Grow Early Potatoes: आलू की खेती से कमाए 60 दिनों में इतने लाख, इस प्रकार करे खेती

Grow Early Potatoes
Grow Early Potatoes: आलू की खेती से कमाए 60 दिनों में इतने लाख, इस प्रकार करे खेती

Grow Early Potatoes:डॉ. संदीप सिंहमार। आलू के बिना भारतीय रसोई अधूरी मानी जाती है। सब्जी से लेकर विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने में आलू का प्रयोग किया जाता है। आलू का उत्पादन उत्तरभारत में विशेष रूप से किया जाता है,क्योंकि इस इलाके में आलू की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी व जलवायु मिलती है। कहा जा सकता है कि आलू भारत सहित विश्व भर में एक प्रमुख और लाभदायक खाद्य फसल है। आलू की फसल ठंडे मौसम में अच्छा उत्पादन देती है और किसानों के लिए आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया है। आलू की खेती के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमे जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। भारी मिट्टी में आलू के सही प्रकार से विकसित नहीं हो पाते। आलू ठंडे मौसम की फसल है और इसके लिए औसत तापमान 17 से 19 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त रहता है। नमी का ध्यान रखा जाना जरूरी है, क्योंकि बहुत अधिक या कम नमी से फसल प्रभावित होती है।

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बीज का चुनाव और बुवाई | Grow Early Potatoes

आलू की खेती के लिए स्वस्थ और रोगमुक्त आलू के बीज का चयन सबसे महत्वपूर्ण होता है। बीज के आकार 25 से 45 मिमी के आलू उपयुक्त होते हैं। किस्मों का चुनाव मौसम, मिट्टी और बाजार की मांग के अनुसार करें। यदि ताजा सब्जी के लिए उगाना हो तो कुफरी बादशाह, कुफरी अगेती जैसी किस्में बेहतर होती हैं, जबकि चिप्स और फ्राई बनाने के लिए कुफरी चिप्सोना, हिमसोना जैसी किस्में उपयोगी होती हैं। आलू की बीज बुवाई के लिए खेत की अच्छी तैयारी जरूरी है। इसमें गहरी जुताई (20-25 सेमी), मिट्टी का समतलीकरण और उपयुक्त खाद डालना शामिल है। बीजों को 15-20 सेमी की दूरी पर और लगभग 5-7 सेमी गहरे रोपना चाहिए। आधुनिक कृषि में पोटैटो प्लांटर मशीन का प्रयोग बढ़ रहा है जो खाद और बीज को एक साथ सही दूरी और गहराई पर बोने में सहायता करती है, जिससे समय और श्रम की बचत होती है।

बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय

अक्टूबर में आलू की खेती सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इस समय की मिट्टी में नमी और तापमान दोनों फसल के विकास के लिए अनुकूल होते हैं। कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक आलू की बुवाई का सबसे अच्छा समय होता है। अक्टूबर में हल्की ठंड की शुरूआत हो जाती है, जो आलू के अंकुरण और पौधों की पहली वृद्धि के लिए उपयुक्त होती है। इस महीने मिट्टी गीली होती है लेकिन जल जमाव नहीं होता, जिससे आलू के कंद अच्छी तरह विकसित होते हैं। पर इस बार हरियाणा व पंजाब के इलाकों में जलभराव की स्थिति के कारण आलू की खेती प्रभावित हो सकती है।

किसानों को इस समय उन्नत किस्मों जैसे कुफरी अशोक, कुफरी सूर्या और कुफरी चन्द्र की बुवाई करने की सलाह दी जाती है, जो अधिक उत्पादन और बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली हैं। इसका एक अन्य लाभ यह है कि अक्टूबर में बोई गई फसल जल्दी पक कर तैयार हो जाती है, जब बाजार में आलू की आपूर्ति कम होती है और कीमतें अच्छी मिलती हैं, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा होता है।इसलिए, अगर किसान अक्टूबर महीने में आलू की खेती करते हैं, तो वे मौसम के अनुकूल परिस्थितियों का फायदा उठा कर अपनी पैदावार और आय दोनों बढ़ा सकते हैं।

संतुलित सिंचाई की जरूरत

आलू की जड़ें उथली एवं विरल होती हैं इसलिए सिंचाई का समय-समय पर ध्यान रखें। पहली हल्की सिंचाई रोपाई के 5-7 दिन बाद करनी चाहिए। उसके बाद मिट्टी की स्थिति के अनुसार 7-15 दिनों के अंतराल पर पानी दें। नमी का उचित स्तर बनाए रखना जरूरी है क्योंकि अत्यधिक पानी से कंद सड़ सकते हैं और कम पानी से पौधे प्रभावित होते हैं।

देशी खाद ज्यादा लाभदायक

देसी खाद के साथ-साथ जैव उर्वरकों, जैविक खादों, फास्फोरस आदि का भी संतुलित प्रयोग करें जिससे पौधे स्वस्थ रहें और उपज बढ़े। खेत में समय-समय पर खतरा बनने वाली फफूंद या रोगों से बचाने के लिए जरूरी फफूंदनाशक दवाओं का कृषि विभाग की सलाह अनुसार ही प्रयोग करें।

रोग और कीट प्रबंधन

आलू की फसल में अगेती झुलसा, फफूंदी जैसी बीमारियां आम हैं, जिनसे बचाव के लिए नियमित स्प्रे करना आवश्यक है। खेत में निराई-गुड़ाई का ध्यान रखें ताकि खरपतवार फसल को नुकसान न पहुंचाए। जैविक उपायों के साथ-साथ लोकल कृषि विभाग से सलाह लेकर उचित कीटनाशकों का प्रयोग करें।

कटाई और भंडारण

आलू की कटाई तब करें जब पौधे की पत्तियां पीली और सूखने लगें, आमतौर पर रोपाई के 75-90 दिन बाद। कटाई के समय मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि कंद टूटे नहीं। कटाई के बाद आलू को जल्दी नीचे की नमी से बचाकर सुखाएं। भंडारण के लिए ठंडी एवं सूखी जगह का चयन करें ताकि आलू लंबे समय तक सुरक्षित रहे।

पोटैटो प्लांटर मशीन का प्रयोग बढ़ा

पोटैटो प्लांटर मशीन के उपयोग से बुवाई में समय की बचत होती है और उत्पादन बढ़ता है। खेत की अच्छी तैयारी, बीज का सही चुनाव और सिंचाई का संतुलित प्रबंधन बेहतर उपज सुनिश्चित करते हैं। रोग और कीट नियंत्रण के उपाय अपनाएं तथा कटाई के समय विशेष ध्यान रखें।