नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। Supreme Court: उच्चतम न्यायालय ने महिला आरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। इस अधिनियम में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायपालिका के पास नीति कार्यान्वयन में हस्तक्षेप करने की सीमित गुंजाइश है, लेकिन इस मामले में आगे बढ़ने से पहले केंद्र सरकार से जवाब मांगा जा रहा है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “प्रस्तावना राजनीतिक और सामाजिक समानता की बात करती है। इस देश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक कौन है? महिलाएं हैं, लगभग 48 प्रतिशत। यह महिलाओं की राजनीतिक समानता के बारे में है।” Supreme Court
यह जनहित याचिका कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने न्यायालय से आग्रह किया है कि वह किसी नए परिसीमन की प्रक्रिया का इंतजार किए बगैर महिला आरक्षण अधिनियम को तत्काल लागू करने का निर्देश दे । नए परिसीमन की प्रक्रिया वर्तमान में कानून में एक पूर्व शर्त है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने दलील दी कि आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं कानून बनाने वाली संस्थाओं में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता गुप्ता ने तर्क दिया, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें प्रतिनिधित्व के लिए न्यायालय का रुख करना पड़ रहा है। उन्हें केवल एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता है। वे पहले ही आंकड़ों के आधार पर आरक्षण के सिद्धांत पर सहमत हो चुकी हैं।” पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका के पास नीति कार्यान्वयन में हस्तक्षेप करने की सीमित गुंजाइश है। न्यायालय ने कहा, “अधिनियम को लागू करना कार्यपालिका का काम है। हम इस स्तर पर आदेश जारी नहीं कर सकते। प्रतिवादियों को नोटिस जारी करें। संघ को नोटिस जारी होने दें।”
महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में 20 सितंबर, 2023 को और राज्यसभा में 21 सितंबर, 2023 को पारित किया गया था। इसके बाद इसे 28 सितंबर, 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। इस अधिनियम के जरिये संविधान में अनुच्छेद 334 ए जोड़ा गया जिसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया गया। हालाँकि, अनुच्छेद 334ए यह निर्धारित करता है कि आरक्षण परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही लागू होगा। यह परिसीमन संविधान संशोधन के बाद की जाने वाली पहली जनगणना पर आधारित होगा, जिसका अर्थ है कि इसके कार्यान्वयन में कई वर्षों की देरी हो सकती है। Supreme Court
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