पुरानी संस्कृति को संजोने का काम कर रहे ‘सारंगी वादक’

  • आधुनिकता की दौड़ और मोबाईल के चलन के बाद खतरे में कलाकारों का भविष्य
  • अपील: सरकार को संस्कृति को बचाने के लिए करने चाहिये प्रयास

कुरुक्षेत्र। (सच कहूँ/देवीलाल बारना) अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में संस्कृतियों के अनेक रंग दिखाई पड रहे हैं और पर्यटक खूब मस्ती कर रहे हैं। गीता महोत्सव में सारंगी वादक पुरानी संस्कृति को संजोने का काम कर रहे हैं। सारंगी वादक टीम जहां लोगों का मनोरंजन करने के साथ पुरानी संस्कृति को दर्शा रही है वहीं दशकों से सारंगी बजा रहे वादकों के मन में एक पीड़ा भी है कि आधुनिकता के युग में यह संस्कृति खत्म होने की कगार पर जा रही है। सारंगी वादक इस कार्य के जरिए अपना परिवार खर्च नही चला पा रहे। सरकार से भी इनकी दरकार है कि सरकार द्वारा इस संस्कृति को बचाने के लिए प्रयास करने चाहिए और इन कलाकारों का भत्ता शुरू करना चाहिए ताकि सारंगी वादक चाव के साथ इस संस्कति को संजोकर रख सकें।

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40 साल से बजा रहे सारंगी

कैथल जिला के गांव किठाना निवासी रामनाथ ने कहा कि वे पिछले 40 वर्षों से सारंगी बजा रहे हैं। इससे पूर्व उनके पूर्वज भी सारंगी बजाते थे और गांव गांव जाकर रांझा, निहालदे, बम लहरी, जयमल फत्ते, जानी चोर, सुल्तान गाते रहे हैं। लेकिन आधुनिकता की दौड़ और मोबाईल के चलन के बाद कलाकारों की पूछ कम हो गई है। रामनाथ का कहना है कि अब सारंगी वादन व गायन से अपने परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।

बच्चे नहीं सीख रहे सारंगी बजाना व गायन

सारंगी पार्टी के सदस्य दीपा ने कहा कि पहले वे इस कार्य में व्यस्त रहते थे और परिवार का खर्च चला सकते थे लेकिन आजकल काम नही रहा। ऐसे में उनके बच्चे सारंगी बजाना व गायन का कार्य नही सीख रहे हैं। दीपा ने कहा कि बेशक सरकार द्वारा 18 दिनों के लिए गीता महोत्सव पर उन्हे काम दिया गया है लेकिन सरकार को चाहिए कलाकारों की पैंशन योजना शुरू की जाए ताकि पुरानी संस्कृति को संजाने वाले कलाकार बचे रह सकें।

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