जब दर्शन देकर पूज्य पिता जी ने फरमाया-बता हम नजदीक हैं या दूर…

Saint MSG Sachkahoon

सत् ब्रह्मचारी सेवादार पाल इन्सां, अपने सतगुरू, मुर्शिद-ए-कामिल की अपने ऊपर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-

सेवादार पाल इन्सां बताते हैं कि यह बात 1995 की है। उन दिनों पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (Saint MSG) ने हिमाचल प्रदेश के चचिया नगरी में एक बहुत ही रमणीक पहाड़ी पर दिनांक 9 मई 1995 को डेरा सच्चा सौदा परम पिता शाह सतनाम जी सचखंड धाम की नींव रखी थी। मेरी ड्यूटी इसी आश्रम में लगाई गई थी। पूज्य गुरू जी ने अपनी रहमत से आश्रम का निर्माण कार्य 12-13 दिन में पूरा करवा लिया था। कार्य सम्पन्न करवाने के बाद पूज्य गुरू जी वहां से सरसा के लिए रवाना होने लगे तो तीन और सत् ब्रह्मचारी सेवादारों की ड्यूटी भी मेरे साथ आश्रम में वहां लगा दी। पूज्य पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! हर महीने बारी-बारी से सरसा आश्रम में आते रहना।’’उपरोक्त घटना 17 जुलाई 1995 की है। उस दिन बहुत ही तेज बारिश हो रही थी। मैं पूज्य गुरू जी की सत्संग वाली कैसेट चलाकर अंदर कमरे में बैठा हुआ था। कैसेट भी चल रही थी और साथ में मैं सुमिरन भी बराबर कर रहा था। Saint MSG

अभी थोड़ी देर ही हुई थी, मुझे अचानक यह ख्याल आया कि जब मेरी ड्यूटी डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम महमदपुर रोही जिला फतेहाबाद में थी तो नजदीक होने के कारण हर 15 दिन के बाद कभी महीने में तीन चक्कर भी सरसा आश्रम में लग जाया करते थे। लेकिन अब इस तरह तो कम से कम तीन-चार महीनों के बाद ही मुझे दर्शन हो पाएंगे। साथ-साथ पूज्य गुरू जी सत्संग की कैसेट भी चल रही थी। ऐसे विचार भी चलते रहे और सुमिरन भी बराबर चल रहा था। कुछ समय बाद अजीब सी गर्जना हुई उस गड़गड़ाहट की आवाज में मुझे बहुत ही मिठास का अनुभव हुआ। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सिर का ऊपरी भाग उड़ गया हो। इसके बाद मेरे सामने एकदम बहुत ही जबरदस्त तेज प्रकाश हुआ, जिसका कि लिख-बोलकर वर्णन नहीं किया जा सकता। वह केवल अनुभव ही किया जा सकता था। उस सुंदर प्रकाश में मुझे पूज्य गुुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (Saint MSG) के पवित्र दर्शन हुए। पूज्य गुरू जी ने वचन फरमाए, ‘‘बेटा! बता, हम नजदीक हैं या दूर हैं?’’ पूज्य पिता जी ने फिर फरमाया, बेटा, अब तो तू खुश है। मैंने कहा ‘जी पिता जी।’ मैंने पूज्य गुरू जी के पवित्र चरण कमलों में सिर झुकाकर सजदा-नमस्कार किया।

धन्य-धन्य हैं सच्चे रहबर, सतगुरू जी, जो सोचने से पहले ही हमारी दिली भावनाओं को पूरी ही नहीं करते, बल्कि अपने नूरी दर्शनों की खुशियों से अपने शिष्य को भरपूर कर, मालामाल कर देते हैं। एक बार मैं अपनी बारी आने पर सरसा आश्रम में आया हुआ था। पूज्य गुरू जी ने अपने रूहानी सत्संग के वचनों में अपने पवित्र मुखारबिंद से फरमाया, मालिक तो हर जगह है, उजाड़ों, पहाड़ों और पहाड़ों के पार भी है। उसी दिन शाम को पूज्य हजूर पिता जी ने आश्रम के सभी सत् ब्रह्मचारी सेवादारों को तेरावास में मिलने का स्पैशल समय दिया हुआ था। सभी सत् ब्रह्मचारी सेवादार पूज्य गुरू जी की पावन हजूरी में अपनी-अपनी बातें सुना रहे थे। इस तरह पूज्य पिता जी हम लोगों से काफी देर तक वचन विलास करते रहे। हमारे में से एक सत् ब्रह्मचारी सेवादार भाई अमीलाल ने खड़े होकर विनती की कि, ‘पिता जी , मैं डेरा सच्चा सौदा बागड़ किक्करावाली (राज.) में हूं जी, जो कि सरसा से बहुत दूर पड़ता है। कई-कई महीने गुजर जाते हैं, यहां नहीं आ पाता, आप जी के दर्शनों से खाली रह जाता हूं। इस पर प्यारे सतगुरू जी ने हंसते हुए फरमाया, ‘‘बेटा! पाल से पूछ कि क्या हम तुम्हारे से दूर हैं?’

हालांकि मैंने अपने अनुभव वाली प्यारी घटना का किसी के सामने इससे पहले जिक्र नहीं किया था। जब पूज्य पिता जी के पवित्र मुख से ये वचन सुने कि पाल से पूछ कि क्या हम तुम्हारे से दूर हैं, तो बाद में लगभग सभी सत् ब्रह्मचारी सेवादार भाई मेरे से पूछने लगे कि ‘पाल जी, सच-सच बताओ क्या बात हुई थी?’ तो मैंने वो अनुभव सभी भाइयों से सांझा किया कि सतगुरू मालिक तो अपने बच्चों से कभी दूर होता ही नहीं है, वह अपने बच्चों की पल-पल की भी खबर रखता है। बल्कि इस सच्चाई को पूज्य गुरू जी ने सभी के सामने स्वयं ही प्रकट कर दिया कि जब कोई जहां भी है, चाहे सात समुन्द्र व पहाड़ों से भी पार है, सतगुरू, वो मालिक किसी न किसी रूप में अपने बच्चों को हर समय अपने निगाह में ही रखता है। यह बात मुरीद को भी जरूर समझनी चाहिए। जो ऐसा समझते हैं, वो अपने सतगुरू, मालिक को हमेशा अपने अंग-संग ही पाते हैं।

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