कूटनीति से ही निकले यूक्रेन मसले का हल

Ukraine Country

युद्ध अब शुरू हो चुका है। फ्रांस और जर्मनी की बीच-बचाव की कोशिशें, अमेरिका की पाबंदी की घुड़कियां और संयुक्त राष्ट्र की मैराथन बैठकें, रूस को यूक्रेन पर हमला बोलने से नहीं रोक सकीं। आखिर रूस ने हमला बोल दिया। हालांकि यह पहले से स्पष्ट हो गया था, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि वह यूक्रेन की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते। दूसरी तरफ यह अच्छी बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति कूटनीति के जरिये यूक्रेन संकट का हल निकालने के पक्ष में हैं, लेकिन यदि वह वास्तव में ऐसा चाहते हैं तो फिर उन्हें रूस पर शर्ते थोपने के साथ ही उसकी चिंताओं का भी समाधान करना होगा।

यदि रूस यूक्रेन को लेकर आक्रामक है तो इसके पीछे के कारणों को अमेरिका को उसी तरह समझना होगा, जिस तरह कई यूरोपीय देश समझते दिख रहे और बीच-बचाव की कोशिश भी कर रहे हैं। यूक्रेन संकट के मूल में अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो का उन देशों में भी विस्तार है, जो एक समय रूस के नेतृत्व वाले सोवियत संघ का हिस्सा थे। जब सोवियत संघ अस्तित्व में था और अमेरिका एवं उसके बीच शीतयुद्ध चरम पर था, तब नाटो के जवाब में वारसा संधि भी थी। कायदे से वारसा संधि खत्म हो जाने के बाद नाटो को भी अपना विस्तार रोक देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रूस की यह चिंता जायज दिखती है कि अमेरिका नाटो के विस्तार के माध्यम से उसकी घेराबंदी कर रहा है। यूरोपीय देशों को भी इस पर ध्यान देना होगा कि जब वे अपने ऊर्जा स्त्रोतों के लिए रूस पर निर्भर हैं तो फिर नाटो के विस्तार में योगदान देकर मास्को की चिंता बढ़ाने में भागीदार क्यों बन रहे हैं? चिंताएं हालांकि और भी हैं।

पश्चिमी यूरोप के बहुत सारे देश पेट्रोल, गैस जैसी अपनी ईंधन की जरूरतों के लिए रूस से होने वाले आयात पर निर्भर हैं। तनाव अगर लंबा खिंचता है और रूस से ईंधन की आपूर्ति बंद होती है, तो वे खाड़ी के देशों का रुख करेंगे, जिसका अर्थ होगा विश्व बाजार में पेट्रोल की कीमतों का बढ़ना। कीमतें बढ़नी शुरू भी हो गई हैं। अगर ये और बढ़ती हैं, तो भारत जैसे उन देशों के लिए भी नई मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं, जिनके विदेशी मुद्राकोष का बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम आयात में ही खप जाता है।

कोविड महामारी के बाद पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं जिस समय पटरी पर लौटने की कोशिश कर रही हैं, उस समय यह सब आर्थिक विकास के लक्ष्यों को बड़ा झटका दे सकता है। पर भारत की तत्काल दिक्कत उन भारतीयों को लेकर है, जो अभी यूक्रेन में फंसे हुए हैं। पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि रूस और यूक्रेन, दोनों ही परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। उनका आपसी तनाव बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। नि:संदेह अमेरिका को अपनी कूटनीति पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है, वहीं रूस के लिए भी यह आवश्यक है कि वह यूक्रेन के रूसी भाषी इलाकों में अलगाववादियों को उकसाने से बाज आए।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here