यहां भी तू वहां भी तू जिधर भी देखूं बस तू ही तू…

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पूज्य हजूर पिता जी मुस्कुराकर फरमाने लगे, ‘‘कोई बात नहीं पिता जी, आपका जन्म दिन भी आएगा। हम धूमधाम से मनाएंगे और साध-संगत को खूब नचाएंगे।’’

एक दिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज अपनी लम्बी प्यारी सोटी लेकर तेरावास से बाहर आए तो मौज में आकर फरमाया, ‘‘कि कौन कहता है कि हम बीमार हैं, न हम कभी बीमार थे, न हैं और न ही रहेंगे।’’ इतना कहकर पूजनीय परम पिता जी ने सोटी का नाममात्र सहारा लेकर बड़ी तेजी से पंडाल का चक्कर लगाया। ऐसा देखकर पूज्य हजूर पिता जी बहुत खुश हुए और दरबार में उपस्थित समस्त साध-संगत को अपने पावन कर-कमलों से नोट बांटे। इस प्रकार की अनोखी अनगिणत मिसाल अक्सर देखने को मिला करती। पूजनीय परम पिता जी स्टेज पर बैठे हुए पूज्य हजूर पिता जी से यदि कुछ कहते तो आप जी तुरंत उस वचन के बारे में ‘हां जी’ कहते और किसी बात पर अपने मुर्शिद जी को हंसता देखकर पूज्य हजूर पिता जी का चेहरा नूरो-नूर हो उठता। लगभग दो वर्ष तक इस तरह की मधुर व प्यारी यादें देखने को मिलती रहीं। पूज्य हजूर पिता जी व पूजनीय परम पिता जी एक ही गाड़ी में बैठकर दूसरे आश्रमों में सत्संग करने के लिए जाया करते तथा स्टेज पर पूजनीय परम पिता जी की मौजूदगी में पूज्य हजूर पिता जी सत्संग फरमाया करते।

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एक बार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा, यू.पी. में सत्संग करने के लिए पूज्य हजूर पिता जी को अकेले ही भेज दिया और स्वयं शाह मस्ताना जी धाम में ही उपस्थित रहकर रोजाना की भांति साध-संगत को दर्शन देते रहे। यू.पी. में भी पावन दर्शन, सरसा में भी पावन दर्शन, ऐसा महान परोपकार कभी नहीं भुलाया जा सकता। यही तो सच्चे सतगुरू जी की पहचान है, यहां भी तू, वहां भी तू, जिधर देखूं बस, तू ही तू। जब पूज्य हजूर पिता जी एवं पूजनीय परम पिता जी एक ही आश्रम में होते तो साध-संगत खुशियों से सराबोर हो जाती। पूजनीय परम पिता जी व पूज्य हजूर पिता जी स्टेज से दर्शन देकर तेरावास में जाते तो कुछ देर बाद कभी पूज्य हजूर पिता जी बाहर आ जाते तो कभी पूजनीय परम पिता जी, जिससे चारों तरफ दर्शनों की वर्षा, खुशियों का आलम छाया ही रहता और अपने सतगुरू का नूरी नजारा पाकर साध-संगत अपने आप को भाग्यशाली महसूस करती।

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आप जी का जन्म दिन

अगस्त, 1991 की बात है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज व पूज्य हजूर पिता जी कल्याण नगर, सरसा में स्टेज पर विराजमान थे। साध-संगत पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का जन्म दिन मना रही थी। सारी साध-संगत इस खुशी में नाच रही थी। पूज्य हजूर पिता जी साध-संगत को फरमाने लगे, ‘‘थोड़ा पीछे होकर नाचो।’’ उसी समय पूजनीय परम पिता जी ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आगे आकर नाचो, इनके आगे नाचो।’’ फिर पूज्य हजूर पिता जी मुस्कुराकर फरमाने लगे, ‘‘कोई बात नहीं पिता जी, आपका जन्म दिन भी आएगा। हम धूमधाम से मनाएंगे और साध-संगत को खूब नचाएंगे।’’ ये पावन वचन सुनकर सारी साध-संगत और भी खुशी से नाचने लगी तथा भरपूर खुशियां प्राप्त की।

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