हरियाणा सरकार का फसल अवशेष प्रबंधन को स्थिर और टिकाऊ बनाने का प्रयास

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Hisar हरियाणा सरकार का फसल अवशेष प्रबंधन को स्थिर और टिकाऊ बनाने का प्रयास

हिसार सच कहूँ/संदीप सिंहमार। आज के दौर में भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए फसल अवशेष प्रबंधन एक प्रमुख चुनौती बन चुका है। खासकर धान की खेती के बाद बची हुई पराली का अस्तित्व पर्यावरण, कृषि और सामाजिक स्तर पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। पराली जलाना जो परंपरागत रूप से किसानों द्वारा फसल कटने के बाद किया जाता है। जो न केवल वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। ऐसे में हरियाणा सरकार ने नए उपायों और योजनाओं का सहारा लिया है, जिनमें से एक प्रमुख है- पैड़ी स्ट्रा चैन स्किम। यह योजना फसल अवशेष प्रबंधन को स्थिर और टिकाऊ बनाने का एक प्रयास है, जिसकी सफलता हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट भी ले चुका संज्ञान

मैदानों में धान की कटाई के बाद पराली का जलना वर्षों से एक आम प्रक्रिया रही है। इस संकट पर हर साल देश का सर्वोच्च न्यायालय भी संज्ञान लेता है।परंपरागत तौर पर, किसान इसे जल्दी से जलाने का विकल्प मानते हैं क्योंकि इससे जुताई का काम भी आसान हो जाता है और फसल कटाई के तुरंत बाद खेत खाली करने में सुविधा मिलती है। लेकिन इसका परिणाम धरती, हवा और मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों में स्मॉग की परत का प्रमुख कारण यही पराली जलाना है। इससे न केवल वायु में गंभीर प्रदूषक तत्व पहुंचते हैं, बल्कि सांस से जुड़ी बीमारियों और फेफड़ों की परेशानियों का खतरा भी बढ़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण मृत्युदर का एक बड़ा कारण है, और पराली जलाने की समस्या इस आंकड़े में योगदान कर रही है।

असहनीय हुई स्थिति तो सरकार ने उठाए कदम

यह स्थिति अब असहनीय हो गई है, और इससे निपटने के लिए सरकार ने नए कदम उठाए हैं। इनमे शामिल है- पराली प्रबंधन के लिए नई योजनाएं, तकनीकों का प्रयोग, और किसानों को जागरूक करने का अभियान। इन उपायों का उद्देश्य है कि पराली का सही रूप से सम्मिलित उपयोग किया जाये और जलाने जैसी परंपरागत आदत का स्थान स्थायी विकल्प ले सके।

क्या है पैड़ी स्ट्रा चैन स्किम

यह योजना विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि पराली जलाने के बजाय, उसे कृषि उत्पादन में या पशुचारे के रूप में, अथवा ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग किया जाए। इसके तहत किसानों को मशीनरी और उपकरण मुहैया कराई जाती है, जैसे स्ट्रॉ चॉपर और बेलर मशीन, जिनसे पराली के छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम किया जाता है। इन मशीनों को चलाने के लिए सब्सिडी दी जाती है, ताकि किसानों का आर्थिक बोझ कम हो और उनके लिए यह विकल्प आकर्षक बन सके।

किसानों की आर्थिक दशा में होगा सुधार

साथ ही इस योजना में यह भी व्यवस्था की गई है कि पराली के वाणिज्यिक उपयोग के लिए मंडियां एवं प्रौद्योगिकियों का विकास हो। इससे न केवल वायु प्रदूषण कम होगा, बल्कि नए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। इससे किसानों को अपनी फसल के बाद के अवशेषों से सीधे आर्थिक लाभ प्राप्त होने लगेगा, जो पारंपरिक पराली जलाने की प्रवृत्ति को समाप्त करने में मदद करेगा।

चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि इस योजना की सफलता के प्रति कई चुनौतियां भी मौजूद हैं। पहली चुनौती है- किसानों को जागरूक बनाने और उन्हें प्रशिक्षित करने की। कई बार पारंपरिक अभ्यासों को छोड़ना आसान नहीं होता और नई तकनीकों का प्रयोग करना प्रारंभिक तौर पर कठिन होता है। दूसरी, मशीनों की उपलब्धता और प्रशिक्षण की जरूरत है ताकि वे प्रभावी रूप से काम कर सकें। तीसरी चुनौती यह है कि पानी और ऊर्जा जैसे संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करना। इन चुनौतियों के बावजूद, यदि सरकार और किसान आपसी सहयोग, जागरूकता और तकनीकी मदद से इस योजना को धार्मिकता से लागू करें, तो यह योजना बहुत ही सफल साबित हो सकती है।