कैथल सच कहूँ /कुलदीप नैन | फसल अवशेष प्रबंधन में कैथल जिले का गुहणा गांव खास भूमिका निभा रहा है। फसल अवशेष प्रबन्धन को लेकर यह गांव अब दूसरे गाँव के लिए रॉल मॉडल बनने की और अग्रसर है। गांव गुहणा के किसानों में पिछले कुछ वर्षो से फसल अवशेष को खेत में मिलाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि अब की बार गांव में करीब 1500 एकड़ से ज्यादा के अवशेष खेत में मिलाएं जा चुके हैं। सरकार और कृषि विभाग के विभिन्न प्रकार के प्रयासों से किसानों में जागरूकता बढ़ी है। जिसके चलते पराली प्रबंधन में किसान विशेष सहयोग दे रहे हैं।
जिले में ज्यादातर किसान फसल अवशेष का प्रबंधन पराली की गांठे बनवाकर कर रहे हैं लेकिन गांव गुहणा के किसानो में फसल अवशेष को सुपर सीडर द्वारा खेत में मिलाने की तरफ ज्यादा रुझान है। किसानो का मानना है कि फसल अवशेष की गांठे बनवाने पर सिर्फ खेत खाली होता है । खेत को कुछ नहीं मिलता।लेकिन यदि किसान फसल अवशेष को खेत में मिला लेता है तो इससे खेत की उपजाऊँ शक्ति बढ़ती है और खेत की पानी पीने की क्षमता बढ़ती है व मिट्टी मुलायम रहती है जिस कारण फसल पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है।
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दूसरे गाँवों में भी दिया जाता है गुहणा गाँव का उदाहरण
कृषि विभाग कैथल से सहायक तकनीकी प्रबंधक सतबीर सिंह ने बताया कि गांव गुहणा फसल के किसानो द्वारा अवशेष को खेत में मिलाने में लगातार योगदान दिया जा रहा है। इस गांव में अब तक 1500 एकड़ से ज्यादा के अवशेष खेत में मिलाएं जा चुके हैं। जो किसान पिछले 3-4 वर्ष से फसल अवशेष को खेत मे मिला रहे हैं उनके खेत में गेंहू की पैदावर में भी बढ़ोतरी हुई है। फसल अवशेष को खेत में मिलाने बारे गांव गुहणा के किसानों से कृषि विभाग के कर्मचारियों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कृषि विभाग के कर्मचारी गांव गुहणा के किसानों के अनुभवों को दूसरे गाँव के किसानों के साथ सांझा करके उन्हें भी फसल अवशेष को खेत में मिलाने के लिए प्रेरित करते हैं। गांव गुहणा इस उपलब्धि के लिए इस गांव के किसान बधाई के पात्र हैं।
41 एकड़ की पराली को मिलाता हूँ खेत में : यशपाल
किसान यशपाल ने बताया की 41 एकड़ में धान की फसल लगाता हूँ और पिछले 5 साल से खेत में कभी पराली को आग नहीं लगाई | पहले गांठे बनवाते थे | 3 साल पहले सुपर सीडर ले लिया उसके बाद से हर साल पराली के अवशेष जमीन में मिलाते है | इसके फायदे ही फायदे है नुकसान कोई नहीं है | गाँव के अन्य किसान भी एक दूसरे को देखकर प्रेरित हो रहे है |
ग्रामीणों में आ रही जागरूकता : रणधीर
गाँव के ही किसान रणधीर ने बताया कि मैं 25 एकड़ जमीन में धान की पैदावार करता हूँ | 4 साल से फसल अवशेष प्रबन्धन कर रहा हूँ जिससे गेंहू की फसल में भी लाभ मिलता है | गाँव के किसान जागरूक हो रहे है | पराली जलाने से पर्यावरण में प्रदूषण फैलता था और अब फसल अवशेष प्रबन्धन करने से प्रोत्साहन राशि भी मिलती है और न प्रदूषण होता |
खेत में मिलने के बाद देशी खाद का काम करती है पराली : विजेंद्र
किसान विजेंद्र ने जानकारी देते हुए बताया पिछले 5 साल से अपने घर की 12 एकड़ जमीन की पराली सुपर सीडर से खेत में ही मिला रहा हूँ | पहले जमीन में देशी खाद का प्रयोग करते थे लेकिन अब पराली ही देशी खाद का काम कर देती है | बड़े बड़े किसानो का रुझान हर साल इस ओर बढ़ता जा रहा है | एक बार जमीन जोतकर खेत को पानी का भर देते है और जब वो पानी जमीन में मिलता है तो उसका फायदा आगे गेंहू की फसल में देखने को मिलता है |















