगम के बीजों को मध्य सितंबर में बोयें और फिर दिसंबर के पहले सप्ताह में नए पौधों को रोपण किया जाता है। 45 सैं.मी गुणा 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। नाइट्रोजन 30 किलो (यूरिया 65 किलो) और फासफोरस 8 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 50 किलो) प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालें। बिजाई के 30 दिनों के बाद नाइट्रोजन की बाकी की मात्रा को डाल दें। जब पौधे पर 70% फलियां जिनका रंग हल्का पीला हो तब कटाई कर लें।

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