Nepal Protest News: सार्क देशों में राजनीतिक उथल-पुथल क्यों, क्या भारत के लिए खतरे का संकेत?

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Nepal Protest News: सार्क देशों में राजनीतिक उथल-पुथल क्यों, क्या भारत के लिए खतरे का संकेत?

Nepal Protest News: डॉ. संदीप सिंहमार। पिछले चार वर्षों में अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में प्रमुख राजनीतिक उथल-पुथल अर्थात अस्थिरताएं हुई। जिसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। खास बात यह है कि ये चारों देश एशिया महाद्वीप के ही हैं। सार्क में 8 सदस्य देश हैं। भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश,नेपाल,भूटान,श्रीलंका,मालदीव व अफगानिस्तान। यह संगठन दक्षिण एशियाई देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग के लिए स्थापित किया गया है। अफगानिस्तान 2007 में आठवां सदस्य बना था। सार्क का मुख्यालय नेपाल के काठमांडू में है।अफगानिस्तान में तालिबान ने 2021 में सत्ता कब्जा किया, जिससे राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बदल गई। उस वक्त अफगानिस्तान में इतना अफ़रातफ़री का माहौल हुआ कि अमेरिका को भी अफगानिस्तान से रवाना होना पड़ा। इसके बाद श्रीलंका में 2022-23 के दौरान आर्थिक संकट और व्यापक जनता के विरोध ने सरकार को इस्तीफा देने और सत्ता परिवर्तन पर मजबूर किया।बांग्लादेश में 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना को विरोध प्रदर्शनों के कारण इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा, जो देश में बड़े पैमाने पर राजनीतिक उथल-पुथल का संकेत था।

नेपाल में 2025 में सोशल मीडिया बैन के कारण और भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भारी विरोध के बीच इस्तीफा देना पड़ा। युवाओं के नेतृत्व में हुए हिंसक प्रदर्शनों और सेना के दबाव ने ओली सरकार को कमजोर कर दिया। अब नेपाल में सेना सत्ता संभाल सकती है या राजनीतिक संकट गहरा सकता है। यह स्थिति बांग्लादेश और श्रीलंका के हाल के मॉडल जैसी मानी जा रही है। नेपाल में वर्तमान राजनीतिक संकट का कारण सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार विरोधी युवा आंदोलनों का चरमोत्कर्ष और बढ़ते दबाव हैं। केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद भी नेपाल में राजनीतिक स्थिरता को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और नए सत्ता परिवर्तन या अस्थिरता की संभावना बनी हुई है। पिछले चार वर्षों में इन चार देशों में अशांति के कारण सत्ता परिवर्तन या हस्तांतरण हुआ है और नेपाल में भी अभी इस अस्थिरता के चलते ऐसा ही हो रहा है या होने वाला है क्योंकि हालात बहुत तनावपूर्ण हैं और सेना एवं बड़े राजनीतिक दबाव की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है

नेपाल के भविष्य में संभावित राजनीतिक स्थिरता

नेपाल में लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है, जिसका कारण राजनीतिक दलों के बीच सत्ता संघर्ष, संवैधानिक विवाद और सत्ता पर अधिनायकवादी रवैया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में सत्ता संघर्ष और युवा आंदोलन जारी रहा, जिससे राजनीतिक संक्रमण की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो गई है। आखिर प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। नेपाल में संवैधानिक संशोधन के मुद्दे जैसे संघीय व्यवस्था, राष्ट्रपति चुनाव और हिन्दू राष्ट्र की मांग पर भी पूर्ण सहमति नहीं बनी है, जो आगे भी राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनेगा। राजनीतिक दलों का गठबंधन अक्सर कमजोर रहता है और छोटे पार्टियां गठबंधन राजनैतिक सौदेबाजी में बड़ी भूमिका निभाती हैं, जिससे स्थायी सरकार बनाना मुश्किल हो जाता है। आर्थिक कमजोरियों, भ्रष्टाचार, युवा बेरोजगारी और सामाजिक असंतोष की वजह से भी स्थिरता पर असर पड़ा है। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार, सही नेतृत्व, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार नियंत्रण और राजनीतिक सहयोग से नेपाल विकास की राह पर लौट सकता है, लेकिन यह दूरगामी और सतत प्रयासों की मांग करता है। नेपाल का भविष्य राजनीतिक रूप से अभी भी अस्थिर रहने की संभावना अधिक है, और सत्ता संघर्ष, संवैधानिक विवाद तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां इसे प्रभावित करती रहेंगी। स्थिरता के लिए व्यापक राजनीतिक समझौते, संवैधानिक सुधार और युवा उम्मीदों को संतुष्ट करना अनिवार्य होगा, तब जाकर ही नेपाल में स्थायी राजनीतिक व्यवस्था बन पाएगी।

भारत,चीन,अमेरिका का नेपाल पर प्रभाव

भारत, चीन और अमेरिका का नेपाल पर प्रभाव अलग-अलग रूपों में है, जो नेपाल की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है। भारत नेपाल का सबसे पुराना पड़ोसी और बड़ा राजनीतिक-आर्थिक भागीदार है। भारत नेपाल को बड़ी मात्रा में निवेश, विकास सहायता और व्यापार संबंध प्रदान करता है। कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों का बड़ा प्रभाव है, और भारत नेपाल की आर्थिक और सामाजिक संरचना में गहरा रिश्ता रखता है। भारत नेपाल के साथ पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी संभालता है और भारत के लिए नेपाल की स्थिरता और सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

चीन नेपाल में अपनी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बड़े आर्थिक निवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं जैसे रेलवे, विद्युत, और आपदा प्रबंधन में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। चीन ने नेपाल को आर्थिक सहायता और निवेश प्रदान करके अपनी भूमिका बढ़ाई है। चीन नेपाल को भारत पर निर्भरता कम करने और आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। चीन की राजनीतिक और सुरक्षा प्राथमिकताओं में नेपाल की भूमिका अहम है, विशेषकर तिब्बत सीमा से जुड़े मुद्दों पर। अमेरिका नेपाल में लोकतंत्र, आर्थिक विकास और सुरक्षा सहयोग के माध्यम से अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। अमेरिकी सहायता और अनुदान जैसे मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत निवेश नेपाल की बुनियादी ढांचा सुधार परियोजनाओं में मदद करता है। अमेरिका की नीति चीन के बढ़ते प्रभाव को काबू में रखने और नेपाल में स्थिरता लाने पर केंद्रित है। अमेरिका-नेपाल सैन्य सहयोग भी बढ़ रहा है। नेपाल तीसरे देशों के बीच संतुलन बनाकर चलने का प्रयास करता है, क्योंकि यह क्षेत्रीय महाशक्तियों के भू-राजनीतिक खेल का केंद्र बनता जा रहा है। भारत, चीन और अमेरिका तीनों ही नेपाल में अपनी-अपनी रणनीतियों से प्रभाव बढ़ा रहे हैं, जिससे नेपाल की राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास दोनों पर असर पड़ता है। नेपाल के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के अनुसार इन देशों के साथ संबंधों को संतुलित बनाए रखे।