UP Railway: रेलवे की लाइन के लिए यूपी के इन गांवों की जमीन का होगा अधिग्रहण, ग्रामीणों ने पीएम को लिखा पत्र

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UP Railway: रेलवे की लाइन के लिए यूपी के इन गांवों की जमीन का होगा अधिग्रहण, ग्रामीणों ने पीएम को लिखा पत्र

UP Railway:  प्रयागराज, अनु सैनी । अयोध्या जनपद में प्रस्तावित प्रयागराज-अयोध्या-लखनऊ रेलखंड के मसौधा से सलारपुर तक बनने वाली कॉर्ड रेल लाइन (बायपास) परियोजना के लिए तीन गांवों की 908 बिस्वा जमीन का अधिग्रहण प्रस्तावित है। यह नया रूट करीब 11.4853 हेक्टेयर भूमि से होकर गुजरेगा, जिसमें बनवीरपुर, अब्बू सराय और गद्दोपुर गांवों की ज़मीनें शामिल हैं। अधिग्रहण के लिए चिन्हित की गई भूमि में बनवीरपुर के 10, अब्बू सराय के 43 और गद्दोपुर के 65 गाटा की जमीनें शामिल हैं।

इस भूमि अधिग्रहण से ग्रामीणों में भारी असंतोष और दहशत का माहौल है। अब तक लगभग 120 घरों और 150 खेतों की नापजोख की जा चुकी है। अधिग्रहण प्रक्रिया के तहत कई मकानों पर लाल निशान भी लगा दिए गए हैं, जिससे लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित और भ्रमित हैं।

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अधिग्रहण को लेकर ग्रामीणों में नाराजगी | UP Railway

गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस रेल परियोजना के मौजूदा रूट की समीक्षा करने और एक वैकल्पिक रूट तय करने की मांग की है। उनका कहना है कि प्रस्तावित रूट से गुजरने वाली जमीनें न सिर्फ उपजाऊ हैं, बल्कि कई मकान अयोध्या विकास प्राधिकरण से स्वीकृत नक्शे पर बने हैं। ऐसे में मकानों का अधिग्रहण न सिर्फ उनके आशियाने छीन लेगा, बल्कि उनका भविष्य भी खतरे में डाल देगा।
ग्रामीणों ने बताया कि कई परिवारों ने इन मकानों के निर्माण के लिए बैंक से लोन लिया है और वर्षों की कमाई इसमें लगा दी है। अधिग्रहण से उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ मानसिक पीड़ा भी झेलनी पड़ेगी। गद्दोपुर गांव के ग्रामीणों ने विशेष रूप से चिंता व्यक्त की कि उनका गांव पहले से तीन ओर से रेलवे लाइनों से घिरा हुआ है। अगर यह नई लाइन भी बनती है तो पूरा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होगा।

अधिसूचना प्रक्रिया और आपत्ति का समय बना विवाद

ग्रामीणों ने यह भी कहा कि अधिसूचना प्रक्रिया के तहत केवल 30 दिन की आपत्ति दर्ज कराने की अवधि दी गई है, जो इतनी बड़ी परियोजना के लिए अत्यंत कम समय है। इस दौरान सभी ग्रामीणों तक सूचना पहुंचाना, तथ्यों को समझना और आपत्तियां दर्ज करना कठिन है। गांव में कई ऐसे लोग भी हैं, जो तकनीकी या शैक्षणिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि वे अधिसूचना और अधिग्रहण प्रक्रिया को समझ सकें।

सैनिक और सेवानिवृत्त परिवारों की चिंता

इन गांवों में कई सैनिक परिवार और सेवानिवृत्त कर्मचारी रहते हैं, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी की जमा पूंजी लगाकर मकान बनाए हैं। अब जब उन मकानों पर अधिग्रहण का खतरा मंडरा रहा है, तो उनके लिए यह स्थिति अत्यंत पीड़ादायक हो गई है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को पहले उनकी पुनर्वास योजना तैयार करनी चाहिए, उसके बाद ही किसी प्रकार की अधिग्रहण प्रक्रिया आगे बढ़ानी चाहिए।

ग्रामीणों ने सुझाया वैकल्पिक मार्ग

ग्रामीणों ने सुझाव दिया है कि मसौधा से सलारपुर के बीच कॉर्ड लाइन को ऐसे मार्ग से निकाला जाए, जो कम आबादी वाले क्षेत्रों से होकर गुजरे। इससे पक्के मकान और उपजाऊ भूमि दोनों सुरक्षित रहेंगे और मुआवजे व पुनर्वास की लागत भी घटेगी। साथ ही निर्माण कार्य को बिना विरोध के सुगमता से पूरा किया जा सकेगा।

जनप्रतिनिधियों का समर्थन और प्रशासनिक ज्ञापन

इस मामले को लेकर गांव की सुमन मिश्रा, विमलेश कुमार, ज्ञानेंद्र यादव, आदित्य तिवारी, संदीप यादव, राजकुमार, सूरज यादव, चंदन यादव, शशि सिंह, सूरज लाल और मानवेंद्र सहित सैकड़ों ग्रामीणों ने आवाज बुलंद की है। उन्होंने मंडलायुक्त राजेश कुमार को ज्ञापन सौंपकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं हैं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों पर शीघ्र सुनवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन और धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।

पूर्व सांसद लल्लू सिंह ने भी ग्रामीणों की आपत्तियों को गंभीरता से लेते हुए संबंधित मंत्रालय को जानकारी दी है। वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद ने भी ग्रामीणों को भरोसा दिलाया है कि वे शीघ्र ही गांव पहुंचकर उनकी आवाज उठाएंगे।
यह मामला एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि बड़ी बुनियादी परियोजनाओं को लागू करते समय स्थानीय आबादी की सहमति और उनकी आजीविका की सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है। अधिग्रहण की प्रक्रिया सिर्फ सरकारी मुआवजे तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रभावित लोग सम्मानजनक पुनर्वास और भविष्य की सुरक्षा से जुड़े समाधान पाएं। अब यह देखना बाकी है कि सरकार ग्रामीणों की इन मांगों को कितना गंभीरता से लेती है और क्या कोई वैकल्पिक रूट निर्धारित किया जाता है या नहीं।